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जागरण संवादी 2017: रचनाकारों के इस मंच पर नहीं चलती परदेदारी : गीता श्री

लेखन के मिजाज के अनुसार संवाद हुए। मैत्रेयी जी ने अपनी रचना यात्र पर बात की। मैं अविनाश के असहज कर देने वाले सवालों से जूझी। रचनाकार का पक्ष ऐसे ही मंचों पर खुलकर सामने आता है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sat, 28 Oct 2017 11:33 AM (IST)Updated: Sat, 28 Oct 2017 12:32 PM (IST)
जागरण संवादी 2017: रचनाकारों के इस मंच पर नहीं चलती परदेदारी : गीता श्री
जागरण संवादी 2017: रचनाकारों के इस मंच पर नहीं चलती परदेदारी : गीता श्री

लखनऊ। पिछले वर्ष जागरण संवादी में मुझे प्रतिभागी बनने का मौका मिला था। वरिष्ठ लेखिका मैत्रेयी पुष्पा के साथ मेरा सत्र था। हम दोनों से संवाद कर रहे थे पत्रकार-फिल्मकार अविनाश दास। स्त्री लेखन पर जितने तरह के आरोप हो सकते थे, उन तमाम मुद्दों पर अविनाश दास ने हम दोनों से खुलकर बात की। 

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सवाल-जवाबों के दौर चले। दो पीढिय़ों की सोच साफ दिख रही थी। श्रोताओं में युवा ज्यादा थे। हॉल खचाखच भरा था और लखनऊ के कई नामी लेखक मौजूद थे। युवाओं के पास बहुत सवाल होते हैं। वहां पर हम दोनों की बातचीत सुनने के बाद सवाल-जवाब का दौर चला, जो सत्र का सबसे खूबसूरत हिस्सा होता है। लेखक पाठक आमने-सामने हों तो क्या समां बंधता है।

सत्र लंबा चलता, अगर समय निर्धारित न होता। कहते हैं, संवादी के कुछ दिलचस्प सत्रों में से एक हम लोगों का था। वैसे मैंने और सत्रों में वक्ताओं को सुना। जितने भी सुने, सब दिलचस्प लगे। श्रोताओं की उपस्थिति अनूठी थी। 

यूनुस खान और उद्भव ओझा वाले शाम के सत्र में तिल रखने की जगह नहीं थी। श्रोता झूम रहे थे, गा रहे थे। संवादी की यह अनूठी परिकल्पना है कि संगीत का संवाद, बोझिल और उबाऊ सत्र में नहीं बदला, सुर बरसते रहे।

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संवादी का मंच ही था कि उद्भव ओझा जैसे विद्वान संगीतकार-गायक की विद्वता खुलकर सामने आ सकी। दो दिग्गजों का सुरीला संवाद आज तक जेहन में दर्ज है। हालांकि हमारे सत्र में हम दोनों से अलग-अलग तरह के संवाद हुए। 

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लेखन के मिजाज के अनुसार संवाद हुए। मैत्रेयी जी ने अपनी रचना यात्र पर बात की। मैं अविनाश के असहज कर देने वाले सवालों से जूझी। रचनाकार का पक्ष ऐसे ही मंचों पर खुलकर सामने आता है। संवादी रचनाकारों का मंच है जहां परदेदारी नहीं चलती।

संवादी को लेकर प्रख्यात साहित्यकार गीता श्री के अनुभव।


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