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कोमा में गए 71 साल के बुजुर्ग की बचाई जान, 37 दिन तक वेंटीलेटर पर चला इलाज

आरआइसीयू ब्लू कोड टीम का कमाल। बुखार के बाद फ्लूड फेफड़े में पहुंचा तो बिगड़ने लगी थी तबीयत।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 11 Mar 2019 12:02 PM (IST)Updated: Mon, 11 Mar 2019 12:02 PM (IST)
कोमा में गए 71 साल के बुजुर्ग की बचाई जान, 37 दिन तक वेंटीलेटर पर चला इलाज
कोमा में गए 71 साल के बुजुर्ग की बचाई जान, 37 दिन तक वेंटीलेटर पर चला इलाज

लखनऊ, जेएनएन। ब्रेन टीबी से पीड़ित 71 साल का एक बुजुर्ग मेनिनजाइटिस का शिकार हो गया। मस्तिष्क की झिल्ली में सूजन आने से वह कोमा में चला गया। 37 दिन तक वेंटीलेटर पर इलाज चला। इस दरम्यान हुई उल्टी से फ्लूड फेफड़े में पहुंच गया। उसे सांस लेना में परेशानी होने लेगी। वेंटीलेटर पर शिफ्ट करने पर दो बार हार्ट दगा दे गया। मगर, केजीएमयू के ट्रामा सेंटर में आरआइसीयू के चिकित्सकों की मेहनत रंग लाई। उन्होंने मरीज का इलाज कर जान बचा ली। 

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तेज बुखार के बाद बिगड़ी हालत 

दरअसल, आजमगढ़ के पोलघाट निवासी बलिहारी यादव (71) को तेज बुखार के साथ चक्कर आ गया। 23 जनवरी को परिजन उन्हें निजी अस्पताल पहुंचे। उनकी हालत बिगडऩे के कारण 29 जनवरी को ट्रामा सेंटर रेफर किया गया। ऐसे में फ्लूड फेफड़े में पहुंच गया। पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के डॉ. वेद प्रकाश ने आरआइसीयू में शिफ्ट किया। बावजूद बलिहारी की हालत बिगड़ती चली गई। ब्रांकोस्कोप करने पर बलिहारी के इंटरनल ब्लीडिंग की वजह से उनकी श्वसन नली ट्रैकिया, बाएं और दाएं ब्रांकस में रक्त का थक्का जमा मिला। वहीं सीएसएफ, सीटी स्कैन व एमआरआइ जांच के बाद बलिहारी में ट्यूबरकुलर मेननजाइटिस की पुष्टि हुई। इसके बाद डॉक्टरों ने हाई एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, एंटी ट्यूबरकुलर थेरेपी देना शुरू किया।  

आठ बार ब्रांकोस्कोप, आठ यूनिट चढ़ा ब्लड

डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि संक्रमण की वजह से मरीज के शरीर में प्लेटलेट्स  काफी कम हो गए। प्लॉज्मा का स्तर भी गिर गया। ऐसे में हीमोग्लोबिन की भी कमी हो गई। लिहाजा, पहले श्वसन नलिकाओं में जमा रक्त का बड़ा थक्का हटाया गया। इसके लिए आठ बार ब्रांकोस्कोप किया गया। वहीं, हीमोग्लोबिन मेनटेन करने के लिए आठ यूनिट रक्त मरीज को चढ़ाया गया। 

वेन सर्किट पर लेकर दो बार सीपीआर किया

मरीज की हालत में सुधार ही हो रहा था कि अचानक सात फरवरी को मरीज की धड़कने थम गईं। मॉनीटर से बीप की आवाज करने पर चिकित्सकों ने 'ब्लू कोड' टीम को अलर्ट किया। एक्सपर्ट टीम ने प्रति मिनट सौ कंप्रेशन देकर सीपीआर (कार्डियो पल्मोनरी रिसक्सिटेशन) किया। यही प्रक्रिया 18 फरवरी को भी हार्ट थमने पर करनी पड़ी। ऐसे में शरीर में कृत्रिम तरीके से रक्त परिसंचरण कर मरीज की धड़कनें लौटा दीं। टीम में डॉ. लक्ष्मी, डॉ. अंकित, डॉ. सुलझना, डॉ. अभिषेक, डॉ. अहबाब समेत आदि शामिल रहे।  


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