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2018 में तीन महीने के अंदर 8577 दुर्घटनाएं- 4695 मौतें, जागरूकता-अभियान पर अब परिणाम का इंतजार

गत वर्ष की तुलना में जनवरी, फरवरी व मार्च माह के आकड़ों में इजाफा।

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Apr 2018 11:28 AM (IST)Updated: Fri, 20 Apr 2018 11:41 AM (IST)
2018 में तीन महीने के अंदर 8577 दुर्घटनाएं- 4695 मौतें, जागरूकता-अभियान पर अब परिणाम का इंतजार
2018 में तीन महीने के अंदर 8577 दुर्घटनाएं- 4695 मौतें, जागरूकता-अभियान पर अब परिणाम का इंतजार

लखनऊ[नीरज मिश्र]। हादसों में कमी लाने के लिए परिवहन विभाग ने निरंतर सड़क सुरक्षा अभियान चला रखे हैं। गोष्ठी, निबंध प्रतियोगिता समेत तमाम जागरूकता कार्यक्रमों की भरमार के बाद भी परिणाम अपेक्षानुरूप नहीं आ पा रहे हैं। बढ़ती दुर्घटनाएं और मृतकों की संख्या में इजाफा चिंताजनक है। साफ संकेत है कि विभाग की पहल अभी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। बीते वर्ष के प्रथम तिमाही से इस वर्ष के जनवरी, फरवरी और मार्च महीने का तुलनात्मक आकलन किया जाए तो सड़क दुर्घटनाओं में 17.31 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। वहीं मृतकों की संख्या में भी बढ़त दर्ज की गई है। सूबे में विभिन्न हादसों में 15.70 फीसद बढ़ी हैं। यही हाल घायलों का है। इसमें भी 14.15 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। वर्ष-2017 (जनवरी, फरवरी और मार्च माह के आकड़े)

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दुर्घटनाएं - 8577

मृतक -4695

घायल - 6049 वर्ष-2018 (जनवरी, फरवरी और मार्च माह के आकड़े)

दुर्घटनाएं - 10062

मृतक - 5432

घायल -6905 क्या कहना है परिवहन आयुक्त का?

अपर परिवहन आयुक्त सड़क सुरक्षा गंगाफल का कहना है कि इस बार न केवल मार्च माह में हादसों में कमी आई है बल्कि मृतकों की संख्या में भी गिरावट आई है। जनवरी और फरवरी की तुलना में कमी है। फिर भी आकड़े अभी संतोषजनक नहीं हैं। प्रयास जारी हैं। लगातार मॉनीटरिंग की जा रही है। जल्द और अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।

रोड की खामिया दूर हों,महकमों का हो काम तभी बनेगी बात

सड़क सुरक्षा को लेकर कमेटी का गठन हुआ था। इसमें लोनिवि, स्वास्थ्य, शिक्षा, यातायात पुलिस और परिवहन विभाग समेत कई अन्य महकमों की अलग-अलग जवाबदेही तय की गई थी। लेकिन महकमों का एक साथ काम नहीं दिखता है। इसमें ब्लैक स्पॉट चिह्नि्त होने के बाद रोड इंजीनियरिंग की खामियों को अरसे तक दूर नहीं किया जाता है। शिक्षा विभाग बच्चों को बचपन से घुट्टी पढ़ाने के लिए अभी तक पाठयक्त्रम में पूरी तरह से इसे शामिल नहीं कर पाया। सबसे अहम रोल प्रवर्तन कार्य का होता है। उसमें भी तेजी नहीं दिख रही है। कुछ गिने-चुने अभियान चला अधिकारी अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं।


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