श्रीराम मंदिर ट्रस्ट गठन में न दिखे राजनीति, प्राचीन परंपरा और सनातन संस्कृति को ध्यान में रखकर बने ट्रस्ट: धर्मदास
बाराबंकी में स्वामी अभिराम दास के शिष्य धर्मदास ने श्रीराम मंदिर ट्रस्ट गठन को लेकर जताई अपनी मंशा।
बाराबंकी, जेएनएन। अयोध्या में विवादित स्थल पर वर्ष 1949 को अपने चार सहयोगियों के साथ भगवान श्रीराम मूर्ति स्थापना करने वाले स्वामी अभिराम दास के शिष्य महंत धर्मदास ने सोमवार को नगर के गांधी भवन में पत्रकारों से वार्ता की। उन्होंने अपनी मंशा जताते हुए कि श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए जो ट्रस्ट सरकार बनाए उसमें राजनीति न दिखे। प्राचीन परंपरा और सनातन संस्कृति को ध्यान में रखकर ट्रस्ट बनाया जाए।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में स्वामी अभिराम दास का पुजारी के रूप में हवाला दिया गया है। उनका शिष्य होने के नाते हमें पूजापाठ का मौका मिलेगा। आशंका ही नहीं पूरा विश्वास है कि कुछ लोग ट्रस्ट गठन में घांचपांच करना चाहते हैं। सरकार से मांग है कि ट्रस्ट गठन में राजनीतिक एजेंडा न दिखाई पड़े। यह भी कहा कि श्रीराम मंदिर निर्माण के नाम पर कुछ लोग चंदा वसूली में लग गए हैं जो ठीक नहीं हैं। वहीं, इसके लिए पहले से जो चंदा एकत्र हुआ है उसका हिसाब जनता के सामने सभी को देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि राम के नाम पर गलत कार्य करने वालों को बजरंगबली नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने अपने साथ विश्वासघात की आशंका भी जताई और ऐसा करने वालों को सचेत करते हुए कहा कि ‘दगा किसी का सगा नहीं है, न मानो तो कर देखो, जिस जिस ने दगा किया है जाकर उसका घर देखो।’
उन्होंने यह भी कहा कि राम जन्म भूमि फैसले को हिंदू-मुस्लिम के नजरिए से हम साधु नहीं देखते हैं। साधु किसी जाति धर्म के फेर में नहीं पड़ते।
गुरु-शिष्य का जिले से गहरा नाता : गांधी जयंती समारोह ट्रस्ट के अध्यक्ष राजनाथ शर्मा ने बताया कि ब्रह्मलीन स्वामी अभिराम दास ने कंधईपुर मजरे रसौली में कयूम किदवई की ओर से दिए गए दान से हनुमानगढ़ी मंदिर का निर्माण कराया था। वर्ष 1975 में आपातकाल लागू होने पर गिरफ्तार कर जेल भेज गए थे। उनके साथ जिला कारागार में रहने का मौका मिला। उनके बाद स्वामी धर्मदास रसौली हनुमानगढ़ी के व्यवस्थापक हैं।
धर्मदास व उनके साथ आए सुखदेव दास आदि ने गांधी जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया।