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भाजपा के मुकाबले मजबूत दिखने को सपा-कांग्रेस गठबंधन मजबूरी

2019 के लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे का साथ दोनों की मजबूरी भी होगी। सूबे में दोनों दल तभी उभर पाएंगे जब एक-दूसरे का हाथ थामे हों।

By Ashish MishraEdited By: Published: Fri, 12 Jan 2018 08:52 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jan 2018 09:54 AM (IST)
भाजपा के मुकाबले मजबूत दिखने को सपा-कांग्रेस गठबंधन मजबूरी
भाजपा के मुकाबले मजबूत दिखने को सपा-कांग्रेस गठबंधन मजबूरी

लखनऊ (जेएनएन)। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भले ही अभी गठबंधन के सवालों से बचने की कोशिश कर रही हैं लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे का साथ दोनों की मजबूरी भी होगी। सूबे में दोनों दल तभी उभर पाएंगे जब एक-दूसरे का हाथ थामे हों। यही वजह है कि दोनों ही दल अभी अपनी-अपनी ताकत बढ़ाने की बात कह रहे हैं और इसके लिए जुटे भी हैं लेकिन, चुनाव तक यह एक-दूसरे के करीब फिर नजर आ सकते हैं। यही समीकरण उनकी ओर मुस्लिम मतों को खींचने में भी सफल हो सकता है।

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लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा की आंधी ने कांग्रेस और समाजवादी दोनों ही पार्टियों की कमर तोड़ी है। लोकसभा में कांग्रेस जहां मात्र दो सीटें हासिल कर पाई थी, वहीं सपा के हिस्से भी सिर्फ पांच सीटें ही आई थीं। इसी तरह विधानसभा चुनाव में सपा 47 तो कांग्रेस सात सीटें ही हासिल कर सकी थी लेकिन, दोनों ही दल अब करारी हार के सदमे से उबरकर अपनी जड़ें मजबूत करने को आतुर नजर आते हैं। कांग्रेस का मनोबल गुजरात चुनाव परिणाम ने बढ़ाया है तो राहुल की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी ने पार्टी में माहौल बदला है और कांग्रेस अपना संगठनात्मक ढांचा मजबूत करने के प्रति गंभीर हुई है।

प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने कहा भी हम पार्टी की मजबूती के लिए काम करेंगे। हालांकि, उन्होंने भी चुनाव तक गठबंधन की संभावनाएं बनाए रखी हैैं। दूसरी ओर सपा को बीएस-फोर के अध्यक्ष आरके चौधरी व बसपा के कई बड़े नेताओं के आ जाने से ताकत मिली है। समय से पहले ही दावेदारों की स्क्रीनिंग शुरू करके पार्टी अभी से ही अधिक से अधिक लोगों को जोड़े रखने की कोशिशों में जुट गई है। खुद अखिलेश साफगोई से स्वीकार भी करते हैं-'बीते चुनावों की हार ने हमें कई सबक दिए हैं।

 यह सबक अपने पत्तों को न खोलने के रूप में भी है। ईवीएम मुद्दे पर उनकी पहल ने छोटे दलों को एक मंच पर लाकर सपा को अगुआ दल के रूप में उभार भी दिया है। फिर भी कई फैक्टर ऐसे हैं, जिनकी वजह से सपा और कांग्रेस दोनों ही आगे चलकर एक-दूसरे के पूरक रूप में खड़े नजर आ सकते हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जिन सीटों पर चुनाव लड़ी है, वहां उसे 22 फीसद मत हासिल हुए थे, जबकि सपा को 28 प्रतिशत। लोकसभा चुनाव का कैनवस बड़ा होने के कारण दोनों का साथ यह प्रतिशत बढ़ा सकता है।

कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी छितराए संगठन के अलावा मजबूत उम्मीदवारों की कमी है। बीते विधानसभा चुनाव में उसके हिस्से में 105 सीटें आई थीं लेकिन 111 सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा था। इस समस्या से उसे लोकसभा चुनाव में भी दो-चार होना होगा। जहां उसके प्रत्याशी मजबूत होंगे, वहां सपा का साथ उसे मुकाबले में खड़ा कर सकता है। दूसरी ओर सपा को कांग्रेस का साथ मिला तो मुस्लिमों का बसपा की ओर बढ़ रहे रुझान को रोका जा सकता है।
 


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