लखनऊ में रेल कर्मी के पुत्र वसीम रिजवी ने सऊदी अरब के होटल, जापान व अमेरिका में किया था काम
जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी (वसीम रिजवी) के पिता का इंतकाल उस समय हो गया था जब रिजवी करीब 12 वर्ष के थे। वालिद के इंतकाल के बाद रिजवी और उनके भाई-बहनों की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई। रिजवी अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे।
लखनऊ, जेएनएन। गाजियाबाद के डासना मंदिर में महंत यति नरसिंहानंद गिरि से सोमवार को सुबह अपना मत परिवर्तन करवाने वाले जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी (वसीम रिजवी) लखनऊ में जन्मे और एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता रेलवे के कर्मचारी थे।
इनके पिता का इंतकाल उस समय हो गया था, जब वसीम रिजवी करीब 12 वर्ष के थे। उस दौरान वह कक्षा छह में पढ़ाई कर रहे थे। वालिद के इंतकाल के बाद रिजवी और उनके भाई-बहनों की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई। रिजवी अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उन्होंने 12वीं तक की शिक्षा हासिल की। आगे की पढ़ाई के लिए नैनीताल के एक कालेज में प्रवेश लिया।
डिग्री हासिल करने के बाद वह सऊदी अरब चले गए और एक होटल में काम शुरू किया। वहां से कुछ दिनों बाद वह जापान चले गए। वहां एक कारखाने में काम किया और यहां से अमेरिका जाकर एक स्टोर में नौकरी की। इसके बाद वह लखनऊ वापस आ गए।
लखनऊ वापसी के बाद जब उनके सामाजिक संबंध अच्छे होने लगे तो उन्होंने नगर निगम का चुनाव लडऩे का फैसला किया। नगर निगम के चुनाव से ही वसीम रिजवी ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। यहीं से उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई। इसके बाद वो वक्फ बोर्ड के सदस्य बने और उसके बाद चेयरमैन के पद तक पहुंचे। वो लगभग दस वर्ष तक बोर्ड में रहे। समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान वह शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बने और भाजपा सरकार के कार्यकाल तक जारी रहा।
जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी बने वसीम रिजवी 2000 में पुराने लखनऊ के कश्मीरी मोहल्ला वॉर्ड से समाजवादी पार्टी (सपा) के नगरसेवक चुने गए। 2008 में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्य बने। 2012 में शिया वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में हेरफेर के आरोप में घिरने के बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। उन्होंने इस पर आपत्ति जताने के साथ कोर्ट में याचिका दायर की और वहां से उन्हें राहत मिल गई।
अंतिम संस्कार कर चुके हैं वसीयत
मत परिवर्तन करके जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी बन चुके उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्य और पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने अपनी वसीयत बनाई है। इसमें उन्होंने मरने की बाद कब्रस्तिान में दफन कराने के बजाए श्मशान घाट पर अंत्येष्टि की इच्छा जताई है। रिजवी ने अपनी वसीयत में गाजियाबाद के डासना मंदिर के महंत नरसम्हिा नंद सरस्वती को मुखाग्नि देने का अधिकार दिया है।
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