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Taj Mahal Agra Issue : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में आगरा के ताजमहल के 20 कमरों को खुलवाने की मांग पर 12 को सुनवाई

Taj Mahal Agra 20 Rooms Closed Issue अयोध्या के भाजपा नेता डा. रजनीश सिंह की आगरा के ताजमहल का सर्वे कराने की मांग की याचिका की सुनवाई आज न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ में होनी थी।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 10 May 2022 01:45 PM (IST)Updated: Tue, 10 May 2022 01:58 PM (IST)
Taj Mahal Agra Issue : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में आगरा के ताजमहल के 20 कमरों को खुलवाने की मांग पर 12 को सुनवाई
Taj Mahal Agra 20 Rooms Closed Issue :

लखनऊ, जेएनएन। आगरा के ताजमहल के 20 कमरों को खुलवाने की मांग वाली अयोध्या के भाजपा नेता की याचिका पर मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई नहीं हो सकी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकीलों की आज हड़ताल के कारण अब इस मामले में गुरुवार यानी 12 मई को सुनवाई होगी।

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अयोध्या में भारतीय जनता पार्टी के मीडिया प्रभारी डा. रजनीश सिंह ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर कर आगरा के ताजमहल का सर्वे कराने की मांग की है। उनकी मांग है कि ताजमहल के बंद पड़े 22 कमरों को खुलवा कर सरकार की तरफ से फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित हो, जो कि वहां पर जांच करे कि क्या वहां पर बंद पड़े कमरों में देवी या देवताओं की मूर्तियां हैं। उनकी मांग है कि वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद की तरह ही ताजमहल का भी सर्वे तथा वीडियोग्राफी की जाए। जिससे कि हकीकत सामने आ सके।

अयोध्या के भाजपा नेता डा. रजनीश सिंह की याचिका की सुनवाई आज न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ में होनी थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुकदमों की लिस्टिंग में देरी और अव्यवस्था को लेकर इलाहाबाद और लखनऊ दोनों जगह के अधिवक्ताओं ने कार्य बहिष्कार का निर्णय ले रखा है। इसी कारण इस याचिका पर अगली सुनवाई गुरुवार को होगी।

डा. रजनीश सिंह की इस याचिका में ताजमहल के इतिहास के बारे में जांच की मांग की गई है। इसके साथ ही वहां पर बंद पड़े 20 कमरों को खोलने की भी मांग की गई है। याचिका में यह भी मांग की गई है कि आगरा के ताज महल, फतेहपुर सीकरी, आगरा लाल किला, अथमदुल्ला और अन्य स्मारकों को प्राचीन व ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातत्व स्थलों और अवशेष (राष्ट्रीय महत्व की घोषणा) अधिनियम 1951 के प्रावधानों के तहत ऐतिहासिक स्मारकों के रूप में घोषित करने से संबंधित प्रावधान और प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 को भारत के संविधान के खिलाफ घोषित किया जाना चाहिए और तदनुसार उन्हें अलग रखा जाना चाहिए।  


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