Move to Jagran APP

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया रामजन्मभूमि मुद्दा

विश्व हिंदू परिषद नेता अशोक सिंहल ने रामजन्मभूमि मुद्दे को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया। जीवन के अंतिम क्षणों में सामाजिक समरसता, आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा उनके सरोकार रहे। कर्मक्षेत्र में उतरे इस कर्मयोगी ने 1984 में रामजन्मभूमि मुक्ति यात्रा के जरिए ऊंचाइयों की तरफ रुख किया।

By Nawal MishraEdited By: Published: Tue, 17 Nov 2015 08:32 PM (IST)Updated: Tue, 17 Nov 2015 10:00 PM (IST)
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया रामजन्मभूमि मुद्दा

लखनऊ। विश्व हिंदू परिषद नेता अशोक सिंहल ने रामजन्मभूमि मुद्दे को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया। जीवन के अंतिम क्षणों में सामाजिक समरसता, आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा उनके सरोकार रहे। कर्मक्षेत्र में उतरे इस कर्मयोगी ने 1984 में रामजन्मभूमि मुक्ति यात्रा के जरिए ऊंचाइयों की तरफ रुख किया। 1987-88 के दौरान मंदिर निर्माण के देश भर के सभी शहरों और पांच लाख गांवों में शिला पूजन कराकर मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाया। 1990 की कारसेवा आते-आते सच साबित होने लगा। सिंहल के नेतृत्व में धर्माचार्यों ने 30 अक्टूबर के लिए कारसेवा का एलान किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने आंदोलनकारियों को अयोध्या जाने से रोकने के हरसंभव प्रयास किए। बावजूद इसके 30 अक्टूबर 1990 सुबह लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंच गए। कुछ जगहों पर पथराव के दौरान विहिप मुखिया लहूलुहान हुए। छह दिसंबर 1992 के बाद मंदिर आंदोलन कमजोर हुआ। मार्च 2002 में परमहंस रामचंद्रदास को आगे कर सिंहल ने आंदोलन को बढ़ाया।

prime article banner

अयोध्या में शोक

अशोक सिंहल के निधन पर बाबरी के पैरोकार हाशिम अंसारी ने शोक व्यक्त किया और कहा कि मेरा मुकाबला करने वाला योद्धा चला गया। सिंहल हमारे ख़ास लोगो में से थे। विहिप में सिंहल जैसा कोई नेता नहीं है। मै अपने मजहब के लिए लड़ रहा हू वे अपने मज़हब के लिए लड़ रहे थे। सिंहल की तारीफ़ करते हुए हाशिम ने कहा कि उन्होंने कभी भी मेरे लिए गलत शब्दों का इस्तेमाल नही किया और मैंने भी उनके लिए गलत शब्दों का इस्तेमाल नही किया। रामजन्मभूमि न्यास अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास ने कहा कि हिन्दू और हिंदुत्व के लिए जो काम सिंहल ने किया है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। विहिप के मिडिया प्रभारी शरद शर्मा ने कहा कि वह १९८४ से अयोध्या से पूरी तरह से जुड़ गए और पूरा जीवन राम मंदिर के लिए समर्पित कर दिया।

घर में खुलवाई धर्मशाला

विश्व हिंदू परिषद संरक्षक अशोक सिंघल ने समाज के लिए ही पूरा जीवन झोंक दिया। अंग्रेजी हुकूमत में कलक्टर रहे उनके पिता ने भी अलीगढ़ के पैतृक गांव की पूरी जमीन भी भाइयों को दे दी थी। किसी दूसरी संपत्ति में हिस्सा नहीं लिया। जो घर था, उसमें सिंघल ने बाबा के नाम धर्मशाला खुलवा दी। गांव में 40 (कच्चे) बीघा जमीन खरीदकर दो स्कूल खुलवाए। यहां 200 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं। जैसे ही सिंघल के निधन की खबर आई, पूरा गांव शोक में डूब गया। चचेरे और दोनों तहेरे भाई अंतिम दर्शन के लिए दिल्ली चले गए।

आठ संतानों में चौथा नंबर

अलीगढ़ के अतरौली क्षेत्र का बिजौली अशोक सिंघल का पैतृक गांव है। गांव में चचेरे भाई महाराणा प्रताप सिंघल, तयेरे भाई नरेश सिंघल व अनिल सिंघल रहते हैं। महाराणा प्रताप बताते हैं कि ताऊ महावीर सिंह की आठ संतानों में अशोक चौथे नंबर के थे। भाइयों में सबसे बड़े प्रमोद कुमार, दूसरे नंबर पर विनोद कुमार, तीसरे आनंद प्रकाश, चौथे अशोक सिंघल, पांचवीं बहन ऊषा, छठवें पर बीपी सिंघल, सातवें पीयूष सिंघल व सबसे छोटे विवेक सिंघल थे। इनमें से सिर्फ आनंद प्रकाश ही हमारे बीच हैं।

27 सितंबर को आगरा में जन्म

अशोक सिंघल का जन्म आगरा में 27 सितंबर 1927 को हुआ था। उस वक्त पिता आगरा में ही डीएम थे। पिता की तैनाती वाले शहरों में उनकी पढ़ाई-लिखाई होती रही। संघ से जुडऩे के बाद कई बार गांव आना हुआ। 27 मई 2007 को अपने बाबा बैजनाथजी की मूर्ति की स्थापना के लिए आखिरी बार आए थे। पैतृक घर में मूर्ति स्थापित करते हुए घर को धर्मशाला के लिए दे गए। सिंघल ने गांव में बाबा व पिता के नाम श्री बैजनाथ-महावीरजी सिंघल सरस्वती शिशु मंदिर की 1992 में स्थापना की। इसमें एक से पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। 1997 में सरस्वती विद्या मंदिर खुलवाया, जिसमें छह से आठ तक के बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल बनवाने में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से लेकर सर संघ चालक रज्जू भैया तक ने खूब मदद की।

नहीं हो पाया शिवमंदिर पुनरुद्धार

चचेरे भाई बताते हैं कि गांव में करीब 500 साल पुराना शिव मंदिर है। अशोक सिंघल इसका पुनरुद्धार करके अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाना चाहते थे। 2007 में यहां रुद्राभिषेक भी किया था। उसके बाद आना न हो सका। इस मंदिर में हर शिवरात्रि बड़ा मेला लगता है। चचेरे भाई बताते हैं कि अशोक सिंघल ने 1992 में गांव में अपना परिवार एकजुट किया था। उनके बुलावे पर सभी 1000 परिवारी सदस्य जुटे थे। ऐसा मौका फिर नहीं आ सका।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.