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रैगिंग से दहशत में सैनिक स्‍कूल के छात्र, स्कूल जाने से किया इन्कार

पिछले साल सितंबर में भी हुई थी रैगिंग, शिकायत की जांच मंडलायुक्त को सौंपी। पढ़ाई का स्तर गिरा तो दसवीं बाद कई छात्र कैडेटों को करना पड़ा बाहर।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 14 Feb 2019 10:59 AM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2019 06:07 PM (IST)
रैगिंग से दहशत में सैनिक स्‍कूल के छात्र, स्कूल जाने से किया इन्कार
रैगिंग से दहशत में सैनिक स्‍कूल के छात्र, स्कूल जाने से किया इन्कार

लखनऊ, जेएनएन। सैनिक स्कूल में सीनियर छात्रों द्वारा रैगिंग और पिटाई के बाद से सातवीं के दोनों पीडि़त छात्र दहशत में हैं। उन्होंने अपने पिता से कहा कि अब स्कूल नहीं जाऊंगा, नहीं तो फिर सीनियर पिटाई करेंगे। देवरिया निवासी छात्र के पिता ने बताया कि घटना के बाद से उनका बेटा दहशत में है। वह स्कूल जाने से इन्कार कर रहा है। वहीं पीएसी के जवान ने बताया कि उनका भी बेटा सदमे में है, वह भी स्कूल जाने से मना कर रहा है। पुलिस ने अगर आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की तो वह उच्चाधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक शिकायत करेंगे।

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डॉक्टर ने मनोचिकित्सक से परामर्श के बाद 15 दिन का लिखा रेस्ट

देवरिया के व्यवसायी ने बताया कि उनके बेटे की जांघ में खून का थक्का जम गया। इसके अलावा पूरे शरीर पर गंभीर चोटें हैं। उसकी मानसिक स्थिति भी ठीक नहीं है। वह बहुत डरा हुआ है। मेडिकल करने वाले डॉक्टरों ने मनोचिकित्सक से परामर्श लेकर 15 दिन के रेस्ट की बात कही है।

यूं ही नहीं गिरा देश के पहले सैनिक स्कूल का स्तर

सन 1960 में स्थापित देश के पहले सैनिक स्कूल ने पिछले साल बेटियों को भी प्रवेश देकर एक और उपलब्धि अपने नाम की। लेकिन विवादों ने कैप्टन मनोज कुमार पांडेय यूपी सैनिक स्कूल का साथ नहीं छोड़ा। यहां पिछले कुछ महीनों में अनुशासनहीनता ने रैगिंग का रूख अख्तियार कर लिया। जबकि शिक्षा का स्तर इतना गिरा कि पिछले साल कई छात्र कैडेटों को दसवीं में कम अंक लाने पर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अब सातवीं के ही कई छात्रों की फिर से बुरी तरह पिटाई के बाद यह प्रतिष्ठित स्कूल एक बार फिर से सुर्खियों में है। आरोप प्रधानाचार्य कर्नल अमित चटर्जी पर लगा कि उन्होंने पिछली घटनाओं के बाद कोई सख्त कार्रवाई नहीं की। जिस कारण लगातार घटनाएं बढ़ रही हैं।

प्रदेश के युवाओं को सेना में अफसर बनाने के लिए एनडीए की तैयारी कराने के उददेश्य से 1960 में यूपी सैनिक स्कूल की स्थापना की गई थी। तब यह देश का पहला सैनिक स्कूल था। इसके बाद ही देश में 27 और सैनिक स्कूल खोले गए। हालांकि वह सभी स्कूल रक्षा मंत्रालय के अधीन आते हैं। जबकि यूपी सैनिक स्कूल यूपी सरकार के अंतर्गत आता है। मुख्यमंत्री इसके मुख्य अध्यक्ष होते हैं। जबकि इसकी प्रबंधन कमेटी में मंडलायुक्त के साथ शिक्षा विभाग के अधिकारी होते हैं।

यूपी सैनिक स्‍कूल एक आवासीय स्कूल है। जिसमें प्रदेश भर के 13 स्थानों पर आयोजित लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के बाद सेना के मध्य कमान अस्पताल में मेडिकल पास करने के बाद ही दाखिला मिलता है। सैनिक स्कूल में छात्रों को एनडीए कैडेट की तरह अपना जीवन बिताना होता है। इस कारण इनके छात्रों को छात्र कैडेट कहा जाता है। पिछले कुछ महीनों से यहां अनुशासनहीनता बढ़ती रही। पिछले साल सितंबर में ही सातवीं के एक छात्र कैडेट की बुरी तरह पिटाई कर दी गई। सीनियरों के खिलाफ रैगिंग की शिकायत अभिभावक ने शिक्षा विभाग को कर दी। जिसके बाद स्कूल की कमेटी के स्थानीय अध्यक्ष मंडलायुक्त को इस मामले की जांच सौंपी गई।

नहीं हासिल हुए नंबर

यूपी सैनिक स्कूल के बड़ी संख्या में छात्र कैडेट कोचिंग के लिए आलमबाग जाते हैं। पढ़ाई में यहां के छात्र इतने कमजोर हुए कि दसवीं परीक्षा में वह इतने कम नंबर लाए कि उनको 11वीं में दाखिला नहीं मिला। इस पर भी अभिभावकों ने स्कूल प्रबंधन पर शिक्षा की ओर ध्यान न दिए जाने का आरोप लगाया गया।


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