तंत्र फेल तो कैसे हो रोहिंग्या और बंगलादेशियों की पहचान, लखनऊ की सफाई व्यवस्था में 40% की घुसपैठ
लखनऊ में कूड़ा बटोरने से लेकर कबाड़ का काम करते हैं। पुलिस और अन्य प्रशासनिक तंत्र इनकी असल पहचान करने में नाकाम। यह सही में आसामी है या फिर फेक आइडी से आसाम का निवासी बनकर लखनऊ में।
लखनऊ [अजय श्रीवास्तव]। करीब दो दशक से सुनते आ रहे हैं कि लखनऊ में बंगलादेशी घुस आए हैं। यह सरकारी जमीनों पर बस्तियां बनाकर रह रहे हैं। कुछ समय से यह भी चर्चा होने लगी है कि इसमें रोहिंग्या भी हैं। करीब तीन साल पहले जानकीपुरम की बस्तियों में रह रहे ये कथित लोग चबूतरा बनाने का विरोध होने पर तलवार तक लेकर निकल आए थे और पूरी कॉलोनी में हंगामा काटा था। तब इनके रोहिंग्या होने के आरोप लगे थे। कॉलोनी की एकजुटता देखकर उन्हें वहां से जगह बदली पड़ी थी और वे मड़ियावं के आगे मिर्जापुर पुलिया से सटे एक खेत में डेरा जमाए हुए हैं। पुलिस और अन्य प्रशासनिक तंत्र इनकी असल पहचान करने में नाकाम रहा था।
अब जम्मू में रोहिंग्याओं की बस्तियों में प्रशासनिक काररवाई से खलबली मचने से यह मुद्दा फिर खड़ा हो गया कि यह कथित लोग कहां-कहां काबिज हैं।
सफाई कार्य में बना रखी है घुसपैठ: कूड़ा बटोरने से लेकर कबाड़ का काम करते हैं। समय के साथ यह घरों से कूड़ा लेने के साथ ही शहर की सफाई व्यवस्था में घुसपैठ तक बना लिए हैं। इनकी असल पहचान के लिए सरकारी फरमान भी जारी हुए लेकिन आज तक असली बंगलादेशियों की पहचान नहीं हो सकी।
यह सही में आसामी है या फिर फेक आइडी से आसाम का निवासी बनकर लखनऊ में अपने को भारतीय होने का दावा कर रहे हैं? यह सवाल हमेशा से चल रहा है। दरअसल इसमे अधिकांश अपने को आसाम के बारपेटा का निवासी बताते हैं और वहां की आइडी भी दिखाते हैं। खुफिया तंत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि यह लोग असल कहां के रहने वाले हैं? इसकी गहराई से पड़ताल कभी नहीं हो पाई है। आसाम सरकार से भी पत्राचार नहीं हो पाता है। यह एक ट्रक पर लदकर आते हैं और जहां पहले से ही खाली जमीन पर रहने का इंतजाम होता है, जो स्थानीय ठेकेदार करता है, जो कबाड़ का काम करता है या फिर सफाई का ठेका उसके पास होता है।
पूरे शहर में रात से लेकर सुबह तक दिखते हैं: जब हम आप सो रहे होते हैं तो सड़कों पर कूड़ा बटोरते हैं और उसमे से उपयोगी चीज निकाल लेते हैं, जिसे कबाड़ में बेचा जाता है। अक्सर सुबह पता चलता है कि मैनहोल का ढक्कन या फिर घर के बाहर रखा सामान चोरी हो गया। ऐसी शिकायतों को पुलिस हल्के में लेती थी। रात में कूड़ा बटोरने वालों से भी पुलिस टोका-टोकी तक नहीं करती है।
सुलभ तरह से उपलब्ध होने के कारण हर घर तक इसकी पकड़ भी हो गई है। जानकीपुरम से लेकर अलीगंज, इंदिरानगर, गोमतीनगर, डालीबाग, आशियाना और कानपुर रोड एलडीए कॉलोनी में इन अजनबी चेहरों की भरमार है। कूड़ों को बटोरने और घरों से लेने के बाद यह अनुपयोगी चीज को इधर-उधर फेंक देते हैं।
नगर निगम को भी हाथ खड़े करने पड़े थे : करीब पांच साल पहले की बात है। शहर के ट्रांसगोमती इलाके में कूड़ा बटोरने को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। कथित बंगलादेशी एक तरफ थे तो दूसरी तरफ कूड़ा प्रबंधन का काम देखने वाली संस्था थी। यह कथित बंगलादेशी घरों से कूड़ा बटोरने का काम करते थे और नगर निगम की तरफ से नामित संस्था को काम करने नहीं दे रहे थे। मारपीट की भी कई घटनाएं हुई। नगर निगम को हसनगंज अलीगंज, विकास नगर और मड़ियावं को पत्र लिखना पड़ा था। पत्र में कहा गया था कि कूड़ा प्रबंधन योजना को प्रभावित कर रहे लोगों पर काररवाई हो, लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की और इन अजबनी चेहरों का वर्चस्व आज भी कायम है। तब कुछ कुछ स्थानीय नेता कथित बंगलादेशियों के समर्थन में खड़े हो गए थे।
नगर निगम में भी दखल : नगर निगम के ठेकेदार भी सफाई कार्य में इन लोगों की मदद लेते हैं। शहर में आठ में चार जोन में घर-घर से कूड़ा लेने वाली मेसर्स ईको ग्रीन ने भी इन्हें काम सौंप रखा है।