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UP Cabinet Expansion: क्षेत्रीय, जातीय और जनाधार के आधार पर संतुलन से बना मंत्रिमंडल

UP Cabinet Expansion शाहजहांपुर और आसपास (उत्तर प्रदेश के तराई) क्षेत्र में वह स्थानीय ब्राह्मण चेहरा होंगे। भाजपा का गणित है कि वह पूरे प्रदेश नहीं तो इस क्षेत्र में अपनी पारिवारिक विरासत के कारण असर डालेंगे। स्वाभाविक तौर पर ब्राह्मण मतदाताओं को जोड़ने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 27 Sep 2021 10:47 AM (IST)Updated: Mon, 27 Sep 2021 10:47 AM (IST)
UP Cabinet Expansion: क्षेत्रीय, जातीय और जनाधार के आधार पर संतुलन से बना मंत्रिमंडल
भाजपा की ओर से चुनाव प्रभारी नियुक्त होने के बाद इसकी औपचारिकता धर्मेद्र प्रधान की तरफ से पूरी की गई।

लखनऊ, राजू मिश्रा। धर्मेद्र प्रधान बीते सप्ताह उत्तर प्रदेश के तीन दिनी प्रवास पर थे। उनके इस दौरे की पहली अहम उपलब्धि जहां निषाद पार्टी से समझौता रही, वहीं दूसरी बड़ी उपलब्धि बिना किसी विवाद के योगी मंत्रिमंडल के बहुप्रतीक्षित विस्तार का खाका तैयार करना रहा। रविवार को कई अनुमानों के विपरीत क्षेत्रीय, जातीय और जनाधार के आधार पर चयनित नामों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। केंद्रीय मंत्री रह चुके जितिन प्रसाद को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।

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इसी तरह संजय निषाद को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई, लेकिन संगीता बलवंत बिंद को मंत्री बनाकर उनके समाज को प्रतिनिधित्व दिया गया है। वह गाजीपुर की हैं और महिला होना भी उनके चयन में पात्रता साबित हुआ। इसी तरह ओबरा (सोनभद्र) से विधायक संजीव कुमार गोंड का चयन भी जातीय समीकरणों और क्षेत्रीय आधार पर किया गया है। क्षत्रपाल गंगवार कुर्मी उपजाति के हैं जिसका बरेली के आसपास दबदबा है। जितिन प्रसाद को छोड़ दें तो मंत्रिमंडल में उन्हीं नए चेहरों को जोड़ा गया है, जिनका प्रतिनिधित्व अब तक न्यून रहा है। वह चाहे ओबीसी से रहे हों या अनुसूचित जाति के। यह भी ध्यान रखा गया है कि उन क्षेत्रों के विधायकों को मंत्री बनाया जाए जहां उस बिरादरी का प्रभुत्व हो। खटीक समाज से दो लोगों को मंत्री बनाए जाने के पीछे यही तर्क है। दिनेश खटीक जहां हस्तिनापुर (मेरठ) से विधायक हैं, वहीं पलटूराम बलरामपुर जिले से हैं। जातीय के साथ क्षेत्रीय समीकरणों का संतुलन तैयार किया गया है।

लखनऊ में विभिन्न अभियानों की प्रदेश टोली के साथ बैठक करते केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश चुनाव प्रभारी धर्मेद्र प्रधान (मध्य में)। जागरण आर्काइव

जुड़ती गांठ, खुलते बंधन : चुनावी गठबंधन के लिए दर दर दस्तक दे रहे ओम प्रकाश राजभर और एआइएमआइएम के असदुद्दीन ओवैसी की मुलाकात हुई और हवा चल पड़ी कि दोनों मिलकर चुनाव लड़ेंगे। हालांकि इसके बाद भी राजभर कई राजनीतिक दलों की ड्योढ़ियों पर देखे गए। सबसे पहले हवा चली थी कि कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल और चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के चुनावी मैदान में एक रथ पर सवार होकर निकलेंगे। फिर कांग्रेस की जगह समाजवादी पार्टी का नाम आ गया। उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में ‘भाजपा को हराने’ के लिए ऐसे कई गठबंधनों की चर्चा रही, लेकिन आधिकारिक तौर पर ऐसा पहला गठबंधन बीते सप्ताह भाजपा और निषाद पार्टी के बीच सामने आया। भाजपा की ओर से चुनाव प्रभारी नियुक्त होने के बाद इसकी औपचारिकता धर्मेद्र प्रधान की तरफ से पूरी की गई।

भाजपा और निषाद पार्टी के बीच हुआ समझौता आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए एक अहम पड़ाव माना जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव के समय ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अनुप्रिया पटेल की अपना दल का भाजपा के साथ पहले से गठबंधन था। ओमप्रकाश राजभर ने लंबे समय से भाजपा के साथ रहते हुए भी उसके खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। गठबंधन भी चाहते हैं, लेकिन अजीबोगरीब शर्तो के साथ। अनुप्रिया पटेल ने भी प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले कुछ शर्ते रखीं थीं और मामला पहले ही सुलझ चुका है। संजय निषाद की निषाद पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ नहीं थी। इस लिहाज से 2022 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा में नए वोट जोड़ेंगे। भाजपा और निषाद पार्टी का गठबंधन गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों में कई सीटों पर दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगा, लेकिन शर्तो और पदों की मांग पर बात अटकी थी। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद कभी अपने लिए प्रदेश तो कभी केंद्र सरकार में बेटे प्रवीण निषाद के लिए मंत्रिपद चाह रहे थे। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा धर्मेद्र प्रधान को उत्तर प्रदेश भेजे जाने के बाद शुक्रवार को मामला सुलझ गया।

शुरुआत में मिलकर लड़ने की रणनीति बना रही कांग्रेस ने सपा के बड़े दलों से समझौता न करने की नीति के एलान के बाद अब कहना शुरू कर दिया है कि वह भी अकेले चुनाव लड़ेगी। राष्ट्रीय लोकदल में एक बड़ा धड़ा अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के सामने समर्पण के बजाय चौधरी चरण सिंह के समय के समीकरणों को जीवित करने पर जोर दे रहा है।


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