छात्रों ने जगाई ऐसी अलख, भीख मांगने वाले हाथ करने लगे काम
किताबों की दुनिया से निकल छात्रों ने कर दिखाया बदलाव, भीख मांगना छोड़ दर्जनों लोग अब कर रहे काम।
लखनऊ, (अजय शुक्ला)। श्रवण नशे में खो गए, हाथ भीख के लिए फैलने लगे। अब दूसरों को भीख न मांगने के लिए मोटीवेट करते हैं। खुद काम करते हैं और अपने जैसे कइयों को काम पर लगा चुके हैं। मनोज को पता ही नहीं था कि उन्हें टीबी है। मां-बाप बचपन में गुजर गए। भाई-भौजाई, रिश्ते-नातेदारों ने निगाह फेर ली। पीड़ा बढ़ी तो राजधानी के अस्पताल आए। गरीब-अनपढ़ जान अस्पताल के पढ़े-लिखे लोग कभी पीली-सफेद गोली थमा देते, कभी ङिाड़क देते। अगले दिन फिर अस्पताल जाने के लिए हनुमान सेतु के बाहर बैठ जाते। कुछ खाने-पीने का जुगाड़ हो जाता और फिर वही दिनचर्या.. अब मनोज चाट का ठेला लगाते हैं, अपने जैसे दूसरे साथियों के ‘बावर्ची’ की भूमिका निभाते हैं और अनुभव से इतना सीख गए हैं कि साथियों को दवा दिलवा लाते हैं।
सबसे दिलचस्प मिश्र जी हैं। शिवराम मिश्र हैं तो सुलतानपुर (उप्र) के, लेकिन मासूमियत लखनवी नवाबों सी। शनि मंदिर व परिवर्तन चौक के पास भीख मांगते थे। 25 साल से। कम उम्र के भिखारी (पेशेवर नहीं, परिस्थिति के मारे) इन्हें डैडीजी या पापाजी कहकर संबोधित करते। डैडीजी से कोई चाय-बिस्कुट की डिमांड करता तो न नहीं करते। उठकर चले जाते और जब लौटते तो चाय-बिस्कुट के पैसे साथ होते। भीख मांगकर लाते थे। अब साथी इफ्तिखारुल के साथ चाय का ठेला लगाने की तैयारी कर रहे हैं।
..फेहरिस्त लंबी है। गाजीपुर (उप्र) के नरेंद्र यादव कुष्ठ रोग से पीड़ित थे, अब लगभग ठीक हो गए हैं, लिफाफे बनाने में जुटे हैं। सीताराम नाम लिखकर दान खाने वाले ‘महात्मा जी’ संस्था का हिसाब लगाते हैं, सलीम बड़ी स्वादिष्ट चाय पिलाते हैं। ये सब लखनऊ के लक्ष्मण मेला स्थल के आसपास बिखरे और रात में एक टेंट में सुख-दुख बांटते मिल जाएंगे। इन्हें अगले छह महीने में अपने पैरों पर खड़ा होना है, पर यह उससे पहले ही आत्मनिर्भर हो जाने के भरोसे के साथ खुद में बदलाव की पटकथा लिख रहे हैं। उन्हें राह दिखा रहे हैं समाजशास्त्र के विद्यार्थी।
बदलाव की शुरुआत
शरद पटेल शकुंतला देवी विश्वविद्यालय, लखनऊ के समाज कार्य विभाग में शोधार्थी हैं। उपेक्षित भिक्षुक समाज उनका विषय है। मास्टर डिग्री हासिल करने के दौरान ही उन्होंने साथियों का एक समूह बनाकर कारणों की पहचान शुरू की। पता चला कि अधिकतर भिखारी पेशेवर हैं, लेकिन कुछ हालात के मारे भी। दूसरे वर्ग को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए उन्होंने इनके व्यवहार परिवर्तन पर काम शुरू किया। अब शरद पटेल और शकुंतला देवी राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में मास्टर ऑफ सोशल वर्क अंतिम वर्ष के छात्र रामजी वर्मा अपने साथियों के साथ मिलकर गोमती किनारे लक्ष्मणमेला धरना स्थल पर भिक्षुकों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। बदलाव नाम से एक अनौपचारिक संस्था बना ली है।
हर रविवार श्रमदान भी
शरद कहते हैं, हम इन्हें आजीविका के स्तर पर ही सक्षम नहीं बनाना चाहते, समाज की मुख्यधारा में शामिल करना लक्ष्य है। एक निश्चित रूपरेखा के तहत पिछले दो सप्ताह से प्रत्येक रविवार उनसे तीन घंटे का श्रमदान भी करा रहे हैं। इस रविवार भी गोमती के घाट पर सफाई की गई। महीनेभर बाद कोई दूसरा अभियान होगा।