नेशनल सेफ मदरहुड डे: गर्भावस्था में न लें कोई रिस्क, इन बातों का रखें विशेष ध्यान
11 अप्रैल को नेशनल सेफ मदरहुड डे के मौके पर दैनिक जागरण ने एक्सपर्ट से बात की, जो अब आपको बता रहा है।
लखनऊ[कुसुम भारती]। किसी भी महिला के लिए मातृत्व सुख ईश्वर का दिया वह अनमोल उपहार है जो एक स्त्री को पूर्णत: का अहसास कराता है। मा बनने की अनुभूति बेहद सुखद होती है। मगर इस दौरान गर्भवती महिला को सावधानी बरतना भी जरूरी होता है, क्योंकि अक्सर लापरवाही के चलते बहुत सी महिलाएं मातृत्व सुख से वंचित भी रह जाती हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को अपने खानपान, रूटीन चेकअप और एक्सरसाइज का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 11 अप्रैल को नेशनल सेफ मदरहुड डे के मौके पर दैनिक जागरण ने एक्सपर्ट से बात की, जो अब आपको बता रहा है।
हर महीने 9 तारीख को होती हैं फ्री जाचें
वीरागना अवंतीबाई महिला चिकित्सालय (डफरिन), लखनऊ की प्रमुख चिकित्सा अधीक्षिका, डॉ. सविता भट्ट कहती हैं, ज्यादातर गर्भवती स्त्रियों की किसी न किसी कारण से गर्भावस्था के दौरान या फिर बच्चे के जन्म के बाद मौत हो जाती है जिनमें सबसे प्रमुख कारण खून की कमी का होना है। इनमें ज्यादातर वही महिलाएं होती हैं, जो गर्भावस्था के दौरान रूटीन चेकअप के लिए हॉस्पिटल नहीं जाती हैं। इसलिए उन्हें पता ही नहीं चलता है कि उनके भीतर स्वास्थ्य संबंधी कौन सी दिक्कतें आ रही हैं। इस दौरान बहुत सी गर्भवती महिलाओं को खून की कमी होना, ब्लड प्रेशर की समस्या, अनुचित खानपान या सही डाइट न लेना, किडनी, लीवर, शुगर, थायरॉयड आदि समस्याएं हो जाती हैं। मगर, समय पर जाच न करवाने से उन्हें इन रोगों का पता ही नहीं चल पाता और वे हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में चली जाती हैं। गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर को नियंत्रित करने के लिए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान' (पीएमएसएमए) चलाया। केंद्र सरकार की इस योजना के तहत हर महीने की 9 तारीख को सरकारी अस्पतालों में सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है। इस दिन को हम एक उत्सव की तरह मनाते हैं। हालाकि, सरकारी अस्पतालों में हर दिन गर्भवती महिलाओं की सारी जाचें होती हैं पर हर महीने 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं की सारी बेसिक जाचें होती हैं जिनमें किडनी, लीवर, शुगर, खून की कमी, बीपी, थायरॉयड, अल्ट्रासाउंड आदि शामिल हैं। जाच में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी को चिन्हित किया जाता है। एंटी नेटल चेकअप कराया जाता है और जो महिलाएं चिन्हित की जाती हैं उनका समय से इलाज से शुरू हो जाता है। यही वजह है कि पहले से अब गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर में कमी आई है। महिलाएं भी अब अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रही हैं। वहीं, दूर-दराज या ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को जागरूक करने के लिए कैंप लगाकर या सीएचसी, पीएचसी पर भी इन जाचों को कराया जाता है। जिसमें रिटायर डॉक्टर व प्रैक्टिशनर्स भी अपना योगदान दे रहे हैं। भारत में मृत्यु दर का रेशियो एक लाख में 178 है। वहीं, उत्तर प्रदेश में और कम हुआ है।
शरीर में पानी की कमी न होने दें
डॉ. राममनोहर लोहिया चिकित्सालय, लखनऊ में डाइटीशियन नीलम गुप्ता कहती हैं, गर्भावस्था के दौरान सबसे ज्यादा खानपान का ध्यान रखना चाहिए। वहीं, चाहे वर्किंग हो या गृहिणी सभी के लिए संतुलित व पौष्टिक भोजन का सेवन बहुत जरूरी है। सवेरे उठकर बॉडी वेट के अनुसार दो-तीन गिलास गुनगुना या नार्मल पानी का सेवन करें। थोड़ी देर बाद ताजी हवा लेने के लिए पार्क में टहलने जाएं। यदि चिकित्सक से सलाह ली है तो योगा या कोई भी दूसरी एक्सरसाइज करें। शरीर में पानी की कमी न होने दें। थोड़ी-थोड़ी देर में पानी, शिकंजी, जूस, छाछ, नारियल पानी जैसे लिक्विड डाइट लेती रहें।
संतुलित व पौष्टिक भोजन लें
इसके बाद रिच प्रोटीन युक्त नाश्ता करें। जिसमें चना, पनीर, दूध, कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थ लें। नाश्ते में गेहूं से बने खाद्य पदार्थ जरूर शामिल करें। सामान्य या स्टफ पराठा, सैंडविच, आमलेट के साथ ब्रेड, वेजिटेबल सैंडविच लें। प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ जिनमें दूध, अंडा, दाल से बनी चीजें, ताजे फल, जूस ले सकती हैं। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और मिनरल युक्त नाश्ता स्वास्थ्यवर्द्धक होता है। लंच और ब्रेक फास्ट के बीच के समय में छाछ, नारियल पानी, जूस अािद का सेवन करें। लंच में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, मिनरल व विटामिन युक्त भोजन करें। दाल, रोटी, सब्जी, चावल, सलाद, एक कटोरी दही लें। शाम को चाय के समय यदि आपको कोई रोग नहीं है तो सीमित मात्रा में स्नैक्स के साथ चाय, कॉफी ले सकती हैं। रात का भोजन सोने से दो घटे पहले करें। समय निकालकर ईवनिंग वॉक भी करनी चाहिए। डिनर में भी प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल व विटामिन युक्त संतुलित भोजन करें। भोजन में इनका काबिनेशन बहुत जरूरी है। कोशिश करें कि रात का भोजन हल्का हो और चावल और रोटी का सेवन न के बराबर करें। यदि कोई रोग नहीं है तो अपने भोजन में हरी पत्तेदार सब्जिया, मौसमी फल जरूर शामिल करें। खाना खाने से आधा घटा पहले और बाद में ही पानी पीएं। किसी भी मील को स्किप करने की बिल्कुल कोशिश न करें। यह भी ध्यान रखें कि अपनी भूख से कम खाएं यानी सौ फीसद भूख है तो केवल 75 फीसद ही खाएं। हमेशा भरपेट भोजन न करें। हर मील में कम से कम दो घटे का अंतर रखें। हैवी ब्रेक फास्ट, मीडियम लंच और लाइट डिनर एक आइडल डाइट है। गर्भावस्था के दौरान खानपान पर विशेष ध्यान दें और किसी डाइटीशियन से सलाह ले और डाइट चार्ट जरूर बनवाएं। गर्भावस्था में करें स्पेशल एक्सरसाइज
फिटनेस ट्रेनर, रश्मि वर्मा कहती हैं, प्रेग्नेंसी के दौरान मैं स्पेशल एक्सरसाइज कराती हूं। हा, प्रेग्नेंट लेडीज को पहले अपनी गाइनो या डॉक्टर से सलाह लेने को जरूर कहती हूं। उसके बाद ही मैं अपनी एक्सरसाइज कराती हूं। इस दौरान डीप ब्रीदिंग बहुत फायदेमंद होती है। इसके अलावा अनुलोम-विलोम, स्ट्रेच, पैरों से संबंधित एक्सरसाइज की जा सकती है। पहले महीने से लेकर नवें महीने तक डीप ब्रीदिंग मा और बच्चे दोनों के लिए लाभदायक होती है। हा, शुरू के तीन महीने थोड़ा सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि ये तीन महीने रिस्की होते हैं। तीन महीने बाद यदि महिला को कोई हेल्थ प्रॉब्लम नहीं है तो डॉक्टर ने सलाह दी है तो एक्सरसाइज करनी चाहिए। इस दौरान बैक स्ट्रेचिंग, लेग सर्किल, ब्रीदिंग, लेग अप्स एंड डाउन, साइड लेग रेस, बैक एक्सरसाइज कराती हूं। प्रेग्नेंसी में पैरों के बीच में फैट हो जाता है लेग एक्सरसाइज के जरिए दूर किया जा सकता है।