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नहीं रहे रंग संगीतकार अखिलेश दीक्षित 'दीपू', कई दिनों से पीजीआइ में थे भर्ती

शहर के जाने माने लेखक अनुवादक संगीतकार रंगकर्मी और इप्टा की राष्ट्रीय समिति के सदस्य अखिलेश दीक्षित दीपू हमारे बीच नहीं रहे। उनके दिल में छेद था।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 07 Jan 2020 08:25 PM (IST)Updated: Wed, 08 Jan 2020 08:47 AM (IST)
नहीं रहे रंग संगीतकार अखिलेश दीक्षित 'दीपू', कई दिनों से पीजीआइ में थे भर्ती
नहीं रहे रंग संगीतकार अखिलेश दीक्षित 'दीपू', कई दिनों से पीजीआइ में थे भर्ती

लखनऊ, जेएनएन। वरिष्ठ रंग संगीतकार स्व. रवि नागर के अभिन्न मित्र राजाजीपुरम में रहने वाले अखिलेश दीक्षित का जन्म 22 मई 1959 को हुआ था। अखिलेश शुरुआत में पत्रकारिता से जुड़े। वह प्रसिद्ध ऑरकेस्ट्रा ग्र्रुप स्पाक्र्स से ड्रमर के रूप में जुड़े और बाद में स्वतंत्र लेखन के साथ अनेक किताबों के अनुवाद किए। वह कई नाटकों मेें संगीत देने के साथ अभिनय भी कर चुके हैं। कामतानाथ की कहानी पर आधारित नाटक दाखिला डॉट कॉम इप्टा लखनऊ में उनके निर्देशन में प्रस्तुत किया, जिसे भरपूर सराहना मिली।

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वह 2008 से 2012 तक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय ह‍िंदी विश्वव‍िद्यालय में नाट्य व‍िभाग में स्थापना समय से जुड़े रहे। उन्होंने लखनऊ में इप्टा, मेघदूत, दर्पण थिएटर आर्ट्स कार्यशाला और भारतेंदु नाट्य अकादमी के साथ जुड़कर कई नाटकों में संगीत दिया। उनके परिवार में पत्नी संध्या और बेटा नमन है। प्रसिद्ध रंगकर्मी राज बिसारिया, डॉ. अनिल रस्तोगी, राकेश, नदीम, हसनैन, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, वेदा राकेश, उत्तम चटर्जी, मृदुला भारद्वाज ने उनके निधन को रंगकर्म की बड़ी क्षति बताया।

30 सालों का साथ था हमारा

इप्टा के प्रदीप घोष ने कहा कि हमारा 30 सालों का साथ रहा। उनके दिल में छेद था, जिसका पांच साल की उम्र में एक बार ऑपरेशन हो चुका था। एक ऑपरेशन 12 साल की उम्र में भी हुआ। 25 साल बाद एक ऑपरेशन फिर होना था लेकिन वह किसी कारणवश नहीं हो पाया। उसके बाद से धीरे-धीरे उन्हें दिक्कतें शुरू हुईं। रंगमंच का संगीत मौन हो गया।

रंगमंचीय संगीत की परंपरा का अंत

भारतेंदु नाट्य अकादमी की वरिष्ठ प्रवक्ता एवं रंगकर्मी चित्रा मोहन ने कहा, हमारा पहला रंगमंचीय जुड़ाव अभिज्ञान शाकुंतलम से हुआ था, जिसमें उन्होंने संगीत दिया था। उसके बाद हममें कई नाटकों में साथ काम किया। मेरी उनके साथ एक अभिन्न यात्रा रही है। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। लखनऊ के रंगमंच को उन्होंने समृद्ध किया है। रंगमंच के संगीत में अब एक बड़ी परंपरा का अंत होता है।

प्रगतिशील विचारक थे

वरिष्ठ रंगकर्मी ललित पोखरिया ने कहा कि प्रगतिशील विचारक थे। जब बोलते थे तो ज्ञान की गंगा बहती थी। उर्दू शायरी के तो इन्साइक्लोपीडिया थे। मैं उनके जिस भी पक्ष पर बात करूं, कम है। लखनऊ रंगमंच ने बहुत कीमती नगीना खोया है।  


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