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पापा के एक झूठ ने बदल दी ज‍िंंदगी...भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी वंदना ने बताई सफलता की कहानी

वंदना ने कहा एक समय ऐसा भी था जब पापा के अलावा परिवार का कोई सदस्य नहीं चाहता था कि मैैं हॉकी खिलाड़ी बनूं। पापा लखनऊ स्पोट्र्स हॉस्टल में मेरा दाखिला करवाने आए थे तो इसके बारे में मेरी मां को भी नहीं पता था।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 02 Jan 2021 06:05 AM (IST)Updated: Sat, 02 Jan 2021 07:34 AM (IST)
पापा के एक झूठ ने बदल दी ज‍िंंदगी...भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी वंदना ने बताई सफलता की कहानी
भारतीय महिला हॉकी टीम की सीनियर खिलाड़ी ने वर्ष 2013 जूनियर विश्व कप के अनुभव साझा किए।

लखनऊ, [विकास मिश्र]। वर्ष 2013 की बात है। जर्मनी में हुए जूनियर विश्व कप में मैैंने भारतीय टीम के लिए कांस्य पदक जीतने में बड़ी सफलता हासिल की थी। हॉकी के इस महाकुंभ में मैैंने चार मैचों में सबसे अधिक पांच गोल दागे थे। इस उपलब्धि के बाद जब मीडिया ने मेरे पापा को बुलाया तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे। मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती। सच कहूं तो पिता को गर्व महसूस कराना मेरे हॉकी करियर का सबसे अमूल्य पलों में से एक है। यह कहना है सीनियर भारतीय महिला हॉकी टीम की स्ट्राइकर खिलाड़ी वंदना कटारिया का।

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28 वर्षीय वंदना ने कहा, बेशक आज मैैं भारतीय महिला हॉकी टीम की सदस्य हूं। लेकिन, एक समय ऐसा भी था जब पापा के अलावा परिवार का कोई सदस्य नहीं चाहता था कि मैैं हॉकी खिलाड़ी बनूं। पापा लखनऊ स्पोट्र्स हॉस्टल में मेरा दाखिला करवाने आए थे तो इसके बारे में मेरी मां को भी नहीं पता था। उन्होंने भरोसा दिलाया कि मुझे सिर्फ खेल पर ध्यान लगाना है बाकी मैैं संभाल लूंगा। मूलरूप से मेरठ निवासी वंदना कहती हैैं, मेरे गांव का माहौल अच्छा नहीं था। यहां ज्यादातर लड़कियों को ही खेलने की अनुमति थी। हालांकि, वर्ष 2007 जूनियर भारतीय टीम में चयनित होकर मैैंने अपनी श्रेष्ठता और पापा के निर्णय को सही साबित किया। इसके बाद यहां लोगों में बदलाव दिखा। बहुत कम समय में बढिय़ा प्रदर्शन की बदौलत वंदना को वर्ष 2010 में सीनियर महिला टीम में भी मौका मिल गया।

वंदना ने कहा, जब 15 साल की उम्र में हॉकी खेलना शुरू किया तो मुझमें डर बिल्कुल नहीं था। और जब टीम इंडिया के लिए चुनी गई तो हर मैच में गोल करने का लक्ष्य लेकर ही मैदान में उतरती हूं। वंदना ने कहा, कभी-कभी जब आप मैदान में हो तो हमेशा गोल करना ही सही नहीं होता। आपको यह फैसला लेने के पहले रणनीति बनाने की जरूरत होती है। कई बार साथी खिलाड़ी को गेंद पास करना या पेनल्टी कार्नर जीतना भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है। वर्ष 2013 जूनियर महिला विश्व कप की कांस्य पदक विजेता टीम की सदस्य रहीं वंदना ने कहा, फिलहाल टीम का ध्यान अगले साल टोक्यो ओलंपिक के लिए केंद्रित है। इसके लिए हम लोग कड़ी मेहनत भी कर रहे हैैं। ओलंपिक से पहले भारतीय टीम को दो बड़े टूर्नामेंट खेलना है।

वंदना ने कहा, कोरोना संक्रमण की वजह से हम फिलहाल कोई टूर्नामेंट नहीं खेल रहे हैैं लेकिन, हमारा मन हमेशा मैदान पर ही रहता है। आगामी प्रतियोगिताओं के लिए हमारे पास पर्याप्त समय है इसलिए हम कोशिश कर रहे हैं कि खुद को ज्यादा से ज्यादा फिट रख सकें, ताकि जब भी खेल शुरु हो हम अपने विपक्षी टीम के मुकाबले ज्यादा मजबूत रहें। लॉकडाउन के दौरान खुद को सकारात्मक रखने पर वंदना ने कहा, हमारे कोच शुअर्ड मरिने की वजह से पाजिटिव रहने में काफी मदद मिली। शुरुआत में हम लोग थोड़ा डर गए थे। लेकिन, धीरे-धीरे सबकुछ सामान्य हो गया। मुझे उम्मीद है कि स्थिति जल्द ही सुधरेगी।

वंदना कटारिया ने भारत के लिए अभी तक कुल 218 मुकाबले खेले हैैं जिसमें उन्होंने 58 गोल दागने में कामयाबी हासिल की है। वंदना ने भारतीय टीम के लिए एशियन गेम्स वर्ष 2014 में रजत और 2018 में कांस्य पदक जीता। इसके अलावा वर्ष 2017 के एशिया कप में टीम चैैंपियन बनी। उन्हें वर्ष 2014 में साल की सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी चुना गया। इसी साल हॉकी लीग में वंदना 11 गोल के साथ शीर्ष स्कोरर थीं। 


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