आरएसएस के शीर्ष प्रचारक की राय, मुस्लिमों के पूर्वज आदि पुरुष राम
यह ठीक है कि सातवीं शताब्दी में इस्लाम एक मजहब के रूप में सामने आया। इससे पूर्व हिंदूकुश से लेकर संपूर्ण आर्यावर्त में जो धर्म प्रचलित था, वह वैदिक धर्म या उसकी शाखा जैन या बौद्ध धर्म ही था। इस क्षेत्र में निवास करने वाले सभी लोगों के पूर्वज हिंदू
लखनऊ। यह ठीक है कि सातवीं शताब्दी में इस्लाम एक मजहब के रूप में सामने आया। इससे पूर्व हिंदूकुश से लेकर संपूर्ण आर्यावर्त में जो धर्म प्रचलित था, वह वैदिक धर्म या उसकी शाखा जैन या बौद्ध धर्म ही था। इस क्षेत्र में निवास करने वाले सभी लोगों के पूर्वज हिंदू एवं आदि पुरुष भगवान राम थे। आज इस तथ्य से इस्लाम के मानने वालों सहित सभी को अवगत कराने की जरूरत है। यह आह्वान है संघ की अखिल भारतीय कार्यसमिति के सदस्य, गैर हिंदुओं से संवाद की मुहिम के समन्वयक एवं राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संयोजक इंद्रेश कुमार का।
अयोध्या में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विभाग स्तरीय बैठक में मार्गदर्शन के लिए रामनगरी में प्रवास के दौरान अनौपचारिक भेंट में संघ के शीर्ष प्रचारक ने गैर हिंदुओं के प्रति संघ के दृष्टिकोण पर खुलकर चर्चा की। कहा कि मुसलमान यदि नसबंदी नहीं करा रहे हैं, तो भारतीय के तौर पर क्रुद्ध होने की बजाय उन्हें उससे उपजने वाले संकट के बारे में बताना होगा। सामान्य तौर पर यह अवधारणा है कि इस्लाम मस्जिदों और दरगाहों के माध्यम से हिंदुस्तान में प्रसारित हुआ पर गौर करने पर यह सामने आता है कि दरगाहों की स्थापना रूहानी आस्था से अनुप्राणित हो की गई और आस्था की यह परंपरा इस्लाम से पूर्व वैदिक परंपरा का हिस्सा रही है। उन्होंने कहा कि हिंदू तो बगैर किसी हिचक के मस्जिदों पर शीश झुकाने हाजिर होता है पर उस अनुपात में मुस्लिम मंदिरों की ओर नहीं उन्मुख होते। यह 'हाफ सेक्युलरिज्म' है। सेक्युलरिज्म को पूर्णता देने के लिए मुस्लिमों को भी मंदिरों की ओर उन्मुख होना होगा। यदि यह समरसता कायम हो सकी, तो रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जैसे विवाद का हल भी स्वत: सामने आएगा। अयोध्या प्रवास के दौरान इंद्रेश ने गुपचुप तौर पर शीश पैगंबर एवं हजरत इब्राहिम शाह की दरगाह पर आस्था अर्पित की एवं अपने आकलन के अनुरूप यह बताने की कोशिश की कि इन दरगाहों के सरोकार रूहानी है।