सीएसआइआर की कॉलोनी में बना पेवमेंट वाटर हारवेस्टिंग तकनीक से अनोखा तालाब
सीएसआइआर के साइंटिफिकेट अपार्टमेंट पवेमेंट हार्वेस्टिंग की मिसाल है तालाब जल संरक्षण की बना अनूठी मिसाल।
लखनऊ [रूमा सिन्हा]। ज्यादातर लोगों का सोचना यह है कि घरों के आसपास तालाब गंदगी का पर्याय, खासकर मच्छर जनित बीमारियों का प्रमुख केंद्र होते हैं। लेकिन अलीगंज स्थित सीएसआईआर साइंटिफिक अपार्टमेंट कॉलोनी स्थित तालाब ने इस बात को पूरी तरीके से गलत साबित कर दिया है। जब यह कॉलोनी बनाई जा रही थी बीचोंबीच स्थित गंदे पानी व कूड़े से भरा तालाब सभी को अखर रहा था।
प्रशासन के साथ-साथ बहुत से लोग इस बात के पक्षधर थे कि तालाब को पाट कर मैदान बना देना चाहिए। वजह यह थी कि अमूमन देखा गया है कि तालाब का पानी गंदा होता है जिसमें बदबू आने के साथ मच्छर पनपते हैं। वहीं यह कूड़ा कचरा डालने का सर्वाधिक लोकप्रिय स्थल भी बन जाता है। लेकिन 15-16 साल पहले साइंटिफिक अपार्टमेंट सोसाइटी के तत्कालीन सचिव व पर्यावरण से सरोकार रखने वाले सीडीआरआई के उपनिदेशक डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव जो उस समय उसी कॉलोनी में रहते थे, इस बात के लिए कतई तैयार नहीं हुए।उन्होंने इस प्राकृतिक तालाब को पाटे जाने का पुरजोर विरोध किया। डॉ.श्रीवास्तव का मानना था कि पार्कों में व बनाई जाने वाली नई कॉलोनियों में खूबसूरती के लिए वाटर बॉडी बनाई जाती हैं। ऐसे में सौगात में मिले इस प्राकृतिक तालाब को पाटना कतई उचित नहीं। उन्होंने इसके लिए सीएसआईआर प्रशासन को भी तैयार कर लिया।
सबका सहयोग मिला तो हौसले बुलंद हुए और मंथन शुरू हुआ कि किस तरह से इस तालाब का संरक्षण किया जाए जिससे गंदगी भी ना फैले और कॉलोनी की खूबसूरती में भी तालाब चार चांद लगाए।साथ ही कॉलोनी जल संरक्षण की भी मिसाल बने। डॉ.श्रीवास्तव ने भूगर्भ जल विभाग के वरिष्ठ अधिकारी आर. एस.सिन्हा से सहयोग मांगा। डॉ. श्रीवास्तव बताते हैं कि बतौर भूजल विशेषज्ञ श्री सिन्हा ने इस अपार्टमेंट के साथ-साथ तालाब का गहराई से निरीक्षण करने के बाद पेवमेंट वाटर हार्वेस्टिंग टेक्निक का इस्तेमाल करते हुए रिचार्जिंग का मॉडल तैयार किया। सबसे पहले पार्क की सफाई का काम शुरू किया गया फिर अपार्टमेंट के 14 ब्लॉक जिसमें हर एक ब्लॉक में 12-12 फ्लैट हैं, की छतों से आने वाले पानी के साथ कॉलोनी के अंदरूनी सड़कों का पानी को तालाब का रास्ता दिखाया गया।तालाब में चार रिचार्ज पिट बनाए गए। 10 फीट गहरे रिचार्ज पिट को पत्थरों से भरा गया जिससे किसी भी तरीके की सिल्ट रिचार्ज पिट को चोक ना कर सके।अब आलम यह है कि बारिश आती है तो यह तालाब बारिश के पानी से लबालब हो जाता है। खास बात यह है कि 24 से 48 घंटे के बीच सारा पानी जमीनी जल स्रोतों में उतरकर भूजल भंडारों को रिचार्ज करता है। इससे तालाब फिर से बारिश का पानी संग्रहण करने के लिए तैयार हो जाता है। डॉ. श्रीवास्तव बताते हैं कि तालाब के चारों तरफ पेड़ होने से जमीन में 30 फीसद पानी का अवशोषण ज्यादा होता है। इस बात को ध्यान में रखकर तालाब के चारों तरफ नीम, पीपल, गूलर, गिलोय, पाकड, कदंब आदि लगाए गए। यही नहीं, कॉलोनी को देसी प्रजातियों के पौधों से हरा-भरा किया गया। आज यह सारे पौधे दरख़्त बन चुके हैं। तालाब हर साल बारिश के पानी को संचित कर जमीनी जल स्रोतों में पहुंचाता है। नतीजा यह है कॉलोनीवासियों को कभी पानी की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ता।भूजल भंडारों से उन्हें 24 घंटे की जलापूर्ति मिलती है। वहीं पेड़ों की वजह से कॉलोनी का तापमान भी बाहर के मुकाबले दो-तीन डिग्री कम रहता है। डॉ.श्रीवास्तव का कहना है कि देखा जाए तो सही मायने में अलीगंज की यह सीएसआईआर कॉलोनी पर्यावरण संरक्षण का एक बेहतरीन मॉडल बन चुकी है।
कॉलोनी में जहां भरपूर हरियाली है वहीं, भूजल भंडारों में पर्याप्त पानी। उनका कहना है कि आज उन्हें इस बात पर गर्व है कि उनके एक फैसले ने कि तालाब को पाटा नहीं पटा जाएगा ने एक मिसाल कायम कर दी कि हम यदि तालाबों का सही ढंग से व उपयुक्त तकनीक से प्रबंधन करें तो यह जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का उदाहरण बन सकते हैं। वहीं, ऐसे लोग जो मच्छर जनित बीमारियों व तालाब के गंदे बदबूदार पानी का हवाला देकर तालाबों को पाटने की वकालत करते हैं उनकी भी सोच बदल सकती है। डॉ.श्रीवास्तव बताते हैं कि सीएसआईआर के इंजीनियर बताते हैं कि हर साल बारिश से पहले तालाब के पिट में पडे़ पत्थरों की सफाई की जाती है। जिससे पानी जाने में किसी तरीके की रुकावट ना हो़। बारिश होती है तो तालाब भर जाता है और फिर 24 से 48 घंटे के भीतर पानी जमीनी जल स्रोतों के भीतर समा जाता है।