केजीएमयू से आनॅ द स्पॉट रिपोर्ट: आखें इंद्र की ओर..इंतजार 'भगवानों' का
आखें इंद्र की ओर.इंतजार 'भगवानों' का। केजीएमयू में बारिश के साथ रिसती रहीं मानवीय संवेदनाएं।
लखनऊ[संदीप पाण्डेय] मानो बारिश में मानवीय संवेदनाएं भी रिस-रिसकर बह रही हों। केजीएमयू में पानी से तरबतर कई मरीज ओपीडी की ओर व्याकुल निगाहों से देखते और अगले ही पल मायूस हो बैठ जाते। बेचैनी बढ़ती तो निगाहें आसमान की ओर इस उम्मीद से उठतीं कि शायद अब इंद्र भगवान उन पर रहम खा जाएं, लेकिन न इंद्र ही पसीजे और न धरती के भगवान ने सुध ली। सोमवार को जागरण की 'ऑन द स्पॉट' रिपोर्टिग में राजधानी में चिकित्सा सेवाओं का सबसे बड़ा केंद्र केजीएमयू खुद ही कराहता नजर आया। मौसम से लड़ते इलाज के लिए कोई रिक्शे से पहुंचा था तो कोई पड़ोसियों का सहारा लेकर। इस आशका के साथ कि कहीं देरी होने पर डॉक्टर साहब ओपीडी से निकल न जाएं। बावजूद, कुल बजट का आधा अपने वेतन पर उड़ाने वाले डॉक्टर और स्टाफ के लोगमरीजों को लावारिस छोड़ बारिश में घरों से ही निकलने का हौसला न कर सके। जागरण टीम ने सुबह आठ से 11 बजे तक ओपीडी, पैथोलॉजी से लेकर इमरजेंसी सेवा तक की पड़ताल की। न्यू ओपीडी ब्लॉक, ओल्ड ओपीडी ब्लॉक, डेंटल ओल्ड ब्लॉक, डेंटल न्यू ब्लॉक, मानसिक रोग विभाग, लारी कार्डियोलॉजी, सीटीवीएस, क्वीनमेरी व ट्रामा सेंटर में तमाम जगहों पर मरीजों का हाल बेहाल मिला। इन भवनों में संचालित 53 ओपीडी व विशेष क्लीनिक में से अधिकाश डॉक्टरों से खाली थे। कई ओपीडी कक्षों में बेलन व ताला पड़ा मिला। दूर-दराज से आए मरीज व्हीलचेयर, स्टेचर व फर्श पर पड़े कराह रहे थे। लारी को छोड़कर साढ़े नौ बजे तक जूनियर डॉक्टर किसी ओपीडी में नहीं पहुंचे। सीनियर डॉक्टर दस बजे से आना शुरू हुए। डॉक्टरों की यही लापरवाही मुख्य पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी विभाग में भी दिखी। जांच ट्रामा सेंटर में इलाज बाहर:
केजीएमयू की इमरजेंसी सेवाएं भी बदहाल हैं। कारण, दिन में राउंड लेने के बाद सीनियर डॉक्टर ड्यूटी से गायब हो जाते हैं। ट्रामा, क्वीनमेरी व लारी की सेवाएं रात में जूनियर डॉक्टरों के भरोसे हो जाती हैं। ऐसे में दुर्घटना के शिकार मरीजों को 'गोल्डन ऑवर' के भीतर पहुंचने पर भी गुणवत्तापरक इलाज मिलना मुश्किल हो जाता है। ट्रामा में देर शाम मरीजों को जाच के बाद बेड फुल होने का हवाला देकर दलालों के हवाले कर दिया जाता है।
आनॅ द स्पॉट:
बारिश के बीच रोगी तो भीगते हुए अस्पताल तक पहुंचे, लेकिन डॉक्टर नदारद रहे। वे शायद घर में चाय-काफी पीते रहे और पाई-पाई जोड़कर ऑटो और रिक्शा से इलाज की आस में अस्पताल पहुंचे मरीज 'धरती के भगवान' का इंतजार करते रहे। व्यवस्था को काधा! :
इमरजेंसी के लिए कितना तैयार है व्यवस्था तंत्र ? बानगी है ये व्यवस्था। सिद्घार्थ नगर से इलाज को आये संतराम को ट्रामा सेंटर के बाहर अटैक पड़ा तो स्ट्रेचर भी न मिला। पुत्र भोला को उन्हें अपने कंधे पर लारी अस्पताल तक लाना पड़ा। क्या कहते हैं डॉक्टर?
केजीएमयू सीएमएस डॉ. एसएन शखवार का कहना है कि बारिश काफी हो रही थी। ऐसे में डॉक्टरों को पहुंचने में देर हो गई। यह दिक्कत रोजाना नहीं चलेगी। ऐसी शिकायत मिली तो उपस्थिति रजिस्टर सवा नौ बजे तलब कर लिया जाएगा। लापरवाह चिकित्सकों की अनुपस्थिति लगाकर जवाब-तलब किया जाएगा।