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बच्‍चे की खराब हालत देख लखनऊ के अस्‍पताल में छोड़ फरार हुए स्‍वजन, डाक्‍टर ने दी नई ज‍िंदगी

बलरामपुर जिला चिकित्सालय में एक बाप कुपोषण के चलते गंभीर रूप से बीमार अपने 12 वर्षीय बेटे को अकेला छोड़कर चला गया। पिता समेत अस्पताल के स्टाफ को भी डेढ़ वर्षों से किशोर की मौत का इंतजार था। मगर हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. जीपी गुप्ता ने उसे बचा लिया।

By Dharmendra MishraEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 07:00 PM (IST)Updated: Wed, 01 Dec 2021 07:52 AM (IST)
बच्‍चे की खराब हालत देख लखनऊ के अस्‍पताल में छोड़ फरार हुए स्‍वजन, डाक्‍टर ने दी नई ज‍िंदगी
बलरामपुर अस्पताल के डा. जीपी गुप्ता ने किशोर को दी नई जिंदगी।

लखनऊ जागरण संवाददाता।  लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में एक बाप कुपोषण के चलते गंभीर रूप से बीमार पड़े अपने 12 वर्षीय बेटे को डेढ़ वर्ष पहले अकेला छोड़कर चला गया। फिर कभी नहीं लौटा। डाक्टरों ने भी किशोर के बचने की नाउम्मीदी जाहिर कर दी थी। लिहाजा उसके पिता समेत अस्पताल के स्टाफ को भी पिछले डेढ़ वर्षों से किशोर की मौत का इंतजार था, लेकिन कहते हैं कि ..जाको राखे साईंया, मार सके न कोय। बलरामपुर अस्पताल के मशहूर हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. जीपी गुप्ता ने करीब छह माह तक उसका इलाज कर फिर से नई जिंदगी दे दी। अब वह बिल्कुल ठीक है।

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किशोर का शरीर सूखकर हो गया था गठरी जैसाः  हरदोई के नन्नापुरवा निवासी दीपक पुत्र सुरेंद्र का शरीर कुपोषण के चलते सूखकर गठरीनुमा हो चुका था। वह बिस्तर पर ही पड़ा रहता था। उसके हाथ-पैर भी टेंढ़े होकर पूरी तरह सूख कर बेजान हो चुके थे। कूल्हा टेंढ़ा हो जाने से शरीर एल्बो की तरह मुड़कर गठरी हो चुका था। उसने एक वर्ष से खाना-पीना भी छोड़ दिया था। उसे मुंह और नाक के जरिये फ्लूड दिया जाता था। अस्पताल मे डाक्टर और नर्सों के अलावा उसका कोई नहीं था। 

डॉ. जीपी गुप्ता ने अभिभावक की तरह इलाज के साथ की देखभालः बलरामपुर चिकित्सालय में हड्डी रोगों में विशेष महारत के अपनी ख्याति बनाने वाले डाक्टर जीपी गुप्ता को करीब छह महीने पहले कुपोषण के शिकार बच्चे की जानकारी हुई। उन्होंने उसे जाकर देखा। डा. गुप्ता ने बताया कि इससे पहले उसका टीबी का इलाज भी चल चुका था। उन्होंने बताया कि हाथ-पैर सूखने के साथ शरीर गठरीनुमा हो चुका था। जब उन्हें पता चला कि इसके आगे-पीछे कोई नहीं है तो वह संवेदना से भर उठे। उन्होंने इलाज के साथ अभिभावक की तरह उसकी देखभाल भी शुरू की। उसके पैरों को सीधा करने के लिए उन्होंने अस्पताल के स्टाफ की मदद से रोज फिजियोथेरेपी शुरू की। उसके खाने-पीने का भी पूरा ध्यान रखते। नर्सें भी उसके लिए घर से खाना लातीं। धीरे-धीरे उचित देखभाल और इलाज से दीपक की हालत सुधरने लगी। अब ठीक होने के बाद उसे अनाथ आश्रम भेज दिया गया है।

भोजन नहीं मिलने से हुआ था कुपोषण का शिकारः  दीपक की दर्दनाक दास्तान दिल और आत्मा को दहला देने वाली है। दुर्भाग्य ने बचपन में ही उससे मां का साथ छीन लिया। उस वक्त उसकी उम्र महज पांच वर्ष रही होगी। किसी तरह मौसा-मौसी ने उसे पाल-पोष कर थोड़ा बड़ा किया तो पिता अपने पास उठा लाया। 10-12 वर्ष की उम्र में ही किशोर को अपने बढ़ईगीरी के काम में सहयोग लेने लगा। इस बीच दिन भर काम के बाद दीपक को भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता था। अक्सर उसे भूखे पेट भी सोना पड़ जाता था। लिहाजा वह कुपोषण के गंभीर चपेट में आ गया। 

अब कभी नहीं जाऊंगा पिता के पासः  दीपक अब 14 वर्ष का हो चुका है। उसने बताया कि बीमार पड़ने पर उसका पिता करीब ढेढ़ वर्ष पहले बलरामपुर जिला चिकित्सालय में छोड़कर भाग गया। कोरोनाकाल में जब पूरा अस्पताल खाली हो गया तो भी वह अस्पताल में अकेले था। वह भाई-बहनों में अकेला था। काम के मिले पैसे का पिता शराब पी जाता था। इस वजह से खाने-पीने के भी लाले थे। दीपक को इसी वजह से उसके पिता ने कभी स्कूल भी नहीं भेजा। दीपक ने ठीक होने के बाद कहा कि वह अब अपने पिता के पास कभी नहीं जाएगा। लिहाजा उसे डाक्टर ने अनाथ आश्रम भेज दिया है। 


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