भूलभुलैया में गुम हो गई माचिस और कागज की जुगलबंदी
इमामबाड़े की मुख्य इमारत के पर्शियन हॉल की बालकनी का एक हिस्सा झुका। बालकनी की 14 सेंचियों में लोहे के दरवाजे लगाकर पर्यटकों के लिए बंद किया रास्ता।
लखनऊ, जेएनएन। शहर की ऐतिहासिक और भव्य इमारतें वास्तुकला का नायाब नमूना हैं। देशी-विदेशी पर्यटकों के बीच इनसे ही लखनऊ की पहचान है। इन पर गर्व के साथ ही इन्हें सहेजने की फिक्र भी होनी चाहिए। विश्व विरासत दिवस (18 अप्रैल) के मौके पर दैनिक जागरण आठ दिवसीय 'इमारत नहीं, विरासत है...सीरीज शुरू कर रहा है। इसके तहत हम विश्व पर्यटन के नक्शे पर लखनऊ को उभारने वाली शहर की खूबसूरत इमारतों की विशेषताओं के साथ उनकी वास्तविक स्थिति से भी अवगत कराएंगे।
भूलभुलैया (बड़े इमामबाड़े) में वर्षों से गूंजती माचिस और कागज की आवाज खामोश हो गई। इमामबाड़े के गाइड अब पर्यटकों को 165 फीट दूर से माचिस जलाने और कागज फडफ़ड़ाने की आवाज सुनाकर नहीं रिझा सकेंगे। जी हां, भूलभुलैया में पर्शियन हॉल की वह बालकनी जहां पर पर्यटकों को गाइड तरह-तरह की आवाज सुनाते थे, वह हिस्सा पर्यटकों के लिए पूरी तरह बंद कर दिया गया है।
इमामबाड़े की मुख्य इमारत की बालकनी (भूलभुलैया) की ओर जाने वाली सेंचियां (आर्चेस) बंद कर दी गई हैं। इन सेंचियों में 14 लोहे के दरवाजे लगा दिए गए हैं, ताकि पर्यटक वहां न जा सकें। ऐसा इसलिए किया गया है कि भूलभुलैया की बालकनी का एक हिस्सा (पूरब साइड) लटक गया है, जो गिर भी सकता है। बालकनी की मरम्मत कराने के लिए हुसैनाबाद ट्रस्ट ने पुरातत्व विभाग को पत्र भी लिखा है।
वर्ष 1784 में आसिफुद्दौला ने कराया था निर्माण
अवध के नवाब आसिफुद्दौला बहादुर ने 1774 में बड़े इमामबाड़े का निर्माण कराया था, जिसका नाम आसिफी इमामबाड़ा हो गया। इमामबाड़े के वास्तुकार किफायत उल्लाह देहलवी थे, जो ताज महल के वास्तुकार के संबंधी थे। लोगों का कहना है कि उस दौर में सूखा पड़ गया था, रोजगार की कमी थी। यहां के लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए थे। इसके बावजूद भी कोई आर्थिक सहायता लेने को तैयार नहीं था, इसलिए अवध के नवाब ने इमामबाड़े का निर्माण कराया। दिन में इमामबाड़े का निर्माण कराया जाता और रात में उस निर्माण को गिरा दिया जाता था। इस तरह दोनों शिफ्ट में लोगों को रोजगार देकर उनकी सहायता की गई।
बिना सपोर्ट के टिकी इमारत
बड़े इमामबाड़े की इमारत में कहीं भी लोहे व लकड़ी का प्रयोग नहीं किया गया है। इस इमारत के मुख्य हॉल की छत पर कोई भी सपोर्ट नहीं लगाया गया है। इमामबाड़े में जगह-जगह बनीं सेंचियां गर्मी में भी ठंडा रखती हैं।
सूखी बाउली में भर रहे पानी
जिस बाउली चौकी (कुआं) के पानी से आसिफी इमामबाड़े का निर्माण कराया गया था, वह करीब 22 वर्षों से सूखी पड़ी है। इमामबाड़े में आने वाले पर्यटकों को रिझाने के लिए रोज यहां तैनात गाइड बाउली में पानी भरते हैं। बाउली में एक खास जगह पर खड़े होने पर दूर पानी में आपकी परछाई नजर आती है, जो पर्यटकों को खूब भाती है।
कहीं गिर न जाए बाउली
एक-एक करके बाउली की तीन छतें जर्जर होकर गिर चुकी हैं, जो अभी तक नहीं बनी। इमारत इतनी कमजोर हो चुकी है कि मरम्मत कराने में भी बाउली के गिरने का खतरा है, क्योंकि छत के निर्माण में बल्लियां लगाते समय इमारत गिर सकती है। कई बार प्रस्ताव बनने के बाद भी बाउली चौकी की छत को दुरुस्त नहीं कराया जा सका। जमीन से करीब 265 फीट गहरी बाउली में सात तल हैं, लेकिन चार तल जमीन में धंसे हैं। तीन तल पर ही पर्यटक जा सकते हैं।
नहीं बदली इमामबाड़े की सूरत
दो साल पहले जिलाधिकारी ने इमामबाड़े की सेंचियों में घर बनाकर अवैध रूप से रह रहे कई परिवारों को हटाकर सरकारी आवासों में शिफ्ट कराया था। योजना थी लोगों को इमामबाड़े से हटाकर इमारत को उसके पुराने स्वरूप में लौटाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। वर्तमान समय में इमामबाड़े की मुख्य इमारत हो, भूलभुलैया, बाउली चौकी या फिर आसिफी मस्जिद। समय पर मरम्मत न होने की वजह से इमामबाड़े का हर हिस्सा बदहाल है और गुजरते दिनों के साथ जर्जर होता जा रहा है। मुख्य इमारत के ऊपरी हिस्से में बनी कई बुर्जियां गिर चुकी हैं, तो कुछ तिरछी हो चुकी हैं। जगह-जगह दीवार से प्लास्टर गिर चुका है और लखौरी ईंट दिखाई दे रही है।
बढ़ रही रूमी गेट की दरार
रूमी गेट का ऊपरी हिस्सा दरक चुका है। पांच फीट मोटी दरार समय के साथ-साथ बढ़ रही है। नीचे से गुजरने वाले भारी वाहनों के कंपन से इमारत को नुकसान हो रहा है। पिछली बरसात में रूमी गेट की छत के किनारे का एक हिस्सा गिर चुका है। पहले भी गेट की ऊपरी हिस्से में बनी बुर्जियां टूट कर नीचे गिर गईं थीं। इमारत की सुरक्षा में कोई भी सुरक्षा कर्मी न होने से अराजकतत्व नुकसान पहुंचा रहे हैं।