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रामजन्मभूमि के साथ युगों से प्रवाहमान है आस्था की विरासत...त्रेता में यहां था राजा दशरथ का महल

रामलला के भव्यतम मंदिर निर्माण की गूंज के बीच रामनगरी के कई ऐसे मंदिर हैं जो अपनी उपस्थिति का बखूबी एहसास करा रहे हैं।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Tue, 12 Nov 2019 09:10 PM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2019 08:34 AM (IST)
रामजन्मभूमि के साथ युगों से प्रवाहमान है आस्था की विरासत...त्रेता में यहां था राजा दशरथ का महल
रामजन्मभूमि के साथ युगों से प्रवाहमान है आस्था की विरासत...त्रेता में यहां था राजा दशरथ का महल

अयोध्या, जेएनएन। रामलला के भव्यतम मंदिर निर्माण की गूंज के बीच रामनगरी के कई ऐसे मंदिर हैं, जो अपनी उपस्थिति का बखूबी एहसास करा रहे हैं। मिसाल के तौर पर रामजन्मभूमि की ओर जाते नुक्कड़ पर ही स्थित दशरथमहल बड़ास्थान है। पहली नजर में ही यह मंदिर महल के रूप में अपनी भव्यता का एहसास कराता है। इस मंदिर का नाम यूं ही नहीं दशरथमहल पड़ा। पौराणिक विवरण के अनुसार त्रेता में यहीं राजा दशरथ का महल था और जहां भगवान राम का जन्म हुआ, वह दशरथ के राजमहल का ही प्रसूति गृह था।

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युगों के सफर में यदि दशरथ का महल लंबे समय तक प्रवाहमान रहा, तो ऐसे भी दौर आए, जब यह विरासत जरा-जीर्ण हुई। प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में अयोध्या का जीर्णोद्धार कराते हुए भारतीय लोककथाओं के नायक महाराज विक्रमादित्य ने जिन 360 त्रेतायुगीन मंदिरों का नवनिर्माण कराया, उनमें दशरथमहल अग्रणी था।

विक्रमादित्य के बाद लंबे कालखंड में दशरथमहल की चमक यदि पुन: फीकी पड़ी, तो तीन शताब्दी पूर्व रामप्रसादाचार्य नाम के पहुंचे संत ने इस विरासत को पूरी भव्यता से पुनर्जीवित किया। हालांकि वे निरा संत थे पर उन्होंने दशरथमहल को महल के ही रूप में प्रतिष्ठित किया और भगवान राम सहित चारों भाइयों की पूजन-प्रतिष्ठा भी उसी रूप में हुई, जिस बाल रूप में वे त्रेता में पिता के महल में रहे होंगे। मान्यता है कि उन्हें मां सीता ने प्रत्यक्ष दर्शन दिया और उनकी आला आध्यात्मिक हैसियत के चलते दशरथमहल रामानंदीय संतों से जुड़ी बिंदु परंपरा की आचार्य पीठ के रूप में स्थापित हुआ।

वर्तमान बिंदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्रप्रसादाचार्य 13वीं पीढ़ी के आचार्य हैं और उनकी देख-रेख में दशरथमहल अपनी विरासत को पूरी चमक के साथ अक्षुण रखे हुए है। बिंदुगाद्याचार्य के कृपापात्र संत रामभूषणदास कृपालु के अनुसार दशरथमहल त्रेतायुगीन विरासत के साथ साधना-सिद्धि एवं उपासना परंपरा के रूप में आस्था का केंद्र है और हम इस विरासत के प्रति जवाबदेही में कोई कसर नहीं छोड़ते। यह प्रयास भव्य मंदिर, मंदिर में रहने वाले सैकड़ों संतों, उत्सव-उपासना की व्यापक-वृहद गतिविधियों, संस्कृत पाठशाला, समृद्ध गोशाला, मनोहारी उद्यान के रूप में पूरी रौ से बयां है।

दशरथमहल के नए युग का आगाज

बिंदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्रप्रसादाचार्य कहते हैं, रामलला के हक में फैसला रोमांचित करने वाला है और रामलला के भव्यतम मंदिर की परिकल्पना और मंदिर की इसी पांत से जुड़कर दशरथमहल के भी नए युग का आगाज होगा। ...और भव्यता की दिशा में बदलाव की आहट सुनी भी जाने लगी है।


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