ऑन द स्पाट रिपोर्ट: खुले आसमान में कक्षाएं और बच्चों के हाथ में किताबों की जगह झाड़ू
कहीं शिक्षकों के आने से पहले झाडू़ लेकर सफाई करते मिले बच्चे। कहीं पढ़ाई-लिखाई की बुनियादी सुविधाओं के साथ बच्चे तो मिले, पर शिक्षक नहीं। दुर्भाग्य यह है कि बारिश के मौसम में बच्चों के सिर पर न छत है न सुरक्षा के लिए चहारदीवारी। दैनिक जागरण की आनॅ द स्पाट खबर..
लखनऊ[पुलक त्रिपाठी]। यह रिपोर्ट शिक्षा प्रणाली के बल पर देश के एक बार फिर विश्वगुरु बनने की बाट जोह रहे स्वप्नजीवियों के लिए आईना है, अपने बच्चों की शिक्षा के बल पर अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे अभिभावकों के लिए आघात, यह हर संवेदनशील नागरिक का दिल दहला देने वाली कहानी है तो सत्ता तंत्र के लिए सच का सामना। यह रिपोर्ट राजधानी लखनऊ के 14 प्रतिनिधि प्राइमरी विद्यालयों की पठन-पाठन व्यवस्था का आखों देखा सच है। यह रिपोर्ट देश के आम-ओ-खास नागरिकों की इस चिंता का जवाब भी है कि जब कभी विश्व के श्रेष्ठ शिक्षा संस्थान और वैज्ञानिक उपलब्धिया श्रेष्ठता क्रम में सूचीबद्ध की जाती हैं तो हमारे सर शर्म से क्यों झुक जाते हैं। इस सवाल का भी जवाब कि तमाम अनियमितताओं के बावजूद निजी विद्यालय क्यों पसंद किए जाते हैं।
इस धारणा के आधार पर कि राजधानी होने के नाते सवरेत्तम प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था लखनऊ में होगी, जागरण टीम ने सोमवार सुबह 14 प्रतिनिधि प्राइमरी विद्यालयों का ऑन द स्पॉट जायजा लिया। यह भयभीत और चिंतित कर देने वाली सत्यकथा है। अधिकतर विद्यालयों में पढ़ाई-लिखाई की बुनियादी सुविधाओं के साथ बच्चे तो मिले, पर शिक्षक नहीं। कहीं बच्चे ताला खुलने का इंतजार करते मिले तो कहीं शिक्षकों के आने से पहले झाडू़ लेकर सफाई करते। अधिकतर विद्यालयों में बच्चे मिडडे मील की तैयारी में उत्साहपूर्वक योगदान कर रहे थे। एक-दो अपवादों को छोड़कर किसी भी विद्यालय में शिक्षक पढ़ाते या विद्यार्थी पढ़ते नहीं मिले। विडंबना यह कि कोई जन प्रतिनिधि या अधिकारी इन विद्यालयों में झाकने नहीं आता। बच्चे तो मासूम हैं। उनके लिए झाड़ू लगाना भी बाललीला है और मिडडे मील भी। उन्हें यह समझाना शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि विद्यालय पढ़ाई के लिए हैं, लेकिन यह तब तक संभव है जब शिक्षक समझे कि उनका दायित्व बच्चों को पढ़ाना-लिखाना है। बदहाली : - शिक्षक समय पर नहीं आते, आने के बाद पढ़ाने में दिलचस्पी नहीं लेते
- बच्चों को पढ़ाने के बजाय विद्यालय में झाड़ू लगवाई जाती है। - पढ़ाई न होने के कारण विद्यार्थियों की उपस्थिति काफी कम रहती है।
- शिक्षक बेपरवाह, क्योंकि कोई जन प्रतिनिधि या अधिकारी झाकने नहीं आता।