अयोध्या, [रघुवरशरण]। राम मंदिर आंदोलन के शलाका पुरुष एवं दिग्गज संत रामचंद्रदास परमहंस ने दो दशक पूर्व जिस शिला को मंदिर निर्माण के लिए अर्पित किया था, उसे राम मंदिर परिसर में स्थापित किया जाएगा। यह शिला जिला शासकीय कोषागार में दो दशक से संरक्षित है और रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इसे प्राप्त करने के लिए प्रशासन को पत्र लिखा है।
आज मंदिर निर्माण पूर्व निर्धारित और नियोजित मानचित्र के अनुरूप किया जा रहा है और उसमें तय मानक के अलावा पत्थर का एक टुकड़ा भी नहीं प्रयुक्त किया जाना है। इसके बावजूद परमहंस की शिला का मंदिर निर्माण में विशेष महत्व है। वह 15 मार्च, 2002 की तारीख थी, जब मंदिर निर्माण का मार्ग दूर-दूर तक नहीं नजर आ रहा था। ऐसे में परमहंस ने स्वयं को दांव पर लगाया और कहा कि यदि मंदिर निर्माण नहीं सुनिश्चित हुआ, तो वह विष पान कर प्राण त्याग देंगे।
परमहंस की इस घोषणा से दिल्ली की तत्कालीन अटल सरकार हिल गई थी और सरकार के दूत के रूप में अयोध्या पहुंचे आइएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह ने मंदिर निर्माण की प्रतीकात्मक शुरुआत के तौर पर परमहंस के हाथों से शिला स्वीकार की। यह मंदिर आंदोलन के परमहंस जैसे नायकों का ही दबाव था, जिसके परिणामस्वरूप सच्चाई जानने के लिए 2.77 एकड़ के रामजन्मभूमि के निकटतम परिसर के भूगर्भ की जांच कराई गई और एएसआइ की ओर से प्रस्तुत जांच रिपोर्ट कालांतर में रामजन्मभूमि मुक्ति के निर्णय का ठोस आधार बना।
नायकत्व की यात्रा में मील का पत्थर : शिलादान के दौरान परमहंस के साथ छाया की तरह मौजूद रहे उनके शिष्य आचार्य नारायण मिश्र के अनुसार रामजन्मभूमि की मुक्ति के फलक पर गुरुदेव का अवदान अविस्मरणीय है और उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए जो शिला अर्पित की थी, वह उनके नायकत्व की यात्रा में मील के पत्थर की तरह है।
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