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After Ayodhya Verdict: साढ़े तीन दशक पूर्व अयोध्‍या में तैयार हुई थी मंदिर आंदोलन की नींव

After Ayodhya Verdict सुग्रीवकिला पीठाधीश्वर स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने खुले दिल से विहिप को दिया था संरक्षण। अयोध्‍या में तीन दशक पूर्व शुरू हुआ था राम मंदिर आंदोलन।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 07:46 AM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 07:46 AM (IST)
After Ayodhya Verdict: साढ़े तीन दशक पूर्व अयोध्‍या में तैयार हुई थी मंदिर आंदोलन की नींव
After Ayodhya Verdict: साढ़े तीन दशक पूर्व अयोध्‍या में तैयार हुई थी मंदिर आंदोलन की नींव

अयोध्या [रघुवरशरण]। मंदिर आंदोलन जब परवान चढ़ा, तब उसके हमराह बनने वालों का तांता लग गया। 1984 में शुरुआत के समय आंदोलन का केंद्र सुग्रीवकिला मंदिर बना। इसके पीछे मंदिर आंदोलन को धार देने की जुगत में लगे विहिप नेतृत्व की सोची-समझी योजना थी। उन दिनों रामनगरी में जिन चुङ्क्षनदा संतों का सामाजिक सरोकार शीर्ष पर था, उनमें सुग्रीवकिला पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य प्रमुख थे। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जिस राम ज्योति यात्रा के संवाहक थे, वह एक प्रकार से मंदिर आंदोलन का ही पूर्ववर्ती संस्करण था।

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 1973 में देवराहा बाबा ने किया था सूत्रपात

आंदोलन का सूत्रपात 1973 में दिग्गज संत देवराहा बाबा ने किया था और इसकी कमान अपने योग्यतम शिष्य पुरुषोत्तमाचार्य को सौंपी थी। राम ज्योति यात्रा के साथ देश के बड़े हिस्से का भ्रमण करते हुए पुरुषोत्तमाचार्य रामनगरी पहुंचे तो त्रेतायुगीन स्थल सुग्रीवकिला को केंद्र बनाकर यहीं के होकर रह गए। हालांकि ज्योति यात्राओं के माध्यम से राम नाम के प्रचार-प्रसार की उनकी मुहिम तब भी जारी रही। सामाजिक जीवन में रमे स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने रामनगरी में पैठ बनाने की कोशिश में लगी विहिप को भी खुले दिल से संरक्षण प्रदान किया। वह 1984 को प्रारंभिक दौर था, जब एक ओर विहिप संतों की धर्मसंसद और सभा के माध्यम से पूरे देश में मंदिर आंदोलन को प्रभावी बनाने में लगी थी, दूसरी ओर वह अयोध्या में जमीन तैयार करने में लगी थी। इसके लिए उसे एक कार्यालय की दरकार थी। यह जरूरत स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने अपने आश्रम का एक कक्ष देकर पूरी की।

मंदिर आंदोलन के प्रभावी किरदार थे स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य

भगवान राम से वैयक्तिक अनुराग और नेतृत्व-वक्तृत्व के स्वाभाविक गुण के चलते स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य स्वयं भी मंदिर आंदोलन के प्रभावी किरदार बनकर उभरे। वे न केवल 1986 में गठित रामजन्मभूमि न्यास के संस्थापक सदस्यों में रहे बल्कि स्थानीय स्तर पर परमहंस रामचंद्रदास एवं महंत नृत्यगोपालदास के साथ मंदिर आंदोलन की त्रिमूर्ति के अहम घटक बनकर प्रतिष्ठापित रहे। 1989 में शिलान्यास और 1990 में कारसेवा के साथ मंदिर आंदोलन और उसके सूत्रधार विहिप नेतृत्व का जादू सिर चढ़कर बोलने लगा था और इसी के साथ ही रामनगरी में विहिप को सुग्रीवकिला के अलावा कुछ अन्य ठौर भी सुलभ हुए पर आंदोलन के फलक पर स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य पूर्व की भांति प्रखर-प्रभावी बने रहे। इसी वर्ष नौ मार्च को 96 वर्ष की अवस्था में वैकुंठवासी हुए स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य की सक्रियता गत एक दशक से कुछ थम सी गई थी पर उनका दिल सदैव राममंदिर के लिए धड़कता रहा।

हमें श्रेय नहीं, रामलला का भव्यतम मंदिर चाहिए

स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य के शिष्य एवं उत्तराधिकारी जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी विश्वेशप्रपन्नाचार्य कहते हैं, आज हमारी खुशी का ठिकाना नहीं है। हमारे पूज्य गुरुदेव ने जिस स्वप्न को साधने के लिए अपना जीवन समर्पित किया, वह साकार हुआ है। यद्यपि रामनगरी में विहिप का प्रारंभिक केंद्र मंदिर के दावेदारों की नजर में कुछ हाशिए पर सरक गया है, लेकिन विश्वेशप्रपन्नाचार्य को इसका कोई मलाल नहीं है। वे कहते हैं, हमें श्रेय मिले या न मिले पर रामजन्मभूमि पर रामलला का भव्यतम मंदिर बनना चाहिए और अब इस संभावना में कोई शक नहीं है।


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