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Story of Freedom Struggle: कैसरबाग युद्ध में जनरल नील सहित मारे गए थे 722 सिपाही

Story of Freedom Struggle दो दिन चला था युद्ध तोपों से निकल रहे थे गोले। बेगम हजरतमहल ने क‍िया था बारादरी के तहखाने में छिपे क्रांतिकारियों के भोजन का इंतजाम।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 12:13 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 03:31 PM (IST)
Story of Freedom Struggle: कैसरबाग युद्ध में जनरल नील सहित मारे गए थे 722 सिपाही
Story of Freedom Struggle: कैसरबाग युद्ध में जनरल नील सहित मारे गए थे 722 सिपाही

लखनऊ, (जितेंद्र उपाध्याय)। आलमबाग युद्ध के बाद जनरल हैवलॉक की फौज ने शहर में प्रवेश किया। नाका हिंडोला होते हुए अंग्रेजी फौज कैसरबाग में दाखिल हुई। इस बीच क्रांतिकारियों ने आलमबाग व नगर के बीच में बने पुल को धमाके से उड़ा दिया। पुल उड़ने से अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी को आलमबाग कोठी के पास ही पड़ाव डालना पड़ा, जबकि दूसरी टुकड़ी कैसरबाग के उत्तरी व पूर्वी क्षेत्र में दाखिल होने में कामयाब हो गई। जनरल नील के साथ जो सिपाही कैसरबाग पहुंचे थे। क्रांतिकारियों ने उनका भी रास्ता रोक लिया गया। अंग्रेजी सेना के शहर में प्रवेश करते ही मोती महल, खुर्शीद मंजिल व कैसरबाग में तोपें गरजने लगीं। फिर से घमासान युद्ध शुरू हो गया।

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कैसरबाग युद्ध में अंग्रेजी सेना के 722 सिपाही मारे गए। तो वहीं, शेर दरवाजे के निकट फौज का नेतृत्व कर रहा जनरल नील भी मारा गया। दो दिन तक कैसरबाग में भयंकर युद्ध चला था लेकिन, अंग्रेजी सेना के शेष सिपाही पराजित होकर छतरमंजिल के भीतर से बेलीगारद में प्रवेश कर गए। इस दौरान अंग्रेजी सिपाहियों ने कैसरबाग में जमकर लूटपाट मचाई। हालाकि, वह जिस रास्ते से गुजरे थे, उस क्षेत्र में क्रांतिकारियों की तोपें लगी हुई थीं। यदि गोला-बारी की जाती तो नगर के एक भाग को क्षति पहुंचने का भय था। इस कारण अंग्रेजों पर गोला-बारी नहीं की गई। बाद में क्रातिकारियों ने बेलीगारद पहुंचकर अपना मोर्चा संभाल लिया था।

खून से स्याह हो गया था सफेद बारादरी का मैदान

प्रवेश करने के लिए अंग्रेज कई रास्तों से आगे बढ़ रहे थे। अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए क्रांतिकारी सभी रास्तों पर मोर्चा संभालते थे। आलमबाग युद्ध में कितनी जाने गईं। इसका जिक्र नहीं मिलता है, लेकिन क्रांतिकारियों द्वारा पूरी ताकत लगाने के बाद भी अंग्रेजी फौज की एक टुकड़ी कैसरबाग पहुंच गई थी। जहां फिर से क्रांतिरियों ने उनपर हमला कर अंग्रेजों को आगे बढ़ने से रोका। इसमें सैकड़ों लोग मारे गए। चक्कर वाली कोठी से लाल बारादरी, वर्तमान में सफेद बारादरी का मैदान क्रांतिकारियों के लहू से स्याह हो गया था। मैदान क्रांतिकारियों की लाशों से पट गया था। इस मंजर को देखकर भी क्रांतिकारियों का हौसला पस्त नहीं हुआ। अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ नारेबाजी करते क्रांतिकारी शहीद साथियों का बदला लेने के लिए तैयार नजर आए।

बेगम हजरत महल ने की थी मदद

काकोरी शहीद आयोजन समिति के महामंत्री उदय खत्री ने बताया कि क्रांतिकारियों की मदद के लिए बेगम हजरतमहल आगे आईं। बारादरी के तहखाने में छिपे क्रांतिकारियों को भोजन का इंतजाम उनके जिम्मे था। क्रांति की आग इस कदर भड़क गई थी कि अंग्रेज भेड़ियों की तरह क्रांतिकारियों को तलाश रहे थे। ऐसे मेें उनके लिए भाेजन का इंतजाम करना किसी चुनौती से कम नहीं था। मुखबिरों की सूचना के चलते हुए हमले में क्रांतिकारी शहीद हो गए, लेकिन बेगम हतरत महल द्वारा क्रांतिकारियों की मदद की जानकारी किसी को भी नहीं हो सकी। 


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