जाड़ों में केसरिया दूध का अपना ही स्वाद, लखनऊ की बड़ी हस्तियां भी आती थीं यहां
लखनऊ में कुछ ऐसे अड्डे हैं, जहां आज भी शाम होते ही स्वाद के शौकीनों से गुलजार हो जाते हैं इलाके।
लखनऊ, [कुसुम भारती]। भट्टी की धीमी आंच पर लोहे की कढ़ाई में पकते दूध की सोंधी महक से लखनऊ के ज्यादातर लोग वाकिफ हैं। सर्दियों में कुछ चुनिंदा दुकानों में खास तौर से लोग कढ़ाही का दूध पीने जाते हैं। कहीं सादा तो कहीं केसरिया दूध की कुछ ऐसी दुकानें भी हैं जो करीब सौ साल से ज्यादा पुरानी हैं जो आज भी शाम होते ही स्वाद के शौकीनों से गुलजार हो जाती हैं।
शहर की बड़ी हस्तियां आती थीं यहां
करीब डेढ़ सौ साल पुरानी मेहरा सिनेमा रोड स्थित लाला छबीले दूध वाले की दुकान पर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, अमृत लाल नागर, भगवती चरण वर्मा, चंद्रभानु गुप्त जैसी हस्तियां बाबू गंगा प्रसाद हॉल में मीटिंग करने के बाद इसी दुकान पर आते थे। दुकान के मालिक राकेश व राजेश पाल कहते हैं, लाला छबीले हमारे दादा थे जिन्होंने इस दुकान को शुरू किया था। यह हमारी पुश्तैनी दुकान है। पिताजी अक्सर दादा जी की बातों का जिक्र करते हुए बताते थे कि हमारी दुकान पर न केवल साहित्यकार, बल्कि नेता, मंत्री और शहर की बड़ी-बड़ी हस्तियां केवल दूध पीने आती थीं। वैसे तो सादा बेचते हैं, पर ग्राहकों की मांग पर चीनी अलग से डाली जाती है। 100 लीटर दूध पकाते हैं, करीब 80 लीटर तक बिक जाता है।
इसी एरिया में पहलवान दूध वाले के नाम से दुकान चला रहे मोहम्मद तौसीफ कहते हैं, पहलवान हमारे दादा जी थे जिन्होंने करीब 82 साल पहले दूध का काम शुरू किया था। वह दावा करते थे कि हमारे जैसा दूध और मलाई पूरे लखनऊ में कहीं नहीं मिलता। दूध में केसर व चीनी डालकर धीमी आंच पर पकाते हैं जब वह गाढ़ा हो जाता है तो उसका स्वाद और भी बढ़ जाता है।
वहीं खड़े दूध पीने आए शफाकत हुसैन ने बताया कि ठंड के दिनों में यहां आकर दूध न पिएं ऐसा हो नहीं सकता। यह न सिर्फ स्वाद का खजाना है, बल्कि पौष्टिकता से भी भरपूर है। शफाकत से उमेश अग्रहरि भी इत्तेफाक रखते नजर आए। उन्होंने भी यहां आने को अपनी आदत में शुमार बताया।
ये हैं खास अड्डे
गोल दरवाजा, यहियागंज चौराहा, नेहरू क्रास चौराहा, पानदरीबा सब्जी मंडी, नरही, चौपटिया, श्रीराम रोड, गणोशगंज, अमीनाबाद, नजीराबाद, डालीगंज, न्यू हैदराबाद, निशातगंज आदि शहर के कुछ ऐसे चुनिंदा स्थान हैं जहां कड़ाही वाला दूध मिलता है। खास बात यह है कि सर्दियों में इनकी मांग ज्यादा होती है।
दूध के साथ जलेबी का अलग मजा
होटल ताज के डिप्टी मैनेजर शबाहत हुसैन कहते हैं, हमारे यहां दूध-जलेबी नाश्ते में खाने का चलन था। इसका वैज्ञानिक कारण भी यह है कि जब हम वॉक करने के बाद लौटते हैं तो शरीर को कैल्शियम व एनर्जी की जरूरत होती है जो दूध-जलेबी खाकर पूरी हो जाती है।
शाम होते ही चढ़ जाती है दूध की कड़ाही
शहर की कुछ चुनिंदा दुकानों में शाम होते ही दूध की कड़ाही भट्टी पर चढ़ा दी जाती है। धीमी आंच पर करीब चार-पांच घंटे दूध पकाया जाता है। सफेद दूध का रंग धीरे-धीरे हल्का भूरा होने पर उसका स्वाद बढ़ने लगता है। कड़ाही में किनारे जमने वाली मलाई इस दूध के स्वाद को दोगुना करती है।