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बेजुबानों की आवाज : न समाज की फिक्र न घर की चिंता, बस इनके दर्द को दूर करना दिनचर्या का हिस्सा

सुनी बेजुबानों की आवाज थिएटर कलाकर कल्याणपुर की मधु सिंह बनी बेजुबानों की पालनहार।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Sun, 21 Jun 2020 01:00 PM (IST)Updated: Sun, 21 Jun 2020 01:00 PM (IST)
बेजुबानों की आवाज : न समाज की फिक्र न घर की चिंता, बस इनके दर्द को दूर करना दिनचर्या का हिस्सा
बेजुबानों की आवाज : न समाज की फिक्र न घर की चिंता, बस इनके दर्द को दूर करना दिनचर्या का हिस्सा

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। सुनी बेजुबानों की आवाज : बदलते परिवेश में सबकुछ बदलने लगा है। डिजिटल युग की भागमभाग जिंदगी में जब लॉकडाउन का ब्रेक लगा तो हर कोई अपने घरों में कैद हो गया। बिना जरूरत के बाहर आने की गुस्ताखी किसी ने की तो पड़ोसियों ने टोक कर अंदर कर दिया। कोरोना के संक्रमण से अपनी और परिवार की सुरक्षा को सर्वोपरि मानने वाले ऐसे लोगों के बीच कुछ ऐसे लाेग भी थे जो खुद की फिक्र के साथ बेजुबानों के दर्द को भी महसूस करने में लगे थे। राजधानी के कल्याणपुर निवासी व थिएटर कलाकार मधु सिंह का नाम भी उन्हीं की श्रेणी में आता है। बेजुबानों की पालनहार बनी इस कलाकार के बारे में जानें...

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इश्क जादे, बुलेट राजा, एक तमन्ना और दास देव सहित कई फिल्मों में अभिनय कर चुकी मधु सिंह थिएटर कलाकार के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं। अधिकतर दिग्गज थिएटर कलाकार के साथ राजधानी के मंच पर काल्पनिक किरदारों को निभाकर 5587 पुरस्कार जीते। मधु बेजुबानों के लिए हकीकत का किरदार निभा रही हैं। अपने उप नाम कुत्ते वाली दीदी के बारे में उनका कहना है कि उन सब पुरस्कारों से कहीं अधिक खुशी देने वाला मेरा उपनाम है। न समाज की फिक्र न घर की चिंता, बस बेजुबानों के दर्द को दूर करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है।

पिता से सीखा, जीवन में उतारा

बचपन में पिता ने जो बेजुबानों की सेवा का सबक सिखाया था उसे उनके जाने के बाद जीवन में उतार लिया। अब बेजुबानों की सेवा के लिए तीन से चार किमी पैदल चलना भी मधु के लिए आम बात हो गई है। भाई के साथ रहती हैं और बेजुबानों की सेवा में वह अपनी पूरी कमाई लगा देती हैं। लॉकडाउन में सबकुछ बंद था। फिल्म तो छोड़िए नाटक का मंचन भी बंद था। अपना खर्च निकाल कर पूरी कमाई बेजुबानों पर खर्च कर दिया। कुछ दिन बाद अपने खर्च के लिए कुछ नहीं बचा लेकिन भाई उनका खर्चा वहन करते थे। अपने खाने का एक तहाई भाग बेजुबानों के लिए निकाल कर खिलाने लगी, लेकिन सभी बुजुबानों के लिए नाकाफी था। मधु ने लॉकडाउन के दौरान राशन वितरण वाले से संपर्क किया। उन्होंने 15 दिन का राशन दिया। स्ट्रीट डाग के साथ खड़ी मधु को देख राशन देने वाले भी दंग रह गए। ऐसे ही मांग कर उन्होंने खुद आधा पेट खाकर बेजुबानों का पूरा पेट भरने का काम किया।

15 साल पहले मिली प्रेरणा

मधु बताती हैं कि 15 साल पहले एक घायल पालतू डाग की सेवा के साथ मुझे बेजुबानों की सेवा करने की प्रेरणा मिली। घर वालों की डाट के बावजूद मैं घायल डाग को घर ले आई आैर उसका इलाज कर ठीक कर दिया। उसके साथ और भी स्ट्रीट डाग आने लगे और अब वह उनकी दीदी बन गई। स्ट्रीट डॉग ही नहीं बेजुबान बेसहारा घायल मवेशियों का इलाज करना और उनको भोजन कराना भी उनकी दिनचर्या का हिस्सा हो चुका है। उनका कहना है कि अब जब तक जीवन है बेजुबानों की सेवा करती रहूंगी। लोग कुछ भी कहें, बेजुबान तो मुझे अपना समझते हैं।


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