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अयोध्या मसले को आपसी सहमति से अंजाम तक पहुंचाने को तैयार शिया बोर्ड

शिया बोर्ड ने बाबरी मस्जिद से मुंह नहीं मोड़ा और इसी वर्ष 11 अगस्त को जब सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर-मस्जिद विवाद की सुनवाई शुरू की तो शिया बोर्ड नए सिरे से पक्षकार के तौर पर प्रस्तुत हुआ।

By Ashish MishraEdited By: Published: Wed, 13 Sep 2017 01:44 PM (IST)Updated: Wed, 13 Sep 2017 01:44 PM (IST)
अयोध्या मसले को आपसी सहमति से अंजाम तक पहुंचाने को तैयार शिया बोर्ड
अयोध्या मसले को आपसी सहमति से अंजाम तक पहुंचाने को तैयार शिया बोर्ड

रघुवरशरण, अयोध्या । करीब छह माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से रामजन्मभूमि विवाद के समाधान का जो सूत्र सुझाया था, शिया वक्फ बोर्ड उसे अंजाम तक पहुंचाने की तैयारी कर रहा है।
बोर्ड सन 1528 में निर्माण के समय से ही बाबरी मस्जिद पर दावा करता रहा है। इस आधार पर कि मुगल आक्रांता बाबर के आदेश पर रामजन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराने वाला उसका सेनापति मीर बाकी शिया था और इसके बाद से बाबरी मस्जिद के मुतवल्ली शिया ही होते रहे।

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हालांकि शिया वक्फ बोर्ड बाबरी मस्जिद पर दावे का मुकदमा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के मुकाबले 1946 में हार गया। इसके बावजूद शिया बोर्ड ने बाबरी मस्जिद से मुंह नहीं मोड़ा और इसी वर्ष 11 अगस्त को जब सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर-मस्जिद विवाद की सुनवाई शुरू की तो शिया बोर्ड नए सिरे से पक्षकार के तौर पर प्रस्तुत हुआ। शिया बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी इन दिनों आपसी सहमति से मंदिर-मस्जिद विवाद के हल का सूत्र लेकर देशव्यापी भ्रमण पर हैं।


गत सप्ताह वे रामनगरी भी आ चुके हैं और राममंदिर के पक्षकार महंत भास्करदास, महंत धर्मदास सहित दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेशदास से भेंटकर आपसी सहमति की भाव-भूमि को पुख्ता किया। इसके बाद उन्होंने मुरादाबाद, देहरादून एवं जम्मू का दौरा कर आपसी सहमति की अलख जगाई। शिया बोर्ड के सदस्य अशफाक हुसैन जिया के अनुसार बोर्ड की योजना पांच दिसंबर से सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू होने तक आपसी सहमति का मसौदा तैयार कर लेने और उसे कोर्ट में दाखिल करने की है।

मुस्लिम बहुल इलाके में बने मस्जिद-ए-अमन
शिया बोर्ड के अनुसार जहां रामलला विराजमान हैं, उस स्थान से मुस्लिम अपना दावा छोड़ें और मस्जिद रामजन्मभूमि से समुचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में बने और उसका नाम मस्जिद-ए-अमन हो। बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी का मानना है कि बाबर एवं मीर बाकी मंदिर तोडऩे के अपराधी हैं, इसलिए उनके नाम से मस्जिद स्वीकार नहीं की जा सकती।
 


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