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World Sickle Cell Day : खून में पल रही बीमारी ले सकती है जान Lucknow news

वर्ल्‍ड सिकल सेल डे सिकल सेल रोग के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। यह एक खतरनाक बीमारी है जो गंभीर मरीज की जान भी ले सकती है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 19 Jun 2019 07:47 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jun 2019 07:15 PM (IST)
World Sickle Cell Day : खून में पल रही बीमारी ले सकती है जान Lucknow news
World Sickle Cell Day : खून में पल रही बीमारी ले सकती है जान Lucknow news

लखनऊ, (कुसुम भारती)। खून में पल रही सिकल सेल एक खतरनाक बीमारी है, जो गंभीर मरीज की जान भी ले सकती है। हालांकि, जागरूक मरीज उपचार के जरिए सामान्य जीवन जी सकता है। यह रोग और इसके उपचार के तरीकों के बारे में लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 19 जून को 'विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस' मनाया जाता है।

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होने लगती है खून की कमी
केजीएमयू में ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग में प्रभारी, डॉ. तूलिका चंद्रा कहती हैं, एक पैदाइशी बीमारी है। शरीर में अलग-अलग हीमोग्लोबिन होता है। यह हीमोग्लोबिन 'एस' होता है जिसका आकार अंग्रेजी अक्षर एस व हंसिया जैसा होता है। सिकल सेल रोग (एससीडी) हीमोग्लोबिन की विरासत में मिली आनुवांशिक असामान्यता है। यह असामान्यता छोटी ब्लड सेल्स में फंस जाती है, जिससे शरीर के कुछ हिस्सों में ब्लड सर्कुलेशन और ऑक्सीजन धीमा हो जाता है। इसमें मरीज के शरीर में खून की कमी होने लगती है। सामान्य आरबीसी की उम्र तकरीबन 120 दिन होती है, जबकि ये दोषपूर्ण सेल अधिकतम 10 से 20 दिन तक जीवित रह पाते हैं।

रक्त विकार के प्रमुख विषेषज्ञ डॉ. गौरव खारया कहते हैं, आमतौर पर हीमोग्लोबिन का आकार 'ओ' शेप का होता है। हीमोग्लोबिन शरीर के विभिन्न हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है। हालांकि इस रोग में हीमोग्लोबिन के दोषपूर्ण आकार के कारण लाल रक्त कोशिकाएं एक-दूसरे के साथ जुड़कर क्लस्टर बना लेती हैं और रक्त वाहिकाओं में आसानी से बह नहीं पातीं। ये क्लस्टर धमनियों और शिराओं में बाधा बन जाते हैं जिसकी वजह से ऑक्सीजन से युक्त रक्त का प्रवाह शरीर में ठीक से नहीं हो पाता।  हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार इस रोग में भारत दूसरे स्थान पर है।  

रोग के लक्षण
क्रोनिक किडनी रोग फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप का कारण बनता है, पित्ताशय की पथरी, स्प्लेनोमेगाली, इम्युनोडेफिशिएंसी, विशेष रूप से कूल्हे, स्ट्रोक या पक्षाघात, पैर के अल्सर, रेटिनोपैथी, अंत:स्रावी विकार आदि होते हैं।

ब्लड ट्रासंफ्यूजन, संतुलित खानपान है इलाज

ब्लड ट्रांसफ्यूजन और संतुलित व पौष्टिक खानपान के जरिए मरीज सामान्य जीवन जी सकता है। साथ ही शादी से पहले भावी पार्टनर जीन टेस्टिंग जरूर कराएं। यदि दोनों में से किसी एक को यह रोग है तो बच्चे में भी होने का खतरा रहता है। यह रोग 50 हजार में से किसी एक को होता है।

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