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संस्कार से सुकून तक, यह मिलता है खुद को खुद का साथ

युवाओं के लिए धर्म, विरासत में मिले संस्कार और रीति-रिवाज। अध्यात्म- सुकून देती खुद की प्रवृत्ति। दैनिक जागरण के संवाददाता की खास रिपोर्ट-

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Jun 2018 04:47 PM (IST)Updated: Thu, 28 Jun 2018 04:49 PM (IST)
संस्कार से सुकून तक, यह मिलता है खुद को खुद का साथ
संस्कार से सुकून तक, यह मिलता है खुद को खुद का साथ

लखनऊ [राफिया नाज]। धर्म संस्कार है तो अध्यात्म ऐसा कोई भी सकारात्मक विचार जो सुकून की ओर ले जाता हो। धर्म है पारलौकिक शक्ति में अटूट विश्वास तो अध्यात्म से मिलता है खुद को खुद का साथ। सुख की श्रेष्ठतम अवस्था का आभास करने के लिए युवाओं का जीवन दर्शन कुछ जुदा है। उनके लिए धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करना, पूजा और ध्यान करते रहने से इतर भी अध्यात्म कुछ है। अपने जीवन में तय किए गए लक्ष्य के लिए की जा रही कोशिशें भी कहीं न कहीं उनको अध्यात्म से जोड़ रही हैं। किसी के लिए संगीत तो किसी के लिए माता-पिता की सेवा ही अध्यात्म का एक रूप है। लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की प्रो.मधुरिमा प्रधान की रिसर्च कुछ यही कहती है। उन्होंने शहर के 412 युवाओं पर रिसर्च की जिसमें पाया कि उनके लिए धर्म उन्हें विरासत में मिले संस्कार और रीति-रिवाज हैं, जबकि अध्यात्म उन्हें सुकून देती खुद की प्रवृत्ति। साथ ही रिसर्च में सामने आया कि लड़किया लड़कों से ज्यादा आध्यात्मिक हैं। दैनिक जागरण के संवाददाता की रिपोर्ट-

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स्पिरिचुअल पेरेंट से स्पिरिचुअल यूथ तक:

मधुरिमा प्रधान ने बताया कि स्पिरिचुअल शब्द का प्रयोग एक विशेषण के रूप में करने का चलन अक्सर दिखाई देने लगा है। जैसे स्पिरिचुअल पेरेंट, स्पिरिचुअल टीचर, स्पिरिचुअल वाइफ, स्पिरिचुअल म्यूजिक आदि। भारत की 34 -35 प्रतिशत जनसंख्या यूथ है, तो क्या यह विशेषण युवा के साथ भी जोड़ा जा सकता है जैसे स्पिरिचुअल यूथ। इस जिज्ञासा के साथ एक सर्वे किया गया जिससे यह जानने का प्रयास किया गया है कि आज का युवा स्पिरिचुअलिटी से क्या समझता है।

स्वयं को जानने का बेहतर तरीका :

लखनऊ विश्वविद्यालय के सायकोलॉजी विभाग के जूनियर रिसर्च फेलो भानू ने बताया कि धर्म बुराई से रोकता है और अध्यात्म का मतलब होता है खुद को जानना। अध्यात्म को मैं खुद को भगवान से जोड़ने को मानता हूं। इसके लिए मैं रोजाना ध्यान लगाता हूं और विपश्यना ध्यान तकनीक का उपयोग करते हैं। मैं गुस्से, काम आदि पर नियंत्रण रखता हूं यह चीजें मेरे लिए अध्यात्म हैं। क्या कहती है रिसर्च:

शोध में शामिल किए गए कुल युवाओं में से 33 प्रतिशत युवाओं ने इसे ईश्वर के प्रति विश्वास व श्रद्धा बताया जबकि 42 प्रतिशत लोगों ने तो यह कहा कि वे इसके बारे में नहीं जानते या इससे धार्मिकता के समकक्ष बताया। सात प्रतिशत ने इससे जीवन में सकारात्मकता प्राप्त करने का साधन। वहीं 6 प्रतिशत ने आत्मा को शुद्ध करने का जरिया कहा। 12 प्रतिशत ने कहा कि बड़ों का आदर करना, दूसरों के प्रति सहायता करने का भाव रखना, शाति, आतरिक शक्ति प्राप्त करना, अच्छे कार्यो को करने की ओर प्रेरित होना ही आध्यात्मिकता है।

खुद को संयमित करना सिखाता है:

नेशनल पीजी कॉलेज की सायकोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.नेहा श्री ने बताया कि हर आदमी की संतुष्टि का लेवल अलग होता है। स्पिरिचुअलिटी एक विश्वास है, यह साइंटिफिक होता है जिसे आजकल लोगों ने धर्म से जोड़ लिया है। किसी भी काम में जरूरत से ज्यादा मशगूल होने से दिक्कत होती है। ईश्वर सदा मेरे साथ ही हैं इसके लिए मुडो रोज हाजिरी लगाने की जरूरत नहीं है। साथ ही अगर किसी की तारीफ करके आपको खुशी भी मिलती है तो यह भी अध्यात्म है। जीवन के हर क्षण को इंज्वाय करना चाहिए। यह आप पर निर्भर करता है कि आप किसी भी चीज को कैसे लेते हैं। अध्यात्म को लेकर क्या सोचते हैं युवा-

खुद को नियंत्रित करने की प्रक्रिया है अध्यात्म:

लखनऊ विश्वविद्यालय की जूनियर रिसर्च स्कॉलर सुरभि श्रीवास्तव ने बताया कि धर्म अध्यात्म से बिल्कुल अलग है। मेरे लिए अध्यात्म मेरी पढ़ाई है, जिसमें मैं अपना 100 प्रतिशत देना चाहती हूं। इसमें बेहतर करके जो सुकून मिलता है वह किसी और काम में नहीं। मैं हर भाव को नियंत्रित करने के लिए पढ़ाई करने लगती हूं। वो गुस्सा या खुशी कुछ भी हो सकता है।

जो आपको सकारात्मकता से भर दे:

रिसर्च स्कालर प्रियंका गौतम ने बताया कि स्पिरिचुअलिटी आपकी आत्मा में क्या है उसे कहते हैं। पॉजिटिव सोच ही अध्यात्म है। धर्म एक हद तक होता है, सारे धर्म बराबर होते हैं। हमें सबको सम्मान देना चाहिए। मेरे लिए अध्यात्म का मतलब अपने बच्चों को सही शिक्षा देना, उन्हें सही रास्ते पर चलने की सलाह देना है। इसके लिए मैं कोशिश भी करती हूं इससे मुझे खुशी भी मिलती है। हर भाव को जीना सिखाता है :

लखनऊ विश्वविद्यालय की पोस्ट डॉक्टरेट इन ब्रेस्ट कैंसर की शिखा आनंद ने बताया कि जिस चीज से आपको पॉजिटिविटी मिले उसे अध्यात्म कहते हैं। मेरा हमेशा से सपना था कि मैं डॉक्टर बनूं, बहुत मेहनत के बाद भी मेरा सेलेक्शन नहीं हो पाया। उस समय मुडो काफी निराशा हुई, लेकिन फिर भी मैंने हार नहीं मानी और सायकोलॉजी में एडमिशन लिया। आज मैं ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों पर डॉक्टरेट कर रही हूं इसलिए हमेशा लाइफ में यह सोचना चाहिए कि अगर कोई चीज आप नहीं कर पा रहे हैं तो शायद आपके लिए कोई दूसरा अच्छा रास्ता ईश्वर ने चुना होगा।


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