विशेष: एक मुकाम तक आया यह सफर
कला संसार: 'जिंदगी एक कविता' के साथ 26वें बाल कला महोत्सव का समापन।
लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। 15 मई 1993 से रंगकर्म विद्यार्थी के घर की छत से शुरू सफर ने विविध आयाम तय किए। महज अभिनय और रंग नहीं यह जिम्मेदारी की यात्रा है। वरिष्ठों का कुशल मार्गदर्शन और बाल, किशोर व युवा वर्ग की ऊर्जा इसकी आत्मा है। 26 वर्षो में 'बाल पर्व' और जवा होकर 'बाल कला महोत्सव' बन गया है। वरिष्ठ रंगकर्मी जितेंद्र मित्तल की सोच इसका आधार है। अब पुनीत मित्तल पिता की जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। साथ ही कला संपन्न लोगों की ऊर्जावान टीम है। 1999 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान से नवाजे गए लेखक, निर्देशक और वरिष्ठ रंगकर्मी जितेंद्र मित्तल बताते हैं, विकास नगर में अपने विद्यार्थी की छत पर 'उलटी दुनिया', 'अंधेर नगरी, चौपट राजा' नाटक की रिहर्सल शुरू की। 25-26 जून 1993 में बली प्रेक्षागृह में नाट्य मंचन किया। निर्देशक सलीम आरिफ ने सीरियल बनाने की बात कही। 1994 में हमने फिर कार्यशालाएं शुरू कीं। दो साल बच्चों के साथ काम ने गजब की ऊर्जा दी। ऊर्जा बनी रहे इसलिए सफर को जारी रखने का निर्णय लिया। 1995 में फिर अभिनय कार्यशालाएं कीं। 1996 में मूर्तिकला, वेस्ट मैटीरियल से कलात्मक चीजें बनाना और पेंटिंग को शामिल किया। साथ ही वरिष्ठ संगीतकार स्व. रवि नागर बच्चों को गायिकी के गुर सिखाने के लिए जुड़ गए। 1998 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के सहयोग से इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फेस्टिवल, दिल्ली में शो किया। नाटक 'काटे बोए बबूल के तो.' कनाडा फेस्टिवल के लिए चयनित हुआ। फंड की कमी से हिस्सा नहीं ले सके। 2004 से डास को भी जोड़ा गया। 2007 में जश्न-ए-बचपन, दिल्ली में 'डब्ल्यू राजा' नाटक का मंचन किया गया। तब से अभिनय, नृत्य और चित्रकला की नियमित कार्यशालाएं करते आ रहे हैं। आधार स्तंभ: वरिष्ठ रंगकर्मी जितेंद्र मित्तल, स्व. वरिष्ठ संगीतकार रवि नागर, वरिष्ठ रंगकर्मी ललित सिंह पोखरिया, मुहम्मद हफीज आदि।
243 कार्यशालाएं 5000 बच्चे :
1993 से अब तक गर्मियों की छुट्टियों में 243 बाल नाट्य कार्यशालाएं कर चुके हैं। 32 बच्चों से शुरू सफर अब 5000 बच्चों तक पहुंच गया है। 6 से 16 आयुवर्ग तक के बच्चों का अभिनय के जरिए व्यक्तित्व विकास करते हैं। लोग जुड़ते गए कारवा बनता गया:
निर्देशक सलीम आरिफ, मूर्तिकला के माहिर निखिल कुमार श्रीवास्तव, ज्योति रत्न, रंगकर्मी चित्र मोहन, नृत्यागना वंदना तिवारी, वरिष्ठ कलाकार संजय देगलूरकर, सुखेश मिश्र, सुनील चतुर्वेदी, रमा अरुण त्रिवेदी, हेमंत कुमार, मीनू खरे, प्रीति श्रीवास्तव, रोजी दूबे और मोहम्मद इकबाल आदि। निकली प्रतिभा:
सिद्धात व सिद्धार्थ त्रिपाठी (स्कि्त्रप्ट राइटिंग), पार्थ खरे, सागर शर्मा (अभिनय), फराह खान (गायन) आदि। प्रियंका चोपड़ा भी आ चुकीं :
1998 में अलीगंज, निराला नगर और इंदिरा नगर में स्लम के बच्चों के साथ भी कार्यशालाएं कीं। निराला नगर के कार्यशाला के शुभारंभ के मौके पर अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा भी मौजूद रहीं।