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यहां कभी भी मैदान नहीं छोड़ते राम और रावण, अस्त्र-शस्त्र सहित आमने-सामने

117 वर्ष पुराना हो चुका अमेठी का दशहरा मेला। रावण की प्रतिमा का निर्माण अब्दुल खालिक कुरैशी ने किया था।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 18 Oct 2018 09:05 PM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 03:12 PM (IST)
यहां कभी भी मैदान नहीं छोड़ते राम और रावण, अस्त्र-शस्त्र सहित आमने-सामने
यहां कभी भी मैदान नहीं छोड़ते राम और रावण, अस्त्र-शस्त्र सहित आमने-सामने

लखनऊ[राम दशरथ यादव]।विजयदशमी का पर्व निकट आते ही राम और रावण के युद्ध की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। अमेठी में युद्ध के पहले राम और रावण की प्रतिमा का रंग रोगन किया जा रहा है। यहां वर्षों से राम और रावण आमने-सामने हैं। रावण भी कभी मैदान से नहीं हटता। उसे कभी भी रामबाग में देखा जा सकता है।

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गोसाईगंज के अमेठी का दशहरा मेला करीब 117 साल पुराना हो चुका है। यह मेला वर्ष 1901 से लग रहा है। बताया गया है कि पहले यह मेला बसरहिया गांव में लगता था। 1904 से मेला अमेठी के रामबाग में लगने लगा। 1920 में यहां मिट्टी की रावण की प्रतिमा स्थापित की गई। बरसात में ध्वस्त होने के बाद 1980 में सीमेंटेड प्रतिमा का निर्माण कराया गया। रावण की प्रतिमा का निर्माण अमेठी के ही अब्दुल खालिक कुरैशी ने किया था जो अब दुनिया में नहीं हैं। वर्ष 2004 में रावण के ही सामने प्रभु श्रीराम की प्रतिमा स्थापित की गई। इसे रघुनाथ प्रसाद सोनकर ने बनवाया था। अब दोनों ही प्रतिमा अस्त्र-शस्त्र सहित आमने-सामने रहती हैं।  

अमेठी निवासी 82 वर्षीय गुरु प्रसाद वर्मा बताते हैं कि हम लोग अपने समय में मेले का चंदा वसूलने के लिए गुल्लक लेकर निकलते थे। उस समय महीने भर में 11 रुपये चंदा वसूल हो पाता था। उनके साथ मेले का काम करने वाले मन्ना लाल निगम अब शहर में रहने लगे। गुरुप्रसाद के पुत्र दीपचंद और मन्नालाल के पुत्र मनोज कुमार मेला में अपना फर्ज निभाते आ रहे हैं। इन दिनों राम लखन गुप्ता, बजरंग वर्मा, दीपचंद वर्मा, अवध किशोर व मेला कमेटी के अन्य सदस्य मेले की तैयारी में लगे हैं।

 

अमेठी का रामबाग बाबा खुशहालदास की तपोस्थली रहा है। रामबाग में हुए बाबा के चमत्कारों के किस्से आज भी लोग खूब सुनाते हैं। रामबाग में स्थित इमली का पेड़ बाबा खुशहाल दास के समय का बताया गया है। कहा जाता है कि बाबा के प्रताप से पेड़ पर शंख और घंटों की आवाजें गूंजने लगी थी। इनकी समाधि पर आज भी लोग माथा टेकते हैं।


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