लखनऊ : किसानों के लिए पराली भी होगी फायदे का सौदा, पर्यावरण के लिए भी बनेगी फायदेमंद
डीएफओ डा.रवि कुमार सिंह ने बताया कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत लखनऊ समेत सोलह शहरों में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से नगरीय क्षेत्रों में प्राकृतिक सघन वनों की स्थापना की जानी है।
लखनऊ, जेएनएन। जापान की मियावाकी पद्धति सघन वन क्षेत्र कुकरैल में भी दिखेगी। इससे वायु प्रदूषण को रोकने में मदद मिल सकेगी। चांदन वन ब्लाक में इस पद्धति से पौधे लगाए गए हैं। खास बात यह है कि पराली को जलाने से बढ़ रहे प्रदूषण की रोकथाम हो सकेगी। यहां पौधरोपण में पराली का उपयोग किया जाएगा। इससे किसानों की आय बढ़ेगी तो जलने के बजाय पराली कमाई का जरिया बन जाएगी।
डीएफओ डा.रवि कुमार सिंह ने बताया कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत लखनऊ समेत सोलह शहरों में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से नगरीय क्षेत्रों में प्राकृतिक सघन वनों की स्थापना की जानी है, जिसके तहत कुकरैल के चांदन वन ब्लाक में मियावाकी पद्धति से पौधे लगाए गए हैं। यह इलाका एक तरफ से घनी आबादी क्षेत्र से जुड़ा है और तीन स्थानों पर मियावाकी पद्धति से प्राकृतिक रूप से सघन वनों का निर्माण किया जा रहा है। मियावाकी पद्धति जापानी विधि है जिसमें मृदा को पूर्ण रूप से परिवर्तित करते हुए उसकी उर्वरक क्षमता को जैविक खाद द्वारा बढ़ाते हुए निकट-निकट पौधों का रोपण किया जाता है, इसमे प्राकृतिक प्रजातियों में जामुन, अर्जुन, पाकड़, आंवला, मेंहदी को जीवामृत में डूबोकर पहले से तैयार किए गये स्थलों में एक वर्ग मीटर के खानों में वृक्ष, सहवृक्ष, झाड़ी व एक औषधीय पौधे को रोपा जाता है, जिससे त्रिस्तरीय प्राकृतिक वन उत्पन्न होते हैं जो अधिक मात्रा में कार्बन डाइआक्साइड व प्रदूषणाकारी गैसों को सोखते हैं और कार्बन का संकलन करते हैं।
लखनऊ में बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए मियावाकी वन क्षेत्र में पौधों को सीधा खड़ा करने के लिए स्टैकिंग के लिए बॉस का प्रयोग किया जाता है जिससे बांस उगाने वाले किसानों की आय में वृद्धि होगी। पौधरोपण के बाद खेतों से एकत्र की गई पराली को बिछा दिया जाता है, इस प्रक्रिया को मल्चिंग कहते हैं। इस प्रकार किसानों द्वारा जलाए जाने वाली पराली का प्रयोग पौधरोपण में कर लिया जाता है। इससे अनावश्यक खर-पतवार पैदा नहीं होते हैं व पौधों की सिंचाई भी कम बार करनी पड़ती है। बुधवार को शुभारंभ अवसर पर मुख्य वन संरक्षक, लखनऊ मंडल, आरके सिंह उप प्रभागीय वनाधिकारी, आलोक चंद्र पाण्डेय,क्षेत्रीय वन अधिकारी, कुकरैल रेंज केपी सिंह व रवीन्द्र सिंह नेगी तथा स्वयं सेवी संस्थाओं के सदस्य उपस्थित रहे।
पराली के मिलने लगे दाम
डीएफओ ने बताया कि मियावाकी वन तीन स्थलों पर .44 हेक्टेयर .24 हेक्टेयर व .18 हेक्टेयर के पैच में किया जा रहा है तथा किसानों से 200 रुपये क्विंटल की दर से पराली खरीदी जाती है। करीब 430 क्विंटल पराली किसानों से खरीदी गई है। समीप प्राकृतिक रूप से विद्यमान एक तालाब का जीर्णोंद्धार भी किया गया है, मछली पालन व प्राकृतिक जलीय पौधों को लगाया जाएगा। तालाब के किनारे औषधि पौधों में सतावर, गिलोय, अश्वगंधा, सर्पगंधा, लेमनग्रास, कचनार, हरसिंगार को मियावाकी विधि से लगाया जाएगा। इससेएक पूर्ण इको-सिस्टम का निर्माण हो सकेगा