After Ayodhya Verdict: भव्यतम मंदिर की साध के साथ बयां भगवान राम की आला हैसियत
After Ayodhya Verdict सुप्रीम फैसले के बाद लघु भारत बनी रामनगरी। राममंदिर के साथ सजने लगी नव्य अयोध्या की उम्मीद।

अयोध्या [रघुवरशरण]। भारतीय जनमानस में भगवान राम की हैसियत कितनी आला है, यह जानना हो तो अयोध्या आइए। 16 अक्टूबर को सुप्रीमकोर्ट में मंदिर-मस्जिद विवाद की सुनवाई पूरी होने के साथ फैसले के इंतजार से शुरू हुई सरगर्मी गत शनिवार को रामलला के हक में फैसला आने के साथ चरम पर जा पहुंची। इसी बीच पांच से छह नवंबर तक14 कोसी और सात से आठ नवंबर तक पंचकोसी परिक्रमा तथा मंगलवार को कार्तिक पूर्णिमा स्नान के चलते रामनगरी की सरगर्मी में चार-चांद लगे।

मंगलवार को पूर्णिमा स्नान के साथ कार्तिक मेला तो गुजर गया पर फैसला आने के साथ रामलला के प्रति उमड़ा अनुराग परवान चढ़ता दिखा। आस्था के केंद्र में रामलला हैं या वह कार्यशाला है, जहां रामलला के भव्य मंदिर के लिए तीन दशक से शिलाएं गढ़ी जा रही हैं। रामजन्मभूमि से लेकर मंदिर निर्माण कार्यशाला की करीब डेढ़ किलोमीटर की परिधि में लघु भारत का मंजर नजर आता है। फैसला आने के बाद कोई झारखंड से, कोई कर्नाटक से, कोई गुजरात से, कोई तमिलनाडु से, कोई महाराष्ट्र से, कोई बंगाल से, तो कोई बिहार से रामलला को शिरोधार्य करने आया है। बस सबकी एक ही साध है कि भगवान राम का भव्य से भव्य मंदिर बने। करोडों-करोडऱामभक्तों की आस्था, धर्म-अध्यात्म-संस्कृति की समृद्ध परंपरा के महानतम नायक और रामजन्मभूमि मुक्ति के लिए करीब पांच सदी तक चले सुदीर्घ संघर्ष की गौरवमय सफलता के अनुरूप। यह आकांक्षा रामेश्वरम की अकिला भारत श्रीराम सेना के सचिव आदि मदनगोपाल और उनके साथी पट््दुकोट्टई, मोती कालीश्वरन, मछुआरों के प्रमुख लिरैय्यार राजा आदि से परिलक्षित होती है, जब वे सुदूर दक्षिण भारत के समुद्र तट से पांच पूजित ईंटें सिर पर लेकर न्यास कार्यशाला परिसर में दाखिल होते हैं और उन ईंटों को अन्य ईंटों के उस अंबार के पास पूरी निष्ठा से सहेजते हैं, जो तीन दशक से मंदिर निर्माण की आकांक्षा के पर्याय बने हुए हैं और आज मंदिर निर्माण की उम्मीदों से स्पंदित हो रहे हैं। यहीं मंदिर के लिए गढ़ी गईं शिलाओं को नमन करते बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी अशोक कुमार ङ्क्षसह और उनकी पत्नी गायत्री से भेंट होती है। वे एक स्वर से कहते हैं, भगवान राम का मंदिर जितना अच्छा बन सके, उतना अच्छा बनाना चाहिए। यह दंपती अपनी चाहत का समीकरण भी दो टूक लहजे में स्पष्ट करता है, यह कहते हुए कि भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, तो उनका मंदिर भी सर्वाेत्तम होना चाहिए।
कर्नाटक के श्रद्धालुओं को शिलाओं के बारे में जानकारी देते हुए नितेश पांडेय से मुलाकात होती है, जो 12 वर्षों से गाइड का काम कर रहे हैं। नितेश को पहले न्यास कार्यशाला देखने के इच्छुक श्रद्धालुओं के एक-दो जत्थे मिलते थे पर गत सप्ताह से अकेले उन्हें ही यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं के दो से तीन जत्थे लेकर आने पड़ते हैं। उनका अनुमान है कि अगले कुछ दिनों में अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं में बेतहाशा वृद्धि होगी। अयोध्या नगर निगम के जिस क्षेत्र में रामजन्मभूमि है, उस रामकोट वार्ड के पार्षद रमेशदास कहते हैं, हम आने वाले दिनों के लिए तैयार हो रहे हैं, इसका अंदाजा नगर निगम से लेकर केंद्र सरकार तक को है और इसी तथ्य को ध्यान में रख कर नव्य अयोध्या विकसित करने की तैयारी है।
न्यास कार्यशाला से निकलकर सरयू तट की ओर जाते रास्ते अब फैसला आने के वक्त जैसे सुरक्षा घेरे से मुक्त हो चले हैं और बाहर से आने-वाले श्रद्धालुओं के साथ स्थानीय नागरिकों की हल-चल भी पूरी चहक के साथ बढ़ गई है। युवा महंत नीरज शास्त्री वासुदेवघाट तिराहा स्थित एक चाय की दुकान पर अखबार पढ़ रहे होते हैं। सामने मीडियाकर्मी को देखकर वे एक पल की देरी किए बिना कहते हैं, सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय, उसके बाद की परिस्थितियां और मीडिया की भूमिका फील गुड कराने वाली है और हम यह सब कुछ भव्यतम मंदिर निर्माण के रूप में अंजाम तक देखने को आतुर हैं। आशंकाएं निर्मूल साबित हुई हैं और असंभव संभव हुआ है। यह तथ्य पुण्य सलिला सरयू की ओर बढ़ती भीड़ से पुष्ट होता है। जानकीमहल ट्रस्ट से आगे बढ़ते ही बायीं ओर खाकचौक मंदिर के कक्ष में महंत परशुरामदास सहयोगियों के बीच फैसले का गुण-गान कर रहे होते हैं और अगले पल वे भगवान राम के ऐसे मंदिर की वकालत करते हैं, जैसा दुनिया में अन्यत्र न हो।

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