Fight Against CoronaVirus: पर्दे के पीछे से कर रहे बड़े काम, कोरोना से जंग में ऐसे दे रहे योगदान
Fight Against CoronaVirus मरीजों की सांसें मेडिकल स्टाफ बचा रहा तो उन्हें लड़ने की ताकत दे रहे ये सहायक सेवक। खुद की परवाह किए बिना हालात से निपटने में रात दिन दे रहे योगदान।
लखनऊ [रूमा सिन्हा]। Fight Against CoronaVirus: इस लड़ाई में ऐसे भी अनेक किरदार हैं, जो पर्दे के पीछे रहकर बड़ा काम कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं कोरोना वार्डो में सेवा दे रहे गैर चिकित्सकीय स्टाफ की, जिनमें सहायक स्टाफ, कैंटीन वाले, चाय-नाश्ता, खाना, पानी पहुंचाने वाले कर्मी शामिल हैं। इनके जज्बे को हर कोई सलाम कर रहा है। अपनी परवाह किए बिना ये लोग कोरोना को हराने में हरसंभव योगदान कर रहे हैं।
कोरोना के खिलाफ जंग में पूरा देश एकजुट है। डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ जहां रात-दिन खुद को खतरे में डालकर संक्रमितों का इलाज करने में जुटे हैं तो पुलिस फैलाव को रोकने के लिए सड़कों पर खड़ी है। आमजन भी इनके प्रति कृतज्ञता जताते हुए नहीं अघा रहे। मगर महामारी के खिलाफ चलने वाली लंबी लड़ाई में योद्धाओं की फौज में ऐसे भी अनगिनत योद्धा हैं, जो चुपचाप अपना फर्ज निभा रहे हैं। पर्दे के पीछे रहकर कहने को छोटा मगर अपने आप में बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। इनके इस जज्बे से कोरोना पीड़ितों को लड़ने की ताकत मिल रही है।
खुद की परवाह किए बिना ये योद्धा अस्पतालों के कोरोना वार्ड में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को अबाध बनाते हैं। वे जानते हैं कि मामूली चूक उनको भी खतरे में डाल देगी, मगर जज्बा है कि मानता नहीं। कहते हैं, यह लड़ाई किसी एक की नहीं है। मिलकर जूङोंगे, तभी जीत पाएंगे। कोरोना संRमितों का सिर्फ इलाज ही चुनौती नहीं है। उनके वार्ड में रहने, खाने-पीने, इस्तेमाल किए कपड़े उठाने, अन्य कार्यों में सहायता करने के लिए हर समय यह सेवाएं मुहैया कराना भी बड़ी चुनौती है। मामूली गलती पूरी कवायद पर पानी फेर सकती है।
यही कारण है, जहां-जहां भी कोरोना मरीजों का इलाज हो रहा है, व्यवस्था में जुटा हर छोटा बड़ा शख्स फाइटर से कम नहीं है। लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में कई कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज चल रहा है।
केजीएमयू की किचन के छह कर्मचारी सुबह से लेकर रात तक मरीजों को नाश्ता, खाना, पानी पहुंचाने की कमान संभाल रहे हैं। यह कर्मचारी मुस्तैदी से सुबह से रात तक अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इनके परिवार वालों को या इनको संक्रमण का भय नहीं है, लेकिन लंबी लड़ाई में योगदान देने की धुन सवार है। कहते हैं, जब मरीज स्वस्थ होकर अपने घर जाता है तो बड़ी खुशी मिलती है। हौसला बुलंद हो जाता है। यही उर्जा हमें बगैर थके काम करने की शक्ति देती है।
क्या कहते हैं कोरोना फाइटर्स
मिर्जापुर निवासी अजीत यादव अपने घर परिवार से दूर हैं। उनका परिवार भी चिंतित हैं। बताते हैं कि सुबह साढ़े छह बजे से चाय देने के साथ ड्यूटी शुरू होती है। उसके बाद नाश्ता, दिन का खाना और रात का भोजन देने के बाद ही ड्यूटी समाप्त होती है। अजीत को बस यह अफसोस है कि बेटा तीन माह का हो गया है लेकिन, लॉकडाउन के चलते वह उसे देख नहीं पाए हैं। इनके साथ-साथ सर्वेश, धमेर्ंद्र और अंकुर को भी गर्व है कि वह इस कठिन समय में अपनी सेवाएं दे पा रहे हैं। कहते हैं कि जब कोई मरीज ठीक हो करके अपने घर को हो जाता है तो यह पल सबसे सुखद होता है। किचन से जुड़े राकेश पांडये बताते हैं कि कोरोना वार्ड में खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी संभालते हैं। परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी व बच्चे हैं। सभी चिंतित होते हैं तो हम उन्हें समझा देते हैं। सुरक्षा का दिलासा देते हैं। राकेश बताते है कि अस्पताल की ओर से उन्हें कैप, मास्क, दस्ताने और शू कवर दिए जाते हैं, जिसे वह पहन कर अपनी ड्यूटी करते हैं। कहते हैं कि खतरा हरपल है। फिर भी इस बात की खुशी है कि वह इस बड़ी लड़ाई में अपना छोटा योगदान दे पा रहे हैं।
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