वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट: सात समंदर पार फैला आवले का बाजार तो कहीं इटली के चमड़े से बन रहे आगरा के जूते
इंदिरा गाधी प्रतिष्ठान में आयोजित ओडीओपी समिट में लगी है प्रदर्शनी। 2007 में लकड़ी की डिजाइनिंग चौकी, बेड, डाइनिंग टेबल, आलमारी के इतर शतरंज व कैरम बोर्ड आदि बनाने के लिए नेशनल पुरस्कार जीत चुके हैं मुश्ताक अहमद।
लखनऊ[महेंद्र पाडेय]। जनपद 75 और उतने ही उत्पाद। हर जिले की सामग्री की अलग-अलग खूबिया। किसी ने प्रदेश में तो किसी ने देश में अपने उत्पादों के जरिए पहचान बनाई है। इनमें से प्रतापगढ़ के विपिन पाडेय ने देश ही नहीं, सात समंदर पार भी आवले का बाजार खोज लिया। वह पुष्पाजलि ग्रामोद्योग केंद्र में आवले से मुरब्बा, लड्डू, कैंडी, बर्फी, आचार आदि बनाते हैं। इसका अमेरिका, स्विटजरलैंड व सऊदी अरब तक निर्यात कराते हैं। ओडीओपी यानी वन डिस्टिक्ट वन प्रोडक्ट स्कीम में आवले के उत्पाद का चयन होने से उनके भी हौसले को पंख लग गए हैं।
विपिन कहते हैं कि हमारा प्रोडक्ट खाद्य विभाग से प्रमाणित है पर, अब ओडीओपी से इसकी ब्राडिंग हो सकेगी। वहीं, ग्रामोद्योग लगने से स्वरोजगार को बढ़ावा भी मिलेगा। इंदिरा गाधी प्रतिष्ठान में एक जनपद एक उत्पाद समिट की प्रदर्शनी में ऐसे कई स्टाल लगे हैं जिन पर प्रदर्शित उत्पाद बहुत खास हैं। हुनरमंदों ने 'दैनिक जागरण' से अपने अनुभव साझा किए। चित्रकूट के खिलौने हैं खास:
चित्रकूट के खिलौने देशभर में मशहूर हैं। शीशम, नीम आदि की लकड़ियों से लट्टू, डमरू जैसे खिलौने बनाने वाले कारीगर आम हैं। अब उनके उत्पाद भी खास बन गए हैं। वहा की काष्ठ कला में बचपन से रमे बलराम सिंह बताते हैं कि उनके पिता को अच्छे खिलौने बनाने के लिए शिल्प गुरु का सम्मान मिला था। पिता के काम आगे बढ़ाने पर सरकार ने उन्हें भी स्टेट अवार्ड दिया है। दस्तकारी का नमूना है हार्न-बोन आर्ट :
संभल की प्राचीन कला है हार्न-बोन आर्ट। जानवरों की हड्डी और सींग से बनाए जाने वाले ये उत्पाद लोगों की खास पसंद बने हैं। संभल के शाह आलम बताते हैं कि वह हड्डी और सींग से चूड़ी, कड़ा, नेकलेस, फोटो फ्रेम, ज्वैलरी बाक्स आदि बनाते हैं। इसके जरिए वह अपना और इस कारोबार में जुड़े दूसरों का भी जीवन संवार रहे हैं। उन्हें इसके लिए राज्य पुरस्कार भी मिल चुका है। ब्लैक पॉटरी से सजा रहे दूसरों का घर:
ब्लैक पॉटरी अमूमन प्रत्येक घरों में सजी दिख जाती है लेकिन, शायद ही लोगों को पता होगा कि ये आजमगढ़ की बनी होती हैं। वहा की पॉटरी की खास बात है कि बिना पेंट व पॉलिश किए उसकी चमक फीकी नहीं पड़ती। आजमगढ़ के शोहित प्रजापति बताते हैं कि कच्ची मिट्टी से पॉटरी बनाने के बाद उसकी घिसाई करते हैं। इसके बाद धुएं में पकाते हैं। अब तो इस विधि से खिलौने, घड़े, सुराही, गिलास आदि भी बनाए जा रहे हैं। इटली के चमड़े से बन रहे आगरा के जूते :
लेदर के जूते-चप्पल, पर्स आदि सभी की पसंद होते हैं। लेकिन कम लोग ही जानते होंगे कि इसमें प्रयोग किया जाने वाला ज्यादातर चमड़ा इटली से मंगाया जाता है। आगरा में लेदर से बने उत्पाद भी ओडीओपी में शामिल हैं। वहा के मो. शाकिर बताते हैं कि कच्चा माल इटली से मंगाया जाता है। फिर उसे यहा बनाकर क्वालिटी के अनुसार ब्राड नेम दिया जाता है। आगरा की हींग की मंडी में इससे बने प्रोडक्ट का बाजार लगता है। कालीन संग बुन रहे उम्मीदें :
सोनभद्र की कालीन तो देश भर में ख्याति प्राप्त है लेकिन, ओडीओपी में इस उत्पाद के चयनित होने से हुनरमंद अब कालीन में उम्मीदें भी बुनने लगे हैं। वहा के आनंद भारती बताते हैं कि रंग-बिरंगे धागों से बनी दरी और कालीन 10-15 वर्षो तक खराब नहीं होती। वह 20 वर्षो से कालीन बना रहे हैं। खादी ग्रामोद्योग विभाग ने उन्हें उत्कृष्ट उत्पाद बनाने के लिए सम्मानित भी किया है।
वाद्य यंत्रों से निकली तरक्की की आवाज:
अमरोहा के संतन सिंह दो दशक से वाद्य यंत्र का कारोबार कर रहे हैं, लेकिन अब उनके बनाए ढोल, तबला और गिटार जैसे उत्पादों से तरक्की की आवाज निकलने लगी है। वह बताते हैं कि उनके यहा के वाद्य यंत्रों की मजबूती का कोई जोड़ नहीं है। पिछले वर्ष मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें उत्कृष्ट राज्य उत्पाद पुरस्कार से भी नवाजा था।
बरेली के जरी की विदेशों में भी माग :
कपड़ों पर जरी की कढ़ाई आज भी लोगों की पसंद बनी हुई है। इसकी जितनी माग देश में है उससे कहीं अधिक विदेश में है। बरेली के इस्लाम अहमद करीब दो दशक से जरी के कारोबार में लगे हैं। पर्स और चप्पलों पर भी जरी वर्क किया जाने लगा है। हस्तकला की पहचान बना देवरिया:
मोटे धागे से बनाए जाने वाले सजावटी सामान देवरिया की पहचान हैं। देवरिया के हरिश्चंद्र जायसवाल बताते हैं कि एकरैलिक धागे से बने पर्दे, कवर, चादर लंबे समय तक खराब नहीं होते। गंदा होने पर धुल दें तो एकदम नए हो जाते हैं। ओडीओपी से इस कारोबार को नई जान मिल गई है। जीता नेशनल पुरस्कार :
रायबरेली के मुश्ताक उम्र के 60 बसंत देख चुके हैं लेकिन, वुड वर्क में उनका जोश युवाओं जैसा है। वह बचपन से लकड़ी की डिजाइनिंग चौकी, बेड, डाइनिंग टेबल, आलमारी के इतर शतरंज व कैरम बोर्ड आदि बनाते हैं। इसके लिए उन्हें 2007 में नेशनल पुरस्कार मिला था।