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चिंताओं से घिरा कांग्रेस का मथुरा चिंतन शिविर

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में 21 सितंबर को मथुरा में प्रस्तावित चिंतन शिविर दरअसल व्यवहारिक धरातल पर चिंता शिविर है। बहुकोणीय चिंताओं से घिरी पार्टी क्या महज चार-पांच घंटे में चिंताओं को जाहिर कर उनका निदान तलाश लेगी? चिंतन शिविर को लेकर कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता यही

By Ashish MishraEdited By: Published: Thu, 17 Sep 2015 01:41 PM (IST)Updated: Thu, 17 Sep 2015 01:46 PM (IST)
चिंताओं से घिरा कांग्रेस का मथुरा चिंतन शिविर

लखनऊ (राज बहादुर सिंह) । कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में 21 सितंबर को मथुरा में प्रस्तावित चिंतन शिविर दरअसल व्यवहारिक धरातल पर चिंता शिविर है। बहुकोणीय चिंताओं से घिरी पार्टी क्या महज चार-पांच घंटे में चिंताओं को जाहिर कर उनका निदान तलाश लेगी? चिंतन शिविर को लेकर कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता यही है। दो दशक से भी ज्यादा समय से 'संगठन को कैसे मजबूत किया जाए' सूबाई कांग्रेस का यह एक रटा रटाया जुमला बना है। हर प्रदेश अध्यक्ष संगठन मजबूत करने के इरादे जाहिर करते पारी खत्म कर लेता है। संगठन की मजबूती की हकीकत तो जगजाहिर है ही ऊपर से कांग्रेस की सामाजिक तबकों में स्वीकार्यता भी ढलान पर है। समाज का कोई समूह पार्टी का 'कोर' वोट नहीं रह गया है। पार्टी यह भी नहीं तय कर पा रही कि वह कहां ध्यान केंद्रित करे।

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'सेक्यूलर-कम्युनल' के बीच भी पिसी पार्टी : कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सेक्यूलर राजनीति का दम भले ही जितना भर ले और बिहार में लालू यादव व नीतीश कुमार के साथ गठबंधन का आधार भी यही हो लेकिन कांग्रेस में एक तबका यह भी मानता है कि बीते लोक सभा चुनाव में 'सेक्यूलर-कम्युनल' के चक्कर में कांग्रेस का बहुत नुकसान हुआ। प्रदेश कांग्रेस के महासचिव मारूफ खां कहते हैं कि जब पीडीपी भाजपा के साथ कश्मीर में सरकार चला रही है तो 'सेक्युलर-कम्युनल' की बात कहां रह जाती है। वैसे भी कांग्रेस को इस बहस में पडऩे के बजाय जनता से जुड़े मुद्दों की बात ही करनी चाहिए।

पिछड़ों-दलितों पर दांव लगाने से कटती रही कांग्रेस : समाज में बहुमत का दर्जा रखने वाले पिछड़े व दलित वर्ग को नेतृत्व के लिए आगे बढ़ाने में 25 सालों में कांग्रेस ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। दो बार सलमान खुर्शीद को छोड़ दिया जाए तो एनडी तिवारी, जितेन्द्र प्रसाद, श्रीप्रकाश जायसवाल, जगदंबिका पाल, अरुण कुमार सिंह मुन्ना, डा.रीता बहुगुणा जोशी और अब निर्मल खत्री को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने यही दर्शाया है कि उसका भरोसा अगड़ोंं पर ही बना है।

जितिन ने लिखी चिट्ठी : पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री जितिन प्रसाद ने प्रभारी महासचिव मधुसूदन मिस्त्री को पत्र लिखकर मथुरा के चिंतन शिविर में आरक्षण को लेकर नए सिरे से मंथन करने का आग्रह किया है। वह कहते हैं कि उन्हें पता है कि इसका विरोध होगा लेकिन अब समय आ गया है जब कांग्रेस को अति पिछड़ी जातियों व गरीब सवर्णों को आरक्षण का लाभ देने के लिए नए सिरे से आरक्षण का पैमाना तय करने की मुहिम छेडऩी होगी।

मोदी हटाओ का नारा कारगर नहीं : वजह राहुल गांधी की नरेंद्र मोदी को लेकर ताजातरीन आक्रामकता है जिसके चलते कांग्रेस का ताजा फैशन मोदी पर जमकर अटैक करना हो गया है। अलबत्ता सभी इस रुख के समर्थक नहीं हैं। पूर्व मंत्री व वरिष्ठ नेता डा. अम्मार रिजवी कहते हैं कि मोदी हटाओ, फिर राजनाथ हटाओ जैसे व्यक्तिगत नारों से कांग्रेस का भला नहीं होने वाला। इंदिरा हटाओ का नारा देने वाले क्या इंदिरा को हटाए रख सके। हर बात पर मोदी का नाम लेकर कांग्रेस उन्हें अनावश्यक महत्व दे रही है और मोदी पर निजी हमलों से तो उलटे कांग्रेस का ही नुकसान हो रहा है। कांग्रेस को मुद्दों पर आना होगा। जाहिर है कि मोदी की चिंता कैसे करें यह भी कांग्रेस की एक बड़ी चिंता है।


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