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विशेष: सादा जीवन-सात्विक विचार भगवती बाबू की थी यही पहचान, कुछ किस्से परिवार की जुबानी

भगवती चरण वर्मा की जयंती के मौके पर जीवन और साहित्य से जुड़े किस्से उनके परिवार की जुबानी। दैनिक जागरण संवाददाता की रिपोर्ट -

By JagranEdited By: Published: Thu, 30 Aug 2018 04:45 PM (IST)Updated: Thu, 30 Aug 2018 04:45 PM (IST)
विशेष: सादा जीवन-सात्विक विचार भगवती बाबू की थी यही पहचान, कुछ किस्से परिवार की जुबानी
विशेष: सादा जीवन-सात्विक विचार भगवती बाबू की थी यही पहचान, कुछ किस्से परिवार की जुबानी

लखनऊ[जुनैद अहमद]। सांसारिकता और वैराग्य के बीच द्वंद्व का चित्रण हो या प्रेम और वासना के धर्मयुद्ध को शब्द देने हों, भगवती चरण वर्मा की लेखनी में कल्पना की वास्तविक तस्वीर बातें करती है। उनकी रचनाओं में भावुकता स्थाई भाव रहा है तो करुणा और कोमलता का पुट इसे और गंभीर बनाता है। दरअसल जीवन के अप्रत्याशित पहलुओं को खूबसूरत चेहरा देने वाले इस उपन्यासकार ने असल जीवन को भी यही नजरिया दिया। आज भगवती चरण वर्मा की जयंती के मौके पर जीवन और साहित्य से जुड़े किस्से उनके परिवार की जुबानी। दैनिक जागरण संवाददाता की रिपोर्ट -

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आज यहा, कल वहा चले :

मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहा चले आए बनकर उल्लास कभी, आसू बनकर बह चले अभी सब कहते ही रह गए, अरे तुम कैसे आए, कहा चले किस ओर चले, मत ये पूछो, बस चलना है इसलिए चले जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हंसे और फिर कुछ रोए छक कर सुख-दुख के घूंटों को, हम एक भाव से पिए चले हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछंद लुटाकर प्यार चले हम एक निशानी उर पर, ले असफलता का भार चलेहम मान रहित, अपमान रहित, जी भर कर खुलकर खेल चुके हम हंसते हंसते आज यहा, प्राणों की बाजी हार चले अब अपना और पराया क्या, आबाद रहें रुकने वाले हम स्वयं बंधे थे और स्वयं, हम अपने बंधन तोड़ चले..')

सादा जीवन, सधी दिनचर्या और सात्विक विचार भगवती बाबू की पहचान और नजरिया दोनों रहा। उनके परिचित और उनकी कलम, दोनों यही कहते हैं। उनके पौत्र साहित्यकार चंद्रशेखर वर्मा ने बताया कि सादा जीवन जीने वाले भगवती बाबू भाग्यवादी स्वभाव के थे। उनको गुलामी की मानसिकता नहीं पसंद थी। शायद इसीलिए वह एक जगह टिक कर नहीं रहे। 30 अगस्त 1903 में उन्नाव में जन्म लेने वाले भगवती बाबू ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता समेत देश भर में कई शहरों में रहकर अपनी जिंदगी गुजारी। लगभग 1960 में यह स्वतंत्र लेखन की वृत्ति अपनाकर लखनऊ में बस गए। तो यही बन गई पहचान :

उन्होंने बताया कि जब इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए में दाखिला लिया तो उनसे विषय चयन के बारे में पूछा गया, बाबू जी ने कहा कि पहले तीन घंटे जो पढ़ाया जाएगा, वह ही पढ़ूंगा। इस बात से वह पूरे विवि में चर्चित हो गए।

गुलामी मानसिकता के खिलाफ थे :

वह गुलामी मानसिकता के खिलाफ थे, उन्होंने राजा बद्री का यहां नौकरी का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया था, राजा बद्री ने कहा कि तुम्हें हर रोज उनके ऊपर एक कविता लिखनी होगी, लेकिन भगवती चरण वर्मा ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया। वह हमेशा अपनी शर्तो पर काम करते थे। उन्होंने आकाशवाणी, सेंसर बोर्ड समेत कई संस्थानों की नौकरी छोड़ी थी। जब कवि सम्मेलन से बना ली दूरी :

चंद्रशेखर वर्मा ने बताया कि उन्होंने कविता से अपना लेखन शुरू किया। उनकी आत्मा का सहज स्वर कविता का है, उनका व्यक्तित्व शायराना रहा। असल में वो रंगीनी और मस्ती का सुधरा-संवारा हुआ रूप हैं। कई कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ करने जाते थे। वह जब भी कविता पढ़ते, तो उसके बाद कोई भी कवि कुछ सुना नहीं पाता था, लेकिन एक ऐसा दौरा आया जब उन्होंने कवि सम्मेलनों से दूरी बना ली। वह कहते थे, 'आज कल कवि सम्मेलन में कवि नहीं नाटककार जाते हैं, जो मैं नहीं बन सकता'

अमिताभ की शादी में गए थे पांच बराती :

बकौल चंद्रशेखर वर्मा, उनके बाबा भगवती चरण बताते थे कि 'अमिताभ की शादी में कुल पांच बराती गए थे, जिसमें मेरे अलावा संजय गांधी, पंडित नरेंद्र शर्मा, धर्मवीर भारती और कृष्णा किशोर श्रीवास्तव शामिल थे। अमिताभ की शादी मेरे जीवन के यादगार लम्हों में से एक है।' रंगमंच की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए लिखे नाटक :

भगवती चरण वर्मा के बेटे साहित्यकार धीरेंद्र वर्मा ने बताया कि बाबू जी ने रंगमंच की लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए कई एकल नाटकों का लेखन किया। जब बाबू जी ने लिखना शुरू किया, उस समय एकल नाटकों का विकास नहीं हुआ था। उन्होंने पहली कृति 'रुपया तुम्हें खा गया' थी। इसका मंचन सबसे पहले अमृतलाल नागर ने किया। उसके बाद 'बुझता दीपक', 'वसीयत' जैसे नाटकों का लेखन किया। उन्होंने नाट्यकला के विकास के लिए बड़ा योगदान देकर नाटक के विभिन्न स्वरूपों की रचना की।


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