बलरामपुर, (रमन मिश्र )। त्रेता की निशानियों और कहानियों के साथ जिले को प्रकृति ने बहुत सी नेमतों से नवाजा है। यहां ब्रिटिश स्थापत्य कला की गवाह स्टै्रच्यू हॉल है तो राजसी वैभव की गवाही देता सिटी पैलेस मन मोह लेता है। यहां मशहूर देवीपाटन शक्तिपीठ के साथ प्रकृति के कई दर्शनीय वरदान मन को सुकून देते हैं। इनमें सोहेलवा वन प्रभाग रोमांच का संचार करता है तो पहाड़ी नदियों का जल सहेजे भगवानपुर और चित्तौडग़ढ़ जलाशय पर प्रवासी परिंंदों को देखना यादगार अनुभव बन जाता है।
शक्तिपीठ देवीपाटन
देश के 51 शक्तिपीठों में यह शुमार है। त्रेता युग में देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने महादेव का अपमान कर दिया। पति के अपमान से क्रोधित देवी जलते यज्ञकुंड में कूद गईं। इससे दुखी और क्रोधित शिव उनके शव को कंधे पर उठाकर तीनों लोकों में तांडव करने लगते हैं। शिव का मोहभंग करने को विष्णु जी सती के शव को सुदर्शन चक्र से खंडित कर देते हैं। जहां-जहां देवी के अंग गिरे, वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए। तुलसीपुर स्थित देवीपाटन में सती का बायां कंधा वस्त्र सहित गिरा था। करीब 20 एकड़ में फैला देवीपाटन मंदिर परिसर अपनी भव्यता व स्थापत्य कला का नायाब नमूना भी है। चार वर्ष पहले ब्रॉडगेज रेलमार्ग बनने के बाद यहां पर्यटन की संभावनाएं बढ़ी हैं।
अखंड धूना
शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर परिसर में स्थित अखंड धूना सदियों से निरंतर प्रज्ज्वलित है। मान्यता है कि इसके भस्म को लगाने से सभी परेशानियां दूर हो जाती है। त्रेता युग में इस स्थान पर मां सीता जब धरती में समाई थी तभी से अखंड धूना प्रज्जवलित है। मां पाटेश्वरी के मुख्य मंदिर के उत्तर दिशा में महंत के मठ के भवन में अखंड धूना है।
आदिशक्ति की पूजा अर्चना करने के बाद अखंड धूना का दर्शन करने का नियम है। यहां सिर पर कपड़ा रखकर ही अंदर प्रवेश किया जाता है। अपने माथे पर भस्म लगाकर मनौती मांगने वाले श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी हो जाती हैं। मन्नतें पूरी होने पर आटे का (रोट और गुड़ का बना हुआ) भोग लगाया जाता है।
सूर्य कुंड :
देवीपाटन मंदिर के उत्तर दिशा में स्थित सूर्यकुंड का इतिहास महाभारत काल के महारथी दानवीर कर्ण से जुड़ा है। देवी उपासना के लिए कर्ण यहीं रहते थे। स्नान व पूजा के लिए कर्ण ने सरोवर की धार बहाई थी। सूर्य पुत्र होने के कारण सरोवर सूर्य कुंड के नाम से विख्यात हुआ। आज भी देवी जी की पूजा में इसी सूर्यकुंड का जल इस्तेमाल होता है। मंदिर के पश्चिम गोरक्षनाथ के बगल कर्ण की भी प्रतिमा स्थापित है।
सोहेलवा जंगल
452 वर्ग किलोमीटर में फैले सोहेलवा जंगल की वादियां अपनी प्राकृतिक सुंदरता व वन्यजीवों के कारण पर्यटन का केंद्र बनी हुई है। भारत नेपाल सीमा पर स्थित सोहेलवा जंगल में हिरण, तेंदुआ, चीता, भालू व जंगली बिल्ली जंगल आदि जानवर हैं। जंगल में घुसते ही इनका दिख जाना किसी रोमांच से कम नहीं होता। तुलसीपुर से सड़क मार्ग से सोहेलवा जंगल की सैर की जा सकती है। यहां ठहरने के लिए वन विभाग द्वारा अलग-अलग स्थानों पर गेस्ट हाउस बनवाए गए हैं।
भगवानपुर और चित्तौडग़ढ़ जलाशय
प्रकृति की गोद में पहाड़ी नालों को बांधकर सिंचाई के लिए बनाए गए जलाशय बरबस ही सबका मन मोह लेते हैं। इनमें से प्रमुख भगवानपुर व चित्तौडग़ढ़ जलाशय प्रवासी पक्षियों के लिए मशहूर हैं। पर्यटकों के लिए यह स्थल काफी मनोरंजक है।
ब्रिटिश काल की कई धरोहर
बलरामपुर रियासत के दौर में बनी इमारतें उसके समृद्ध व गौरवशाली अतीत की दास्तां बयां करती हैं। नगर के हृदय स्थल पर सिटी पैलेस, राज परिवार के प्राचीन महल के मेहराब, गुंबद व एमएलके महाविद्यालय में स्थापित स्टैच्यू हाल ब्रिटिश स्थापत्य कला से सराबोर हैं। इन इमारतों को ब्रिटेन के विश्वविख्यात आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था। जो आज भी धरोहर के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल
- नवो देवी मंदिर
- हनुमानगढ़ी मंदिर तुलसीपुर
- वाराही देवी मंदिर
- बिजलेश्वरी देवी मंदिर
कैसे पहुंचे
- लखनऊ से दूरी-220 किमी.
- रेल सुविधा -लखनऊ से तुलसीपुर तक सीधे ट्रेन सुविधा उपलब्ध है।
- बस सुविधा-लखनऊ से बलरामपुर तक व यहां से तुलसीपुर तक रोडवेज बस उपलब्ध है।
- लोकल कन्वेंस -तुलसीपुर से मंदिर तक ई-रिक्शा उपलब्ध है, जो दस रुपये प्रति सवारी लेता है। अन्य धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए टैक्सी व निजी वाहन का सहारा लिया जाता है।
ठहरने की सुविधा
- देवीपाटन मंदिर में यात्री निवास व तुलसीपुर नगर में लॉज की सुविधा है।
- लॉज -500 से 1000 रुपये प्रति कमरा है।
- होटल-बलरामपुर में 1000 से 3000 रुपये में एसी कमरा उपलब्ध है।
- खानपान -होटलों के रेस्टोरेंट में सुविधा है।