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Ayodhya: रामनगरी में आस्‍था का सैलाब, सावन के आखिरी दिन सरयू में स्‍नान कर नागेश्वरनाथ के पूजन काे पहुंचे भक्‍त

Sawan 2022 सरयू स्नान कर श्रद्धालुओं ने भोले बाबा की पीठ नागेश्वरनाथ की ओर रुख किया। नागेश्वरनाथ सावन माह के साथ ही आस्था के केंद्र में थे और गुरुवार एवं शुक्रवार को सावन की पूर्णाहुति के साथ इस आस्था का शिखर देखने को मिला।

By Vrinda SrivastavaEdited By: Published: Fri, 12 Aug 2022 01:02 PM (IST)Updated: Fri, 12 Aug 2022 01:02 PM (IST)
Ayodhya: रामनगरी में आस्‍था का सैलाब, सावन के आखिरी दिन सरयू में स्‍नान कर नागेश्वरनाथ के पूजन काे पहुंचे भक्‍त
सावन के आखिरी दिन सरयू में स्‍नान कर नागेश्वरनाथ के पूजन काे पहुंचे भक्‍त.

अयोध्‍या, जागरण संवाददाता। राम नगरी में उत्सव की त्रिवेणी विसर्जित हुई। एक ओर राम नगरी के सैकड़ों मंदिरों में गत 12 दिनों से संचालित आराध्य के झूलन उत्सव का समापन हो रहा था, दूसरी ओर रक्षाबंधन के माध्यम से बहन भाई का प्यार परिभाषित हो रहा था। किसी अन्य नगरी की तरह अयोध्या में भी बहनें भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनके उज्‍ज्‍वल भविष्य की कामना कर रहीं थीं और भाई उनके सहयोग-संरक्षण का विश्वास दिला रहे थे।

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रक्षाबंधन के पारंपरिक रंग से इतर गुरुवार से लेकर शुक्रवार को तड़के सरयू स्नान से आस्था का प्रवाह परिलक्षित हुआ। सुबह का परिदृश्य यही बता रहा था कि अयोध्या की इष्ट सरयू हैं। हर मार्ग, हर गली और नुक्कड़ पर निकले लोग अनिवार्य रूप से पुण्य सलिला सरयू की ओर बढ़ते जा रहे थे। लोगों ने स्नान के साथ परंपरा और संस्कृति का भी पूरी निष्ठा से अनुपालन किया। स्नान के साथ सरयू पूजन और गोदान का दृश्य सरयू की प्राचीनता के साथ सनातन परंपरा की प्राचीनता का बोध कराता रहा।

सरयू स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने भोले बाबा की पीठ नागेश्वरनाथ की ओर रुख किया। नागेश्वरनाथ सावन माह के साथ ही आस्था के केंद्र में थे और गुरुवार एवं शुक्रवार को सावन की पूर्णाहुति के साथ इस आस्था का शिखर देखने को मिला। उदया तिथि के भेद और भद्रा की वजह से इस बार सावन पूर्णिमा दो दिनों में विभाजित हुई, किंतु शाम को सज्जित होने वाले झूलन उत्सव की पूर्णाहुति को लेकर कोई संशय नहीं था।

राम नगरी के हजारों मंदिरों में सज्जित झूलन उत्सव गुरुवार की शाम भाव-भक्ति और संगीत के चरम में डुबकी लगाते हुए एक वर्ष के लिए विसर्जित हुआ। इसके साथ ही भक्तों का प्रवाह भी राम नगरी से आस्था की रज लेकर अपने-अपने घर की घर की ओर वापस लौटा।


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