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Lucknow University Centenary celebrations: छात्र नेताओं संग जेल गए थे सेवानिवृत्त न्यायाधीश सैय्यद हैदर अब्बास

Lucknow University Centenary celebrations विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार व कुप्रशासन के विरुद्ध 1958 में बहुत बड़ा आंदोलन हुआ। सभी छात्र नेताओं के साथ मुझे भी जेल में रहना पड़ा। बाद में हाई कोर्ट में न्यायाधीश की नियुक्ति के बाद मैंने भूतपूर्व लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संगठन की नींव डाली।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 03:41 PM (IST)Updated: Thu, 19 Nov 2020 06:47 AM (IST)
Lucknow University Centenary celebrations: छात्र नेताओं संग जेल गए थे सेवानिवृत्त न्यायाधीश सैय्यद हैदर अब्बास
सेवानिवृत्त न्यायाधीश और पूर्व लोकायुक्त सैय्यद हैदर अब्बास रजा ने साझा की लखनऊ व‍िव‍ि के छात्र जीवन की यादें।

लखनऊ, जेएनएन। लखनऊ विश्वविद्यालय मेरी हर सांस में बसा है और ऐसा क्यों न हो, मैंने अपने जीवन में जो कुछ पाया, उसमें अल्लाह की मेहरबानी के साथ, विश्वविद्यालय के शैक्षिक वातावरण, शिक्षकों का बौद्धिक विकास में योगदान और मित्रों का असीम प्रेम सम्मिलित है। जुबली कॉलेज से इंटर करने के बाद 1956 में मैंने विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। उस समय विश्वविद्यालय का हर विभाग चमकते सितारों से रोशन था। विधि निकाय के प्रो. आरयू सिंह, अर्थशास्त्र के डीपी मुखर्जी व राधा कमल मुखर्जी, अंग्रेजी के प्रो. सिद्धांत विश्वविद्यालय से जा चुके थे। पर उनके उत्तराधिकारी अध्यापाक विद्या की मशाल को उठाए हुए थे। जिनमें प्रो. गुप्ता, प्रो. शुक्ला, प्रो. अवतार सिंह विधि निकाय के छात्रों के हृदय व मस्तिष्क पर छाए हुए थे।

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इसी तरह संस्कृत विभाग के प्रो. अय्यर, हिंदी के प्रो. दीन दयाल गुप्ता, अरबी के प्रो. वहीद मिर्जा, उर्दू के ऐहतिशाम हुसैन, कॉमर्स निकाय के डॉ. सरकार, विज्ञान के प्रो. पीएन शर्मा आदि जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याती के अध्यापकों का सिक्का चल रहा था। इससे पहले मुझे याद है 1953 में नैनीताल में हुई वाइस चांसलरों की बैठक में, जो प्रदेश के गवर्नर व विश्वविद्यालयों के चांसलर केएम मुंशी की अध्यक्षता में हुई, उस छात्र यूनियनों के भंग करने व वाइस चांसलर की नियुक्तियों में सरकारी दाखिले को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया। इस कारण से चंद्रभाल त्रिपाठी व रॉबिन मिश्रा के नेतृत्व में एक जबरदस्त प्रदेशव्यापी आंदोलन हुआ। मैं उस समय जुबली कॉलेज के छात्र यूनियन का सचिव और स्टूडेंट फेडरेशन का सक्रिय सदस्य भी था। मैंने उक्त आंदोलनों में हिस्सा लिया।

विश्वविद्यालय यूनियन भवन में भूख हड़ताल हुई। रात के 12 बजे पहली बार विद्यालय छात्र यूनियन पर पुलिस का छापा पड़ा। सारे मूकहड़ताली और छात्र नेता गिरफ्तार कर लिए गए। छात्रों के विरोध पर लाठी चार्ज हुआ, पूरे शहर में कफ्र्यू लगा दिया गया और मेडिकल निकाय के छात्र डॉ. गपंदर पुलिस की गोली से मेरे सामने शहीद हुए। विश्वविद्यालय यूनियन के प्रांगण में उनकी प्रतिमा लगी थी, जिसे कुछ वर्ष पहले हटा दिया गया। छात्र यूनियन को पुनजीर्वित करने व विश्वविद्यालय की स्वायत्ता को बचाने का आंदोलन पूरे प्रदेश में फैल गया। उसके बाद केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से छात्र यूनियनों पर से प्रतिबंध हटाया गया। विश्वविद्यालय छात्र आंदोलन से उत्साहित होकर पूरे प्रदेश विशेषकर लखनऊ में छात्र आंदोलनों की बाढ़ आ गई।

विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार व कुप्रशासन के विरुद्ध 1958 में बहुत बड़ा आंदोलन हुआ। सभी छात्र नेताओं के साथ-साथ मुझे भी कई बार लखनऊ, फैजाबाद, बनारस व मथुरा के जेलों में कई महीनों तक रहना पड़ा। बाद में हाई कोर्ट में न्यायाधीश की नियुक्ति के बाद मैंने भूतपूर्व लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संगठन की नींव डाली। इसका पहला अधिवेशन गवर्नर हाउस में हुआ, जिसका उद्घाटन विश्वविद्यालय के मेरे सहपाठी व सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री आनंद ने किया। चूंकि विश्वविद्यालय में 1920 के नवंबर के महीने से शिक्षा दीक्षा कार्य शुरू हुआ था। इस कारण हर वर्ष उसी महीने में सम्मेलन आयोजित किया जाता रहा, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में विशेष सेवा अर्पित करने वाले विश्वविद्यालय के भूतपूर्व छात्रों को प्रशंसा पत्र व अवार्ड दिया जाता रहा।

(नोट- लेखक सेवानिवृत्त न्यायाधीश और पूर्व लोकायुक्त हैं।) 


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