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स्वतंत्रता दिवस विशेष: सिर्फ शौक नहीं-परंपरा है पतंगबाजी, आजादी के पहले शुरू हुई इसकी कहानी

आकाश में तैरती रंग-बिरंगी पतंगों के ट्रेंड में समय के साथ हुए कई बदलाव। स्वतंत्रता दिवस को लेकर शहर में तिरंगा बनी पतंगों की सबसे ज्यादा डिमांड।

By Edited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 01:59 PM (IST)Updated: Wed, 15 Aug 2018 08:31 AM (IST)
स्वतंत्रता दिवस विशेष: सिर्फ शौक नहीं-परंपरा है पतंगबाजी, आजादी के पहले शुरू हुई इसकी कहानी
स्वतंत्रता दिवस विशेष: सिर्फ शौक नहीं-परंपरा है पतंगबाजी, आजादी के पहले शुरू हुई इसकी कहानी

लखनऊ [मुहम्मद हैदर]। आजादी से पहले साइमन कमीशन का विरोध दर्ज कराने का बेहतरीन जरिया रहीं रंग-बिरंगी पतंगों के ट्रेंड में कई आकर्षक बदलाव तो हुए लेकिन परंपरा वही रही। पहले जहां आकाश में तैरती इन पतंगों पर चंद किरदारों का ही कब्जा रहता था वहीं अब बॉलीवुड स्टार और चर्चित नेताओं की तस्वीर वाली पतंगें सबसे ज्यादा पसंद की जा रही हैं।

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पतंगों की बनावट से लेकर पतंगबाजी और इससे जुड़े किस्सों में नवाबी शहर की अलग पहचान है। ओल्ड काइट लाई एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अमरनाथ कौल बताते हैं कि अब पेच काटने की ट्रिक से ज्यादा ताकत का इस्तेमाल होता है जबकि पहले, ताकत से ज्यादा ट्रिक का इस्तेमाल होता था। इसके बावजूद आज भी जब लखनऊ का कोई पतंगबाज किसी टूर्नामेंट में बरेली के बने मांझे पर लखनऊवा पतंग आसमान में चढ़ाकर दूसरों के पेंच काटता है तो हर दर्शक के मुंह से वाह निकल ही जाती है। यहां रहने वालों में पतंगबाजी के गुर सिखाने नहीं पड़ते, घर ही छत पर ही बच्चों को पतंगबाजी की ट्रेनिंग मिलती है।

इस बार भी 15 अगस्त के दिन शहर में जगह-जगह रंग-बिरंगी पतंगों से आसमान सजेगा। स्वतंत्रता दिवस को लेकर पतंगों का बाजार सज चुका है। इस बार नेताओं की फोटों के अलावा तिरंगे वाली पतंगों की सबसे ज्यादा डिमांड है। साइमन गो बैक लिखकर उड़ाई थी पतंग: स्वतंत्रता आंदोलन में भी पतंगबाजी ने अहम भूमिका निभाई थी। लोग सुबह से ही अपने घरों की छतों पर पहुंचकर पतंगबाजी करते थे। इन पतंगों पर तरह-तरह के संदेश लिखे होते थे।

आजादी से पहले ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया था, तो लोगों ने पतंगों पर साइमन गो बैक का नारा लिखी पतंग उड़ाकर अपना विरोध दर्ज कराया था। इसी तरह सन 1857 में लखनऊ रेजीडेंसी के ब्रिटिश अधिकारियों ने एक पतंग के जरिए अपना गुप्त संदेश किला मच्छी भवन तक पहुंचाया था। आज भी यह परंपरा जीवित है। शहर की दुकानों पर सरकार की योजनाओं के नारे लिखी पतंग बिक रही है। किसी पर बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ का संदेश लिखा है, तो किसी पर सबका साथ-सबका विकास लिखा है। इसके अलावा पतंगें स्वास्थ्य, शिक्षा, मतदान व अन्य समाजिक मुद्दों पर लोगों में जागरुकता पैदा करने का काम भी कर रही हैं।

छत पर गिरी पतंग तो बनता था पुलाव : नवाबों की पतंगें बेहद खूबसूरत तरीके से सजी होती थीं। इन पतंगों में सोने और चांदी के तारों का छल्ला बंधा होता था। ये पतंगें जिसके घर की छत पर कटकर गिरती थीं उसके घर उस दिन पुलाव पकता था। जानकारों के मुताबिक नवाब सआदत अली खां ने पतंग लड़ाने की शुरुआत की थी, इसके बाद बादशाह अमजद अली ने भी पतंगबाजी को आगे बढ़ाया। नवाब वाजिद अली शाह चौक में मछली वाली बारादरी की छत से पेंच लड़ाया करते थे।

दिल खुश और दिमाग संतुलित : मान्यता है कि पंतग खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की वाहक है। संक्रांति के दिन से घर में सारे शुभ काम शुरू होते हैं, वो शुभ काम पतंग की तरह ही सुंदर हो इसलिए पतंग उड़ाई जाती है। पतंग उड़ाने से दिल खुश और दिमाग संतुलित रहता है, उसे ऊंचाई तक उड़ान और कटने से बचाने के लिए हर पल सोचना इंसान को नई सोच और शक्ति देता है।

चार पीढि़यों से कायम है परंपरा: पहले के मुकाबले पतंगबाजी के शौक में लगातार इजाफा हो रहा है। चौक के रहने वाले मुहम्मद इरफान अपनी चार पीढि़यों से पतंग बनाने का काम कर रहे हैं। अपने खानदान की चौथी पीढ़ी से ताल्लुक रखने वाले इस पतंग साज की पतंगें आजादी की लड़ाई से लेकर अन्ना हजारे के आंदोलन तक का हिस्सा बनी हैं।

लखनऊ के अलावा दिल्ली, भोपाल, जयपुर, अहमदाबाद, कोलकाता सहित प्रदेश के कई शहरों में अपनी पतंगों का परचम लहरा चुके इरफान ने बताया कि हमारे यहां 1917 से पतंग बनाने का काम हो रहा है। जब मेरी उम्र सात साल थी। सन् 1977 से लखनऊ महोत्सव के तहत होने वाले पतंग महोत्सव में इरफान अपनी पतंगों के साथ शामिल हो रहे हैं। कई खिताब भी जीत चुके हैं। आज भी उनके पास सौ साल से अधिक पुरानी पतंगें मौजूद हैं। वहीं, हुसैनाबाद, सआदतगंज व चौपटिया सहित कई इलाकों में पतंग बनती है। इसके अलावा शहर में मांझा भी बनता है। हालांकि, शहर में बिकने वाला 90 फीसद मांझा बरेली से आता है।

लगता है रंगबिरंगी पतंगों का जमघट : वैसे तो लखनऊ के आसमान पर साल भर रंगबिरंगी पतंगों का जमघट लगा रहा है, लेकिन पतंगबाजी का सबसे ज्यादा क्रेज जमघट, रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस पर दिखता है। इन मौके पर ¨हदू-मुस्लिम सहित अन्य धर्मो के लोग पतंगबाजी करते हैं। पुराने शहर स्थित वजीरगंज, हुसैनाबाद, विक्टोरिया स्ट्रीट, सआदतगंज व खदरा सहित गोमती नगर, इंदिरा नगर व अलीगंज आदि नई कालोनियों में पतंगबाजी के शौकीनों की लम्बी तादात है। घर की छत हो या फिर मैदान। हर जगह पतंगबाजों का जमावड़ा लगाता है।

शहर में दो सौ से अधिक काइट क्लब : लखनऊ में दो सौ से अधिक काइट क्लब हैं। यह क्लब तीन एसोसिएशन से जुड़े हैं। ओल्ड काइट लाई एसो. सबसे पुरानी हैं। इसके अलावा काइट कांटेस्ट आर्गनाइजेशन व लखनऊ काइट लाई एसो. हैं। शहर के इन काइट क्लबों में साल भर पतंगबाजी का मुकाबला होता रहता है। शहर के यह काइट क्लब कई बार ऑल इंडिया टूर्नामेंट का खिताब अपने नाम कर चुके हैं।

करवा चौथ की रात सफेद पतंगबाजी: पतंगबाजी के शौकीन मो. अबू बकर कहते हैं, अब पतंग की स्पीड बढ़ी है। पहले जितनी देर में एक पेंच होता था उतनी देर में अब पंद्रह पेंच हो जाते हैं। करवा चौथ की रात को सफेद रंग की पतंग उड़ाने की परंपरा है। फिलहाल, 15 अगस्त पर पेंच लड़ाने की तैयारी की है।


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