प्रीमैच्योर डिलीवरी को बनाएं सेफ, जच्चा-बच्चा की सेहत पर पड़ता है असर
किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा समय से पहले जन्म होते हैं। विश्व भर में होने वाले कुल समय से पूर्व जन्म में करीब एक चौथाई हिस्सा (23.6) भारत का है
लखनऊ, (राफिया नाज)। प्रीमैच्योर डिलीवरी यानि गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पूर्व हुए शिशु के जन्म को कहते हैं। मां के स्वास्थ्य गर्भावस्था के पूर्व और उसके दौरान हुई जटिलताओं कई बार गर्भाशय की बनावट आदि कई वजहों से प्रीमैच्योर डिलीवरी हो जाती है। वहीं कई बार चिकित्सक भी बच्चे की ग्रोथ न होते देख प्रीमैच्योर डिलीवरी की सलाह देते हैं। नवंबर माह में प्रीमैच्योर डिलीवरी माह के रूप में मनाया जाता है। क्वीनमेरी अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर रेखा सचान ने प्री मैच्योर डिलीवरी के प्रति किया जागरुक। एक अनुमान के मुताबिक भारत में एक साल में पैदा होने वाले कुल शिशुओं में से 13 फीसदी शिशु समय से पहले जन्म लेते हैं। हमारे देश में समय से पहले जन्मे शिशुओं की दर बढ़ रही है। ।
संक्रमण है सबसे बड़ा कारण
प्रीमैच्योर डिलीवरी का सबसे बड़ा कारण जेनाइटल ट्रेक इंफेक्शन और यूरीनरी ट्रेक इंफेक्शन है। इसलिए गर्भावस्था में इंफेक्शन से बचना बेहद जरूरी है। अगर किसी भी तरह का इंफेक्शन हो तो इसका तुरंत इलाज करवाना चाहिए।
हाइपरटेंशन और प्री एक्लेम्शिया
अगर किसी महिला को पहले से हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है तो ऐसे में उसे प्रेग्नेंसी में अलर्ट रहने की जरूरत है। वहीं कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को हाइपर टेंशन की वजह से झटके आने लगते हैं। इसे प्री एक्लेम्शिया कहते हैं। ऐसे में जच्चा-बच्चा दोनों की मौत हो सकती है। वहीं कई बार डिलीवरी के बाद भी महिलाओं को झटके आने लगते हैं। एक्लेम्शिया का पूरी तरह से इलाज किया जाना चाहिए।
एनिमिया भी है एक कारण
संक्रमण, एक्लेम्शिया के अलावा एनिमिया भी प्री मैच्योर डिलीवरी का कारण है। इसलिए महिलाओं का हीमोग्लोबिन 11 से 14 एमजी के बीच होना चाहिए। एनिमिया की वजह से उन्हें संक्रमण की संभावना ज्यादा रहती है। जिसकी वजह से समय से पहले डिलीवरी हो जाती है।
हाई ग्रेड फीवर भी है एक कारण
गर्भवती को अगर किसी भी तरह का तेज फीवर हो जाए तो समय से पहले डिलीवरी हो सकती है। जैसे डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया और वायरल फीवर आदि। गर्भावस्था में अगर गर्भनाल, गर्भाशय ग्रीवा के पास आ जाए तो शुरुआती समय में इसमें दिक्कत नहीं होती है, लेकिन अगर गर्भावस्था के बाद के समय में अगर यह दिक्कत होने लगे तो रक्तस्राव होने लगता है, जिसकी वजह से प्री-मैच्योर डिलीवरी हो सकती है।
गर्भाशय में विकृति
कई बार महिलाओं के गर्भाशय में भी विकृति होती है। गर्भाशय सेप्टम में बंटे होते हैं जिससे प्रेग्नेंसी में दिक्कत होती है। डाईडेल्फिक, यूनीकॉर्नेट, आरक्यूएट, पार्शियल एंड कंप्लीट सेप्टेट, बाइकॉर्नेट यूट्रस। इस तरह की दिक्कत होने पर डॉक्टर खुद प्रीमैच्योर डिलीवरी की सलाह देते हैं। जिससे बच्चे की ग्रोथ किसी तरह से न रुके।
28 से 34 सप्ताह के बीच जन्मे शिशु
34 सप्ताह से भी कम समय के लिए गर्भ में रहे शिशुओं को गहन देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे में उन्हें एनआइसीयू में रखने की जरूरत पड़ सकती है। प्री मैच्योर नवजातों के फेफड़े पूरी तरह से डेवलप नहीं होते हैं, जिसकी वजह से उन्हें कई बार ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। वहीं उन्हें पीलिया और कई तरह के इंफेक्शन होने का भी डर रहता है। ऐसे में उन्हें एनआइसीयू केयर की जरूरत पड़ती है। कई बार प्लान्ड प्री मैच्योर डिलीवरी करवाने में डॉक्टर मां को पहले से ही दवाएं देना शुरू कर देती हैं। जिससे बच्चे का लंग्स अच्छे से विकसित हो जाए।
प्री मैच्योर डिलीवरी के अन्य कारण
गर्भ में जुड़वा या इससे अधिक शिशु पलना, गर्भावस्था के दौरान अत्याधिक रक्तस्त्राव, गर्भाशय की विकृति या असामान्यता, ग्रीवा की कमजोरी, पिछली गर्भावस्थाओं को समाप्त करवाना (गर्भपात करवाना), पिछली गर्भावस्थाओं में गर्भपात हो जाना, विशेषकर 16 से 24 सप्ताह के बीच, एम्नियोटिक मैम्ब्रेन का वक्त से पहले फट जाना पानी की थैली जल्दी फट जाना, धूम्रपान व मादक पदार्थों (ड्रग्स) का सेवन, प्रेग्नेंसी इंड्यूस्ड डायबिटीज, ज्यादा वजन होना आदि।
एएनसी चेकअप जरूरी
चिकित्सक के परामर्श के अलावा अगर प्री टर्म डिलीवरी हो रही है तो इसके लिए मां का जागरुक होना जरूरी है। इसके लिए मां को अपना एएनसी चेकअप, अल्ट्रासाउंड आदि समय पर करवाना चाहिए। इससे हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की पहचान हो जाती है। ऐसे में किसी भी तरह का रिस्क होने पर इसका इलाज किया जा सकता है। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में सबसे ज्यादा प्री मैच्योर डिलीवरी होने की आशंका रहती है।
25 से 30 प्रतिशत हो रही है प्री मैच्योर डिलीवरी
राजधानी के लास्ट रेफरल सेंटर क्वीनमेरी में 50 फीसद हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के केस आते हैं। अस्पताल के अपने केस में केवल तीन से पांच फीसद ही प्री मैच्योर डिलीवरी होती है। वहीं अनबुक्ड केस जो कि रेफर होकर आते हैं इसमें 25 से 30 फीसद प्री मैच्योर डिलीवरी होती है।