गांधी जयंती: बापू के चरखे की गति हुई धीमी, कहीं थम न जाए Sultanpur News
सुल्तानपुर में क्षेत्रीय गांधी आश्रम अपना अस्तित्व बचाने में लगा है। बुनकरों का नहीं हो पा रहा है भुगतान।
सुलतानपुर [गोपाल पांडेय]। स्वतंत्रता आंदोलन से आमजन को जोडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला बापू का चरखा संकट में है। आर्थिक और नैतिक प्रोत्साहन के अभाव में स्थानीय क्षेत्रीय गांधी आश्रम अपना अस्तित्व बचाने की कवायद में लगा है। केंद्र और राज्य खादी बोर्ड पर आश्रम के तकरीबन एक करोड़ रुपये छूट के बकाए से बुनकरों का भुगतान नहीं हो पा रहा है। जिससे आश्रम के कार्यकर्ता गांधीवादी और खादी को भावनात्मक पोषण देने तक सिमटे हैं।
1990 में स्थापित क्षेत्रीय आश्रम में कभी छह करोड़ तक का सालाना व्यवसाय करने वाले गांधी आश्रम का वार्षिक कारोबार दो करोड़ पर सिमट गया है। यहां की चरखा काटने की परंपरा गांधी जयंती तक ही सिमट गई है आश्रम के कार्यकर्ता सूत काटने की व्यवस्था का औपचारिक अनुपालन करते हैं। माली हालत इतनी खस्ता है कि कपड़ों की बुनाई-धुलाई और रंगाई तक बाधित है।
जीएसटी बनी बाधा
राष्ट्रीय झंडा, गांधी टोपी और सूत के अलावा सभी खादी उत्पादों पर पांच से 12 फीसद जीएसटी लगता है। इससे उत्पादन में गिरावट आई है और खादी स्टेटस ङ्क्षसबल बनकर रह गई है। आम लोगों ने भी खादी से दूरी बना ली है।
नहीं होता प्रोत्साहन
सरकार खुद ही खादी के प्रोत्साहन को लेकर संजीदा नहीं है। खुद सरकारी विभाग के अधिकारी भी अपने कक्षों में लगे पर्दे दूसरी जगहों से खरीदते हैं। प्रशासन भी निराश्रितों को वितरित करने के लिए कंबल आदि की खरीद आश्रम से नहीं करता।
बंद हो रहे चरखा केंद्र
जिले में रामगंज, अखंडनगर और अमेठी आश्रम समेत चार कताई-बुनाई केंद्र हैं। समय से भुगतान न होने पर बुनकर इस व्यवसाय से अलग हो रहे हैं। आधुनिक चरखों का संचालन नहीं हो पा रहा है और बुनाई केंद्र बंद हो रहे हैं।
इन उत्पादों में अग्रणी :
सुलतानपुर क्षेत्र आश्रम को पुरुष धोती, गमछा और गद्दे के निर्माण में महारत हासिल है। पहनावे में धोती गायब होने से इसकी आपूर्ति कम हो गई है। आश्रम के मंत्री सतीश चंद्र उपाध्याय ने कहा कि यदि रीबेट, एमडीए का भुगतान हो जाए तो आश्रम की गतिविधियां तेज हो जाएंगी।