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200 साल पुराना है लखनऊ के इस मंदिर का इतिहास, यहीं से मिली कथक को पहचान

बटुक भैरवनाथ मंदिर में कथक कलाकारों की हाजिरी। सुरों के राजा से कला, संगीत और साधना का मांगा आशीर्वाद।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 10:50 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 12:01 PM (IST)
200 साल पुराना है लखनऊ के इस मंदिर का इतिहास, यहीं से मिली कथक को पहचान
200 साल पुराना है लखनऊ के इस मंदिर का इतिहास, यहीं से मिली कथक को पहचान

लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। भादौ के आखिरी रविवार को घुंघरू वाली रात आई। गुइन रोड स्थित बटुक भैरवनाथ मंदिर में कथक कलाकारों ने हाजिरी लगाई। घुंघरुओं में परंपरा का पूजन कर सुरों के राजा से कला, संगीत और साधना का आशीर्वाद मांगा। प्रशिक्षित कथक कलाकारों ने तत्कार, सलामी और आमद आदि पेशकर बाबा से कला में श्री वृद्धि की कामना की। वहीं नवांकुर ने घुंघरू बांधकर कथक का ककहरा सीखने की शुरुआत की। बाबा के पूजन के बाद शृंगार शिरोमणि कुमकुम आदर्श ने अपनी शिष्याओं को घुंघरू देकर तरक्की का आशीष दिया।

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शिव के पांचवे अवतार बटुक बाबा का मंदिर कला साधना का वर्षों पुराना केंद्र है। मान्यता है कि यहीं कथक के लखनऊ घराने के दिग्गजों ने पग घुंघरू बांध कथक सीखना शुरू किया। कथक के लखनऊ घराने के उस्ताद के हाथों शागिर्द के पैरों में बांधे गए घुघरुओं की खनक में परंपरा जीवंत है। हालांकि 1974 से मंदिर में घुंघरू बांधने की रवायत बंद हो गई थी, पर लच्छू महाराज की प्रमुख शिष्या कुमकुम आदर्श और उनकी शिष्याओं ने भादौ के आखिरी रविवार को अपनी कला का प्रदर्शन किया। साथ ही शृंगार शिरोमणि ने अपने शागिर्दों के घुंघरू भी बांधे। रविवार को भी वह अपनी शिष्याओं के साथ बाबा के दरबार पहुंचीं। शिष्याओं ने घुंघरू पूजन के बाद गुरु के चरण स्पर्श कर बाबा के दरबार में कथक प्रस्तुति से हाजिरी लगाई।

यादगार पल

चले गए दिल के दामनगीर...पद पर शंभु महाराज का अभूतपूर्व भाव-प्रदर्शन। केएल सहगल और सितारा देवी के कला प्रदर्शन की बात भी कही जाती है। कहते हैं कि बटुक महाराज को प्रसन्न करने के लिए किशन महाराज, बिस्मिल्ला खां, हरि प्रसाद चौरसिया और बफाती महाराज समेत तमाम दिग्गजों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया है।

बाबा के आशीष से लखनऊ घराने की ख्याति

कालका-बिंदादीन की ड्योढ़ी के ठीक पीछे यह मंदिर है। 1972 में कथक संस्थान की स्थापना के साथ ही कथक को जो पहचान मिली उसका आगाज बटुक भैरव नाथ मंदिर से ही हुआ। कथकाचार्य गुरु कालिका बिंदादीन ने अपने तीनों बेटे अच्छन महाराज, शंभू महाराज और लच्छू महाराज को सबसे पहले इसी मंदिर में घुंघरू प्रदान किया था। उन्होंने पूजा कर देश-विदेश में कथक को अलग पहचान दिलाई थी।

मंदिर का इतिहास 

बटुक भैरव मंदिर का इतिहास 200 वर्ष पुराना है। बटुक भैरव को लक्ष्मणपुर का रच्छपाल कहा जाता है।  यहां बाबा अपने बाल रूप में विराजमान हैं। मंदिर का जीर्णोद्धार बलरामपुर एस्टेट के महाराजा ने कराया था। इलाहाबाद की हंडिया तहसील से एक मिश्रा परिवार यहां आया और कथक की शुरुआत हुई।

महज घुंघरू नहीं डिग्री है

  • पांच साल की उम्र से कथक कर रहीं प्रियंका मेहरोत्रा ने कहा कि घुंघरुओं में कथक कलाकारों के प्राण बसते हैं। गुरु के हाथों मिले घुंघरू कला में निपुणता की डिग्री सरीखे है।
  • बचपन से ही कथक कर रहीं रोजी ने कहा कि घुंघरुओं की झंकार में गुरु का आशीर्वाद बरसता है। बाबा और गुरु के आशीष से कला में नित श्री वृद्धि हो रही है।
  • 20 वर्षों से कथक कर रहीं फरहाना फातिमा ने कहा कि कला का कोई धर्म नहीं होता। जो कला साधना में रमता है, यह उसे भी उसी भाव में अपनाती है।
  • रमा मिश्र, अंशिका कटारा, आस्था शर्मा और स्वधा ने कहा कि सुरों के महाराज के आगे प्रस्तुति बड़े मंचों पर खड़े होने का विश्वास जगाता है। यह हमारी परंपरा में ही संभव है कि यहां गुरु के रूप में स्वयं ईश्वर हैं। 

मान्या की शुरुआत

चार साल की मान्या श्रीवास्तव ने बाबा के सामने घुंघरू बांधकर कथक का ककहरा सीखने की शुरुआत की। गुरु शिष्य परंपरा के तहत बाबा के दरबार से बच्ची की कथक साधना का सफर शुरू हो गया।

बटुक भैरवनाथ का मेला

सिद्धपीठ के रूप मेंं मान्य बटुक भैरवनाथ मंदिर पर श्री रामचरित मानस पाठ के साथ मेले की शुरुआत हुई। अमीनाबाद के गुइनरोड स्थित मंदिर के आसपास लगने वाले मेले में झूले और दुकानें सजी रहीं। मंदिर की अध्यक्ष बीना गिरी ने बताया कि राजधानी समेत प्रदेश के कई जिलों से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आए। 


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