पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम से पा चुका बहादुरी का सम्मान, पर उससे पेट तो नहीं भरता!
पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से बहादुरी का पुरस्कार पा चुका और इस गौरवमयी अतीत को पीठ पर लादे रियाज वर्तमान की किरचें आंखों में लिए हालात की ठोकरें खा रहा है।
विनय तिवारी, लखनऊ। सड़क किनारे चाय के ठेले पर दोनों हाथों और एक पैर से वंचित युवक जब भगौने को अंगीठी पर रखता है तो लोग बरबस ही उसकी ओर देखने लगते हैं। जब उससे बात करते हैं तो कौतूहल दुखद आश्चर्य में बदल जाता है। पहली नजर में उसे देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि किसी की जान बचाने में दिव्यांग हो जाने वाला यह मुहम्मद रियाज नाम का यह युवक राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाजा गया था।
पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से बहादुरी का पुरस्कार पा चुका और इस गौरवमयी अतीत को पीठ पर लादे रियाज वर्तमान की किरचें आंखों में लिए हालात की ठोकरें खा रहा है। नौकरी के वादे तो कई हमदर्दों ने किए, लेकिन वे वादे ही रह गए। कोई कुरेदता है तो बस इतना ही कहता है, सम्मान तो बहुत मिला साहब! पर उससे पेट तो नहीं भरता।
दिसंबर, 2003 में आठ साल का मुहम्मद रियाज लखनऊ के बुद्ध पार्क में झूला झूल रहा था। उसे पांच वर्ष की बच्ची सादिया रेलवे पटरी पर जाती दिखी। आवाज लगाई पर बच्ची ने नहीं सुना। यह देख रियाज झूले से उतर पटरी की ओर भागा। जैसे ही रियाज ने बच्ची को पकड़ा रेलवे पटरी की कैंची में उसका पैर फंस गया। इस बीच ट्रेन आ गई। यह देख रियाज ने बच्ची को दूसरी ओर धकेल दिया। इस घटना में रियाज का एक पैर और दोनों हाथ कट गए थे।
लखनऊ की वृंदावन कॉलोनी के सेक्टर छह स्थित अपने मकान से कुछ दूरी पर रियाज चाय की दुकान चला रहा है। पिता मुहम्मद अहमद मानसिक बीमारी के कारण घर पर ही रहते हैं। मां किशमतुन्निशा चौका बर्तन करती हैं। परिवार में तीन छोटी बहन इकरा, अजरा और रूबी के अलावा एक भाई अमन है।