ये अपराध क्षमा योग्य नहीं, शासन ने ठुकरा दी संगीन अपराधों में दया याचिकाएं
अपराधों का बोझ लेकर वर्षों से जेल में सजा काट रहे अपराधियों की समयपूर्व रिहाई की गुजारिश प्रदेश सरकार ने ठुकरा दी।
अलीगढ़ (जेएनएन)। ये वो संगीन अपराध थे, जो न अदालत की माफी के लायक थे, न समाज की, सरकार ने भी इन्हें क्षमा योग्य नहीं समझा। इन अपराधों का बोझ लेकर वर्षों से जेल में सजा काट रहे अपराधियों की समयपूर्व रिहाई की गुजारिश प्रदेश सरकार ने ठुकरा दी। 1984 के 'अलीगढ़ कचहरी कांड में दोष सिद्ध कैदी की दया याचिका पर प्रशासन ने ये तर्क देकर संस्तुति नहीं दी कि समय पूर्व रिहाई से समाज में गलत संदेश जाएगा। रायबरेली में 1996 के नरसंहार में भी यही तर्क दिया गया। ललितपुर, उन्नाव, झांसी, हरदोई में हुई संगीन वारदातों में शामिल अपराधियों को भी राहत नहीं मिली।
अलीगढ़ कचहरी कांड : आठ मई 1984 को दीवानी कचहरी में कोर्ट के बाहर तीन लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस घटना में दो पुलिसकर्मी भी घायल हुए। मुनेश पाल निवासी ल्हौसरा लोधा समेत छह लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ। 14 जून 1991 को अपर सत्र न्यायालय ने आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। अपील पर हाईकोर्ट ने 14 जनवरी 1997 को उम्रकैद की सजा सुना दी। तीन अभियुक्तों की मृत्यु हो चुकी है। मुनेश पाल ने रिहाई की अपील की, जो खारिज हो गई।
रायबरेली नरसंहार : 19 जून 1996 को रायबरेली में शादी समारोह के दौरान खाने को लेकर झगड़ा हुआ था। लाठी, डंडे, तमंचों से छह लोगों की हत्या कर दी गई। छह घायल हुए। इस मामले में मोहम्मद सईद उर्फ लाला निवासी ढोढनपुर थाना मोहनगंज रायबरेली हाल निवासी अमेठी समेत 12 लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ। 30 जून 2012 को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी। शासन ने सईद की अपील खारिज कर दी।
झांसी का दोहरा हत्याकांड : 19 नवंबर 1988 को दो लोगों की रंजिशन हत्या हुई थी। इस प्रकरण में शिवदयाल निवासी खखोंच थाना ककरई झांसी समेत अन्य के विरुद्ध मुकदमा हुआ। सात अगस्त 1992 को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई। शिवदयाल की अपील भी नामंजूर हो गई।
ललितपुर हत्याकांड : चार मई 1976 को प्रधानी चुनाव को लेकर जातीय संघर्ष हुआ था, जिसमें दो लोगों की हत्या कर दी गई। हत्याकांड में मेहरबान निवासी बम्हौरी कलां थाना मडावरा ललितपुर व अन्य 10 अक्टूबर 1980 में उम्रकैद हुई। आगरा जेल में बंद मेहरबान की अपील खारिज हो गई।
हरदोई हत्याकांड : 24 जनवरी 1978 को पार्टीबंदी के चलते गजराज व टनकई की गोली मारकर हत्या कर दी गई। घटना में शामिल रामदयाल निवासी कोतवाली हरदोई को कोर्ट ने 10 जुलाई 1980 को उम्रकैद की सजा सुनाई। लखनऊ जेल में बंद इस कैदी की अपील भी निरस्त हो गई।
उम्रकैद यानी मृत्यु-पर्यंत
आम धारणा है कि उम्रकैद का मतलब 14 साल की सजा है। शायद इसलिए दया याचिका में कैदी 14 साल सजा काटने का हवाला देकर रिहाई की गुहार लगाते हैं। अधिवक्ता नीरज चौहान बताते हैं कि ये धारणा गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद को लेकर रूलिंग दी है, जिसमें मृत्यु पर्यंत तक कारावास का जिक्र है। हां, सरकार को अधिकार है कि वह 14 साल की सजा काट चुके किसी भी कैदी की सजा कम कर सकती है।