रोज डे : जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले...
वेलेंटाइन वीक : रोज डे पर लोगों ने खूबसूरत यादों को किया साझा।
लखनऊ, (कुसुम भारती)। अबके हम बिछड़ें तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें। जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें।।
फूल खिला था तो तोहफा था, किताबों की आगोश में आया तो याद बन गया। किताब के पन्नों का लिहाफ ओढ़े ये सूखे हुए फूल मीठी नींद में सोए रहते हैं, जिनके सपनों में माजी की खुशमिजाज यादों का अक्स बनता-बिगड़ता रहता है। ये सूखे हुए फूल जज्बात से लबरेज उन लम्हों के गवाह होते हैं, जब तोहफा बनकर ये एक हाथ से दूसरे हाथ तक आए थे। जो इन यादों को हमेशा ताजा रखना चाहते हैं वे इन फूलों को किताबों के सुपुर्द करके महफूज कर लेते हैं। अहमद फराज की गजल का यह शेर उन्हीं लम्हों की कहानी कहता है। रोज डे पर चंद लोगों ने ऐसी ही कुछ खूबसूरत यादों को साझा किया।
संभालकर रखा प्रिंसिपल मैम का गुलाब
कई पुरस्कारों व खिताबों से सम्मानित नृत्यांगना, अंकिता वाजपेयी कहती हैं, पिछले साल रोज डे के दिन ही मेरी फेयरवेल पार्टी थी। इस मौके पर मुझे कॉलेज में कई टाइटल भी मिले थे। मगर, उससे भी खास था, मेरे लिए वह गुलाब का फूल जो मेरी प्रिंसिपल मैम ने दिया था। उन्होंने फूल देते हुए कहा था कि हमेशा इस गुलाब की तरह खिलना, आगे बढऩा, नेक रास्ते पर चलते हुए अपनी कामयाबी की खुशबू से खुद भी महकना और दूसरों को भी महकाना।
गुलाबों में बसा है 25 सालों का प्यार
सोशल एक्टिविस्ट, रुचि जैन कहती है, मेरी शादी को 25 साल हो गए हैं। हमारी लव-कम-अरेंज मैरिज है। पति हमेशा प्यार लुटाते रहते हैं। शादी के इतने सालों बाद भी हमें देखकर हर कोई कहता है कि जैसे नई शादी हुई हो। वेलेंटाइन डे के मौके पर रोज डे के दिन वह गुलाब देना कभी नहीं भूलते। हम तो इस पूरे वीक को एंज्वॉय करते हैं। उनके दिए गुलाब के फूलों में 25 सालों का प्यार बसा है।
वह फूल नहीं भावनाओं का गुलदस्ता है
नारी शिक्षा निकेतन पीजी कॉलेज में मानव विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. विभा अग्निहोत्री कहती हैं, मेरी शादी को करीब 32 साल हो गए हैं। उस समय हम लोगों के बीच वेलेंटाइन मनाने का ऐसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं था। 1986 में मेरी मंगनी हुई। उसके बाद जब मेरा जन्मदिन पड़ा, तो मेरे पतिदेव ने मुझे एक गुलाब का फूल और उपहार दिए। उस वक्त भी यह एक बोल्ड स्टेप था हम दोनों के लिए। आज भी वह फूल हमारी मीठी भावनाओं और यादों का हिस्सा बनकर मेरी डायरी में कैद है।
शर्ट में छिपाकर लाते थे शोख कली
एंकर, बिंदू जैन कहती हैं, मेरी शादी अक्टूबर, 1993 में हुई थी। उसी साल जनवरी में मेरी एंगेजमेंट हुई थी। इसके बाद वो जब भी मुझसे मिलने आते थे, तो अपनी शर्ट में एक प्यारी सी शोख गुलाब की कली छिपाकर लाते थे। मौका देखकर वह मुझे चुपके से पकड़ा देते थे। उस वक्त इतनी खुशी होती थी, कि पूछो मत। वह सिर्फ एक फूल नहीं, बल्कि प्यार भरा अनमोल उपहार होता था। आज भी उनमें से कई फूल मैंने संजोकर रखे हैं। जब भी उनको देखती हूं, तो वह तमाम खूबसूरत यादें जहन में ताजा हो उठती हैं और शरीर में एक सिहरन सी पैदा कर जाती हैं।