हिमालय में होने वाली उथल-पुथल की पहेली सुलझाएगा ‘मोडिस’
भारतीय वैज्ञानिक ने स्वीडन यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर मोडिस तकनीक विकसित कर दिखाई नई राह। पर्वत श्रृंखला के दुरूह क्षेत्रों का भी मिल सकेगा हाल जलवायु परिवर्तन पर रहेेेेगी नजर।
लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। शोधकर्ताओं के लिए अब बर्फ से ढके हिमालय में होने वाली मौसमी उथल-पुथल पहेली नहीं रहेगी। ग्लोबल वामिर्ंग का प्रभाव देखना हो, बर्फ पिघलने की दर आंकनी हो या क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले प्रभावों को जानना हो.., ‘मोडिस’ के जरिये यह सब कुछ आसान होगा।
मोडिस यानी सेटेलाइट मॉडरेट रिजॉल्यूशन इमेजिनिंग स्पेक्ट्राडायोमीटर। इससे प्राप्त आंकड़ों के जरिए हिमालय की हर हलचल का सटीक अनुमान लगाना संभव होगा। लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान (बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलिओसाइंसेज, बीएसआइपी) के वैज्ञानिक मयंक शेखर ने स्वीडन यूनिवर्सिटी के साथ यह तकनीक विकसित की है। इस युक्ति के जरिये सेटेलाइट (उपग्रह) आंकड़ों की मदद से दुरूह स्थानों को भी खंगाला जा सकता है। यह शोध प्रतिष्ठित रिमोट सेंसिंग जर्नल में चार दिसंबर को प्रकाशित हुआ है। माना जा रहा है कि दुनिया भर के शोधकर्ता अब आसानी से हिमालयी क्षेत्रों में अपने अनुसंधान को आगे बढ़ा सकेंगे।
शोधकर्ता शेखर ने बताया कि अभी तक हिमालयी क्षेत्र का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त आकड़ों की कमी बड़ी समस्या थी। पश्चिमी हिमालय के अध्ययन के लिए मुक्तेश्वर और जोशीमठ स्थित भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के केंद्र पर ही मुख्य रूप से निर्भर रहना पड़ता था। यहां सौ वर्ष का डेटा उपलब्ध है। बाकी मौसम केंद्र महज 40-50 वर्ष ही पुराने हैं। यही नहीं, दुरूह परिस्थितियां होने के कारण कई मौसम केंद्रों से डेटा प्राप्त करना भी अकसर मुश्किल होता है। ऐसे में हिमालयी क्षेत्र में शोध के लिए डेटा की उपलब्धता बड़ी चुनौती थी।
शेखर बताते हैं कि हिमालय के सटीक अध्ययन के लिए क्लाउड फ्री डेटा की जरूरत होती है। इसलिए हमने अपने शोध के लिए काल्पा, काजा, नामगिया सहित मौसम विभाग के 11 केंद्रों से सात जुलाई, 2002 से 31 दिसंबर, 2009 और 13 दिसंबर, 2015 से 30 सितंबर, 2019 के बीच का संग्रहित डेटा जुटाया। फिर मोडिस के माध्यम से इसकी तुलना उपग्रहों से प्राप्त डेटा से की। स्वीडन यूनिवर्सिटी के साथ किए गए इस शोध में पाया कि हिमालय में हवा (एयर) और भू-सतह (सरफेस) के तापमान में मजबूत संबंध हैं।
मिलेंगी सटीक जानकारियां..
मयंक ने दावा किया कि मोडिस युक्ति से सेटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण कर सटीक जानकारियां हासिल की जा सकती हैं। दुनिया भर के शोधकर्ता, जो जलवायु परिवर्तन से जुड़े शोध के इच्छुक हैं, उनके लिए नई राह खुली है। हिमालय या आर्कटिक जैसे क्षेत्रों के अध्ययन में मोडिस से प्राप्त होने वाले डेटा का प्रयोग कर वहां बदलते तापमान का ग्लेशियर पर पड़ने वाला प्रभाव, बर्फ पिघलने की दर, जल वाष्प, पारिस्थितिकी आदि की सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है।
मील का पत्थर..
बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिक मयंक शेखर ने हमने स्थापित किया कि हिमालय में हवा और भू-सतह के तापमान में मजबूत संबंध हैं। अब इसे मोडिस यानी सेटेलाइट मॉडरेट रिजॉल्यूशन इमेजिनिंग स्पेक्ट्राडायोमीटर के माध्यम से विश्लेषित किया जा सकता है और सटीक डेटा जुटाया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन से जुड़े शोधों में यह मीटर मील का पत्थर साबित होगा।