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कोरोनाकाल में हुई उत्तर भारत की पहली लेप्रोस्कोपिक पैरा थायरायड ग्लैंड सर्जरी, SGPGI को मिली सफलता

कोरोना काल में लखनऊ के एसजीपीआइ में उत्तर भारत की पहली लेप्रोस्कोपिक पैरा थायरायड ग्लैंड सर्जरी अभी तक सभी अस्पतालों में होती रही है ओपेन सर्जरी जिससे गले पर निशान पड़ जाते थे ओपेन सर्जरी की वजह से होती थी दिक्कत।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 07:04 AM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 12:14 PM (IST)
कोरोनाकाल में हुई उत्तर भारत की पहली लेप्रोस्कोपिक पैरा थायरायड ग्लैंड सर्जरी, SGPGI को मिली सफलता
कोरोनाकाल में लखनऊ के एसजीपीआइ में हुई लेप्रोस्कोपिक पैरा थायरायड ग्लैंड सर्जरी।

लखनऊ, जेएनएन। संजय गांधी पीजीआइ उत्तर भारत का पहला अस्पताल हो जिसने पहली बार पैरा थायरायड ग्रंथि की सर्जरी दूरबीन तकनीक से करने में सफलता हासिल की है। इस तकनीक से गले पर निशान नहीं पड़ता साथ ही मरीज को चार –पाच दिन में छुट्टी मिल जाती है। इस तकनीक को डाक्टरी भाषा में बाइलेटरल एक्सीलो –ब्रेस्ट एप्रोच इंडोस्कोपिक पैरा थायरडक्टमी( बाबा) कहते हैं। कश्मीर की रहने वाली यासमीन यहां इस सर्जरी के लिए केवल इसी लिए आयी कि जिससे उनके गले पर निशान न पडे। इस सर्जरी को आंजाम देने वाले इंडोक्रान सर्जन प्रो. ज्ञान चंद का दवा है कि उत्तर भारत के किसी भी अस्पताल में पैरा थायरायड ग्लैंड की लोप्रोस्कोपिक सर्जरी नही होती है सभी सेंटर ओपन सर्जरी ही करते है। इस केस को वह मेडिकल जर्नल में भी बतौर केस रखेंगे। परिजन कई जगह कोशिश किए लेकिन लेप्रोस्कोपिक सर्जरी तकनीक से करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ तो परिजनों ने पता लगाया कि लखनऊ पीजीआई में प्रो.ज्ञान चंद से सलाह लिया जाए। प्रो. ज्ञान ने इस चुनौती को स्वीकार कर पूरी योजना तैयार की लेकिन तमाम परीक्षण के बाद सर्जरी की डेट भी तय हो गयी लेकिन लाक डाउन के कारण यह लोग नहीं आ पाए। लाक डाउन खुलने के बाद यह लोग संपर्क किए जिसके बाद 14 सितंबर को भर्ती कर सर्जरी की गयी 22 सितंबर को छुट्टी दे दी गयी।

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क्या होती है परेशानी

पैराथायराइड ग्रंथि मसूर के दाने के आकार की चार छोटी-छोटी ग्रंथियों का समूह है, जिनमें से प्राय: दो-दो थाइरॉइड ग्रंथि पिछली सतह में स्थित रहती है। यह रक्त में कैल्शियम की अधिकता और कमी का नियन्त्रण इसी के द्वारा सम्पादित होता है। इस में ट्यूमर होने पर कैल्शियम को हड्डी से खीचने लगता है। 26 वर्षीय यासमीन के किडनी में कई स्टोन थे तो डाक्टर कैल्शियम के स्तर का परीक्षण कराया जो पता चला कि इसका स्तर भी बढ़ा है। जांच से पता चला कि पैरा थायरायड ग्लैंड ट्यूमर के कारण इस हारमोन का स्तर बढ़ गया जो हड्डी से कैल्शियम को अवशोषित कर रहा है।

यासमीन नहीं हुई ओपेन सर्जरी के लिए तैयार

शल्य चिकित्सा के लिए याशमीन और उनके पिता बसीर दिल्ली के एक बड़े अस्पताल गये थे जहाँ उन्हें बताया गया कि गले पर कट लगा कर ट्यूमर निगाल देंगे जिसपर 26 वर्षीया यासमीन जिनकी हाल ही में शादी हुई है वह राज़ी नहीं हुईं। उनके पिता बसीर स्वयं श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर हैं उन्होंने अपनी बेटी को ऑपरेशन के बाद गले पर आने वाले निशान से बचाने की मंशा से अपने कई डॉक्टर मित्रों से सम्पर्क किया।


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